अब दूसरे राज्यों में वनीकरण कराएगा उत्तराखंड
विषम भूगोल और 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में क्षतिपूरक वनीकरण के लिए जमीन कम पड़ने लगी है।
केदार दत्त, देहरादून
विषम भूगोल और 71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाले उत्तराखंड में क्षतिपूरक वनीकरण के लिए जमीन कम पड़ने लगी है। उत्तराखंड प्रतिकरात्मक वनरोपण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (कैंपा) में क्षतिपूरक वनीकरण का लगभग छह हजार हेक्टेयर का बैकलॉग इसकी तस्दीक करता है। इसे देखते हुए यह क्षतिपूरक वनीकरण अब उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में कराने पर सरकार विचार कर रही है, ताकि सूबे में विकास कार्य अवरुद्ध न हों।
पर्यावरण एवं विकास में सामंजस्य के मद्देनजर विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं के निर्माण के लिए हस्तांतरित की जाने वाली वन भूमि के एवज में इससे अधिक भूमि में क्षतिपूरक वनीकरण का प्रविधान है। कैंपा के माध्यम से क्षतिपूरक वनीकरण कराया जाता है, लेकिन अब राज्य में इसके लिए भूमि की दिक्कत आड़े आने लगी है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में उत्तराखंड कैंपा की हाल में हुई बैठक में बात सामने आई कि क्षतिपूरक वनीकरण का नौ हजार हेक्टेयर का बैकलॉग है। इसमें से 3100 हेक्टेयर में इस वर्ष कार्य होना है, लेकिन शेष वनीकरण के लिए भूमि नहीं है।
ये तथ्य भी सामने आया कि विभिन्न वन प्रभागों को वन भूमि हस्तांतरण के सापेक्ष जो भूमि आवंटित हुई है, उस पर क्षतिपूरक वनीकरण असंभव है। यह भूमि या तो प्राकृतिक आपदा से पूरी तरह क्षतिग्रस्त है या फिर अधिकांश भाग ढंगारी है। मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया था कि निकटवर्ती राज्यों में क्षतिपूरक वनीकरण की प्रतिपूर्ति के संबंध में वार्ता की जा सकती है। साथ ही केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने पर जोर दिया कि राज्य में भूमि की उपलब्धता न होने के मद्देनजर अन्य राज्यों में क्षतिपूरक वनीकरण कराने पर विचार किया जाए।
इस सबको देखते हुए अब कवायद तेज की गई है। क्षतिपूरक वनीकरण के लिए भूमि उपलब्धता को जिलाधिकारियों से रिपोर्ट मांगी गई है। उत्तराखंड कैंपा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेएस सुहाग के अनुसार जिलों से रिपोर्ट मिलने के पश्चात दूसरे राज्यों से क्षतिपूरक वनीकरण के संबंध में संपर्क साधा जाएगा। इसके अलावा गैर वन भूमि पर भी क्षतिपूरक वनीकरण कराए जाने के बारे में केंद्र से पत्राचार किया जाएगा।