यहां रोज निकलने वाली 52 हजार किलो स्लज बनेगी मुसीबत, जानिए
गंगा को निर्मल करने की एक हजार करोड़ से अधिक की योजना में एसटीपी से सीवरेज जल के शोधन के बाद निकलने वाली स्लज के निस्तारण की कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई है।
हरिद्वार, जेएनएन। गंगा को हरिद्वार में निर्मल करने की एक हजार करोड़ से अधिक की योजना में एसटीपी से सीवरेज जल के शोधन के बाद निकलने वाली स्लज (गाद) के निस्तारण की कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई है। जगजीतपुर एसटीपी से निकलने वाली 17 हजार किलो स्लज को ठिकाने लगाने में ही विभाग के पसीने छूट रहे हैं, जबकि सराय एसटीपी से निकलने वाली सात हजार किलो स्लज की मात्रा इसमें शामिल नहीं है। नई एसटीपी (जगजीतपुर में 68 एमएलडी, सराय में 14 एमएलडी) के काम शुरू करने के बाद रोजाना तकरीबन 52 हजार किलो गाद (63 क्यूबिक मीटर) निकलेगी। इसे कहां डंप करेंगे और इसका निस्तारण कैसे होगा, इसे लेकर अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है।
यह योजनागत खामी का नतीजा है कि जब एसटीपी बनकर तैयार हो गई तो अब इसके निस्तारण को सिर खपाया जा रहा है। हालत यह है कि गाद को रखने के लिए न तो एसटीपी में जगह है और न ही इसे खपाने की कोई कारगर योजना है। नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा के महानिदेशक राजीव रंजन और वित्त नियंत्रक रोजी अग्रवाल ने अपने अप्रैल के दौरे में इसे लेकर चिंता भी जताई थी। सितंबर में एसटीपी के शुरू होने के मद्देनजर एसटीपी से निकलने वाली स्लज को रखने के लिए खाली मैदान खोजा जा रहा है।
एसटीपी का संचालन करने वाले जल संस्थान के लिए यह स्लज मुसीबत का सबब बन गई है। फिलहाल इसकी निगाह एसटीपी का निर्माण कराने वाली पेयजल निगम की निर्माण और अनुरक्षण इकाई गंगा पर टिकी हुई हैं कि एसटीपी के हैंडओवर के समय वह इसके लिए कोई ठोस योजना बनाकर देगी। इसके विपरीत पेयजल निगम की निर्माण और अनुरक्षण इकाई के मुताबिक यह जिम्मेदारी जल संस्थान की है। उनका इससे कोई वास्ता नहीं, उनकी जिम्मेदारी एसटीपी के निर्माण की है।
हालांकि उसका दावा है कि रोजाना इतनी मात्रा में निकलने वाली स्लज को सुखाने पर उसकी मात्रा 25 से 27 हजार किलो ही रह जाएगी। इसके अलावा यहां पहले से काम कर रहीं तीनों एसटीपी में भी इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है। इस कारण तीनों एसटीपी से निकलने वाली गाद पिछले कई सालों से उनका संचालन कर रहे जल संस्थान के लिए मुसीबत का सबब है। फिलहाल इसे स्थानीय किसानों को खाद के रूप में बेचने की योजना तैयार की गई थी पर, किसान इसे खरीदने को तैयार नहीं हैं। अब उन्हें निश्शुल्क वितरण पर विचार किया जा रहा है।
वॉटर सप्लाई-सीवरेज एक्ट में जिम्मेदारी निर्माण इकाई की
वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज एक्ट-1975 के अनुसार नियोजन और निर्माण का काम पेयजल निगम का है, जबकि जल संस्थान का काम संचालन एवं अनुरक्षण की जिम्मेदारी को निभाना होता है। लिहाजा पेयजल निगम को योजना का निर्माण करते समय इसके निस्तारण की भी योजना तैयार करनी चाहिए थी।
निर्माण और अनुरक्षण इकाई गंगा के परियोजना प्रबंधक आरके जैन का कहना है कि एसटीपी निर्माण योजना में स्लज के निस्तारण को कोई योजना नहीं बनाई गई है, यह हमारी जिम्मेदारी नहीं। यह काम जलसंस्थान का है, वह ही अभी तक इसे कर भी रहा है। स्लज को सूखाने के बाद इसकी मात्रा काफी कम हो जाती है। जल संस्थान को सिर्फ इसका ही निस्तारण करना होगा। जल्द ही इसका उचित और ठोस हल निकाल लिया जाएगा।
अधिशासी अभियंता जल संस्थान अजय कुमार के मुताबिक जगजीतपुर में काम कर रही दो एसटीपी से रोजाना निकलने वाली करीब 17 हजार किलो स्लज को सूखाने के बाद स्थानीय किसानों को देकर उसका निस्तारण किया जा रहा है। सितंबर से चालू होने वाली नई एसटीपी से निकलने वाली स्लज को रखने और उसके निस्तारण की कार्यदायी संस्था ने क्या योजना बनाई है, यह एसटीपी के हैंडओवर के समय ही पता चलेगा।
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