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रोटी ही नहीं, यहां टूटती उम्मीदों का सहारा बन रहा मनरेगा; जानिए

उत्तराखंड के गांवों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने रोजगार मुहैया कराने के मामले में नई इबारत लिख डाली है।

By Edited By: Published: Sat, 06 Jun 2020 08:37 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jun 2020 02:31 PM (IST)
रोटी ही नहीं, यहां टूटती उम्मीदों का सहारा बन रहा मनरेगा; जानिए
रोटी ही नहीं, यहां टूटती उम्मीदों का सहारा बन रहा मनरेगा; जानिए

देहरादून, राज्य ब्यूरो। कोरोनाकाल में उत्तराखंड के गांवों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ने रोजगार मुहैया कराने के मामले में नई इबारत लिख डाली है। महज 47 दिन के वक्फे में मनरेगा में रोजगार पाने वाले श्रमिकों की संख्या तीन लाख का आंकड़ा पार कर गई है। यानी रोजाना औसतन 6541 श्रमिक इसमें जुड़ रहे हैं। यही नहीं, गांव लौटे प्रवासी भी मनरेगा में रुचि ले रहे हैं। 

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प्रतिदिन औसतन 319 नए जॉब कार्ड बनना और 230 नए श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराना इसकी तस्दीक करता है। बदली परिस्थितियों में उत्तराखंड में भी मनरेगा के कार्य बंद कर दिए गए थे। केंद्र सरकार से छूट मिलने के बाद 20 अपै्रल से राज्य के गांवों में मनरेगा के कार्य शुरू किए गए तो ग्रामीणों ने भी इन्हें सिर आंखों पर लिया। मनरेगा में चल रहे कार्यां में श्रमिकों की निरंतर बढ़ती संख्या इसकी बानगी है। 
मनरेगा के राज्य समन्वयक मो. असलम के अनुसार 20 अपै्रल से लेकर शनिवार तक मनरेगा में कार्य करने वाले श्रमिकों की संख्या 307451 पहुंच गई है। बताते हैं कि प्रवासी भी मनरेगा में निरंतर रुचि ले रहे हैं। पिछले 47 दिनों में प्रदेश के सभी जिलों में जिन 15039 परिवारों को मनरेगा के नए जॉब कार्ड उपलब्ध कराए गए हैं, वे गांव लौटे प्रवासी ही हैं। 
इनमें से 10828 को नए श्रमिक के रूप में रोजगार मुहैया कराया गया है। मनरेगा के राज्य समन्वयक के अनुसार नए श्रमिकों में अधिकांशत: 18 से 45 आयु वर्ग के लोग शामिल हैं। राज्य में 21 हजार से ज्यादा काम मनरेगा के तहत राज्य के सभी जिलों में 21816 कार्य 20 अप्रैलसे अब तक प्रारंभ किए गए हैं। इनमें जल संरक्षण के कार्यों के साथ ही पौधरोपण के लिए गड्ढों की खुदाई, पौधरोपण, सिंचाई गूलों की मरम्मत और निर्माण, खेतों की दीवार निर्माण समेत तमाम कार्य चल रहे हैं।

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