चुनावी रंग में रंगा नजर आएगा उत्तराखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र
विधानसभा का शीतकालीन सत्र भले ही संक्षिप्त हो लेकिन यह चुनावी रंग में रंगा नजर आएगा। सत्र के दौरान जो भी सवाल और विषय उठाए जाएंगे वे चुनावी छाया लिए होंगे। वजह ये कि वर्तमान विधानसभा का यह अंतिम सत्र है और अगले साल विस चुनाव होना है।
केदार दत्त, देहरादून। विधानसभा का गुरुवार से शुरू होने वाला शीतकालीन सत्र भले ही छोटी अवधि का हो, लेकिन यह पूरी तरह चुनावी रंग में रंगा नजर आएगा। दो दिवसीय सत्र के दौरान जो भी सवाल और विषय उठाए जाएंगे, वे चुनावी छाया लिए होंगे। वजह यह कि वर्तमान विधानसभा का यह आखिरी सत्र है और अगले साल की शुरुआत में नए चुनाव होने हैं। ऐसे में सत्र के माध्यम से इस मौके को भुनाने का सत्तापक्ष व विपक्ष पुरजोर प्रयास करेंगे। मुद्दों का श्रेय लेने की होड़ दिखेगी, साथ ही राजनीतिक दल स्वयं को ज्यादा से ज्यादा जनहितैषी दर्शाने पर भी जोर देंगे।
प्रदेश की चौथी विधानसभा का यह अंतिम सत्र एकदम बदली परिस्थितियों में हो रहा है। सभी दल अगले चुनाव के मूड में पूरी तरह उतर चुके हैं। राज्य में प्रमुख दलों के नेताओं के ताबड़तोड़ दौरे होने के साथ ही जुबानी तीर भी खूब चल रहे हैं। माहौल चुनावी रंग में रंगने लगा है। इस परिदृश्य के बीच विधानसभा सत्र हो तो फिर इसे कौन नहीं भुनाना चाहेगा। हर किसी की चाह होगी कि वह सदन के माध्यम से जनता के बीच उसका सबसे बड़ा हितैषी होने का संदेश दे। ऐसे में सत्र पर चुनावी छाया होना स्वाभाविक ही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक-दूसरे को विभिन्न मुद्दों पर घेरने का प्रयास करेंगे।
इन मुद्दों पर होगी श्रेय की होड़
देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड :-पिछले दो साल से चर्चा के केंद्र में रहे चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड को भंग करने और इससे संबंधित अधिनियम को वापस लेने का सरकार निर्णय ले चुकी है। इससे पहले बोर्ड के विषय पर राजनीति भी खूब हुई। अब संबंधित अधिनियम को निरस्त करने का विधेयक सत्र में आना है। सत्ता पक्ष की ओर से जहां इसे जनभावनाओं के अनुरूप उठाए गए कदम के तौर पर रखा जाएगा, वहीं विपक्ष कोशिश करेगा कि ऐसा संदेश जाए कि सरकार ने उसके दबाव में यह निर्णय लिया।
ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण :- उत्तराखंड आंदोलन की भावनाओं का केंद्र रहे गैरसैंण को राजधानी का दर्जा देने के प्रश्न पर पूर्व में सभी दल हामी तो भरते रहे, मगर हुआ कुछ नहीं। लंबे इंतजार के बाद वर्तमान भाजपा सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया है। माना जा रहा कि सत्तापक्ष इसे अपने बड़े निर्णय के रूप में गिनाएगा तो विपक्ष गैरसैंण के विकास के विषय को उठाएगा। साथ ही गैरसैंण के विकास को लेकर सत्तापक्ष व विपक्ष के बीच खींचतान सदन में दिख सकती है।
भू-कानून :- राज्य में सशक्त भू-कानून को लेकर भी मामला गरम है और राजनीति का विषय भी। हालांकि, इस सिलसिले में सरकार समिति गठित कर चुकी है, ताकि जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए भू-कानून बन सके। इसके साथ ही विपक्ष निरंतर इस विषय पर सरकार को घेर रहा है। ऐसे में भू-कानून पर ठीक-ठाक बहस होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
कोविड प्रबंधन :- उत्तराखंड में पिछले साल मार्च में कोविड-19 के दस्तक देने के बाद से सरकार लगातार कोविड प्रबंधन में जुटी है। 18 वर्ष से ऊपर के आयु वर्ग के व्यक्तियों को करीब शत-प्रतिशत पहली डोज दी जा चुकी है। साथ ही कोविड से निबटने को कई सुविधाएं जुटाई गई हैं। सत्ता पक्ष इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाएगा, लेकिन विपक्ष शुरुआत से ही सरकार पर कोविड प्रबंधन के मामले में हमलावर है। इस सत्र में भी उसका यह रुख बना रहने के आसार हैं।
किसानों का मुद्दा :- कृषि कानूनों को लेकर चले किसान आंदोलन की आंच उत्तराखंड में ऊधमसिंहनगर व हरिद्वार जिलों तक ही सीमित रही है, लेकिन विपक्ष इस विषय पर तीखे तेवर अपनाए हुए है। हालांकि, अब केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले चुकी है। साथ ही प्रदेश में लागू किए गए कानून को भी वापस लेकर पूर्ववर्ती मंडी एक्ट को सरकार बहाल करने जा रही है। बावजूद किसानों का मुद्दा सदन में चर्चा का विषय रहेगा और इसे लेकर श्रेय की होड़ दिखनी तय है।
रोजगार-स्वरोजगार :- विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तो युवाओं के लिए रोजगार, स्वरोजगार का विषय सदन में उठना तय है। इसे लेकर सरकार जहां सरकारी विभागों में शुरू की गई भर्ती प्रक्रिया के साथ ही स्वरोजगार के क्षेत्र में उठाए गए कदमों को रखेगी, वहीं विपक्ष बेरोजगारी के प्रश्न पर मुखर है। लिहाजा, युवाओं को साधने के हिसाब से सत्ता पक्ष व विपक्ष सदन में पूरी तैयारी के साथ दो-दो हाथ कर सकते हैं।
कर्मचारी आंदोलन :- सचिवालय संघ के कर्मचारी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलित हैं तो अन्य विभागों के कर्मचारी संगठन भी मुखर। हालांकि, सरकार ने पिछले एक माह की अवधि में कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान से लेकर संविदा व आउटसोर्स कर्मियों के मानदेय में बढ़ोतरी सहित कई कदम उठाए हैं। वहीं, विपक्ष स्वयं को कर्मचारी संगठनों का हितैषी दर्शाने का प्रयास कर उनसे जुड़े विषयों को उठाएगा। इस विषय पर रोचक जंग सदन में देखने का मिल सकती है।