एफआइआर के बिना जांच और मामला रफा-दफा
सुमन सेमवाल, देहरादून: प्रेमनगर में चोरी के एक मामले में पुलिस ने पहले तो एफआइआर दर्ज करने से
सुमन सेमवाल, देहरादून: प्रेमनगर में चोरी के एक मामले में पुलिस ने पहले तो एफआइआर दर्ज करने से इंकार कर दिया और फिर जांच का नाटक करते हुए उसे रफा-दफा भी कर दिया गया। आरटीआइ की अपील के रूप में जब यह प्रकरण सूचना आयोग पहुंचा तो राज्य सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने पुलिस के इस रवैये को सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों की अवमानना करार दिया।
प्रेमनगर निवासी अजय नारायण शर्मा ने अपनी पत्नी सुनीता ठाकुर की ओर से 22 जून 2017 को प्रेमनगर थाने में दी गई चोरी की तहरीर के संबंध में पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) कार्यालय से आरटीआइ में जानकारी मांगी थी। यहां से संतोषजनक जवाब न मिलने पर जब उन्होंने पुलिस उपमहानिरीक्षक (गढ़वाल) कार्यालय में अपील की तो उनकी अपील का भी समय पर निस्तारण नहीं किया गया। बाद में उन्हें सूचना आयोग में अपील करनी पड़ी। प्रकरण की सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त राजेंद्र कोटियाल ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिए कि यदि अपीलार्थी की पत्नी 22 जून 2017 को प्रेमनगर थाने में दी गई तहरीर की प्रति उनके समक्ष प्रस्तुत करती हैं तो उसमें एफआइआर दर्ज कराकर गंभीरता से जांच कराना सुनिश्चित करें। डीपीआरओ को सौंपी जांच अधीनस्थों को सरकाई
जागरण संवाददाता, देहरादून: मनरेगा के जिन कार्यो की अनियमितता की शिकायत शपथ पत्र के साथ जिलाधिकारी को सौंपी गई थी, उसकी जांच की जिम्मेदारी जब जिला पंचायतीराज अधिकारी (डीपीआरओ) को दी गई। उन्होंने खुद जांच करने के बजाय, मामला अधीनस्थों को सरका दिया। जिसका परिणाम यह रहा कि जांच के नाम पर लीपापोती कर दी गई। राज्य सूचना आयुक्त सुरेंद्र सिंह रावत ने इस मामले की अपील की सुनवाई करते हुए मुख्य विकास अधिकारी को निर्देश दिए कि वह डीपीआरओ या अन्य उच्च स्तरीय अधिकारी से जांच कराएं।
आमवाला निवासी वीरेंद्र सिंह ने 17 अगस्त 2016 को जिलाधिकारी को दिए गए शिकायती पत्र को लेकर डीपीआरओ कार्यालय से सूचना मांगी थी। अपील में जब यह मामला आयोग पहुंचा तो पता चला कि जिलाधिकारी से पत्र मुख्य विकास अधिकारी को पहुंचा था और यहीं से डीपीआरओ को जांच करने के लिए कहा गया था। सूचना आयुक्त रावत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह प्रकरण बताता है कि किस संजीदगी से वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश का पालन किया जा रहा है। जबकि यह प्रकरण भ्रष्टाचार से संबंधित था। इसी के बाद आयोग ने मुख्य विकास अधिकारी को डीपीआरओ या अन्य वरिष्ठ अधिकारी से जांच कराने के निर्देश जारी करते हुए दोषियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने को भी कहा।