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सतत पर्यावरण आजीविका से जुड़े: गवर्नर

राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने कहा कि सतत पर्यावरण को सतत आजीविका व रोजगार से जोड़ना होगा।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 09:59 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 09:59 PM (IST)
सतत पर्यावरण आजीविका से जुड़े: गवर्नर
सतत पर्यावरण आजीविका से जुड़े: गवर्नर

राज्य ब्यूरो, देहरादून

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राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने कहा कि सतत पर्यावरण को सतत आजीविका व रोजगार से जोड़ना होगा।

राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने शुक्रवार को राजभवन से सतत पर्यावरण विषय पर आयोजित वेबिनार को संबोधित किया। इसका आयोजन दून विश्वविद्यालय और सोसाइटी फॉर साइंस ऑफ क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनेबल एनवायरनमेंट नई दिल्ली ने संयुक्त रूप से किया था। इस मौके पर राज्यपाल ने कहा कि हमें ग्रीन इनर्जी के साथ ग्रीन लाइफ स्टाइल को बढ़ावा देना होगा। लॉकडाउन ने यह दिखा दिया कि मनुष्य अपने पर्यावरण को कितना नुकसान कर रहा था। अब संयमित और संतुलित जीवन शैली अपना कर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ना होगा।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड हिमालयी वन संपदा से भरपूर राज्य है। पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरण के अनुकूल रोजगार के अवसर सृजित किए जाने आवश्यक हैं। सहकारिता और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जैविक खेती को और अधिक बढ़ावा देना होगा, जिससे स्थानीय फल, फूल, सब्जियों, जड़ी-बूटियों के माध्यम से लोगो की आíथकी में सुधार हो सके। राज्यपाल ने दून विश्वविद्यालय को इस वेबिनार की संस्तुतियों पर एक वर्किंग नोट बनाकर प्रस्तुत करने के निर्देश भी दिए। वेबिनार में दून विश्वविद्यालय ने बीते अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता के विजेताओं की घोषणा भी की गई। वेबिनार में कोविड-19 लॉकडाउन और पर्यावरण पर प्रभाव से संबंधित विषय पर छात्र-छात्राओं ने विचार भी व्यक्त किए।

दून विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एके कर्नाटक ने पर्यावरण संरक्षण और हरित अर्थव्यवस्था पर विचार व्यक्त किया। बीआर आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के डीन प्रो आरपी सिंह ने खाद्य-कृषि-जल के अंतर्सबंधों पर विचार व्यक्त करते हुए वर्तमान युग में विकास के पर्यावरण अनुकूल साधनों पर जोर दिया। भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की डॉ निशा मेंदीरत्ता ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न राष्ट्रीय मिशनों की जानकारी दी। ओबियस फाउंडेशन के सीईओ डॉ राम बूझ ने पारंपरिक पर्यावरणीय ज्ञान के वैज्ञानिक प्रमाणीकरण की आवश्यकता पर बल दिया। दून विश्वविद्यालय की प्रो कुसुम अरूणाचलम समेत कई वक्ताओं ने भी वेबिनार में विचार व्यक्त किए।


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