18 साल के उत्तराखंड ने 15वें वित्त आयोग से बांधी टकटकी
उत्तराखंड राज्य को विकास कार्यों के लिए धन की कमी बनी हुई है। खराब माली हालत के चलते राज्य की उम्मीदें एक बार फिर 15वें वित्त आयोग से ज्यादा मदद हासिल करने पर टिकी है।
देहरादून, [राज्य ब्यूरो]: राज्य के बड़े और विषम भू-भाग में एक ओर आधारभूत सुविधाओं का टोटा, दूसरी ओर विकास कार्यों के लिए धन की कमी। बानगी देखिए, कार्मिकों के वेतन, भत्ते, मानदेय, मजदूरी और अधिष्ठान खर्च पर ही सालाना खर्च 16 हजार करोड़ को पार कर रहा है। वहीं विकास कार्यों के लिए उपलब्ध होने वाली धनराशि महज सात हजार करोड़ से नीचे सिमटी हुई है। यानी कोढ़ पर खाज सरीखी स्थिति। आधारभूत सुविधाओं की कमी से जूझते उत्तराखंड राज्य को विकास कार्यों के लिए धन की कमी बनी हुई है। खराब माली हालत के चलते राज्य की उम्मीदें एक बार फिर 15वें वित्त आयोग से ज्यादा मदद हासिल करने पर टिकी हैं।
उत्तराखंड अपनी स्थापना के 18 साल पूरे कर चुका है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कुलांचे भरते उत्तराखंड के लिए आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलें बढ़ रही हैं। दरअसल राज्य का वित्तीय ढांचा कमजोर बुनियाद पर खड़ा है। इसकी वजह अलग उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से साल-दर-साल खर्च का बोझ बढ़ना है। इस खर्च की तुलना में आमदनी बेहद कम है। राज्य सरकार अपने संसाधनों में इजाफा करने की कोशिश में कामयाब नहीं हो सकी। इस वजह से आमदनी और खर्च के बीच खाई निरंतर चौड़ी हो रही है।
कुल बजट का 31.55 फीसद हिस्सा सिर्फ वेतन, भत्ते, मजदूरी समेत अधिष्ठान पर खर्च हो रहा है। यह खर्च सालाना 15 हजार करोड़ से से ज्यादा है। वहीं बड़े और छोटे निर्माण कार्यों के लिए महज 5803.89 करोड़ ही मिल रहे हैं। यह धनराशि पिछले साल निर्माण कार्यों के लिए रखी गई धनराशि 5288.11 करोड़ से भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन बजट आकार की तुलना में इसकी हिस्सेदारी कम हुई है। जाहिर है कि विकास कार्यों के लिए पाई-पाई के जुगाड़ के लिए राज्य सरकार को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
आमदनी की तुलना में तीन गुना खर्च
इसके उलट राज्य को बड़े और छोटे निर्माण कार्यों के लिए छह हजार करोड़ से कम राशि मिल रही है। महज 5803.89 करोड़ ही मिल रहे हैं। यह धनराशि पिछले साल निर्माण कार्यों के लिए रखी गई धनराशि 5288.11 करोड़ से भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन बजट आकार की तुलना में इसकी हिस्सेदारी कम हुई है। वहीं बड़े और छोटे निर्माण कार्यों के लिए महज 5803.89 करोड़ ही मिल रहे हैं।
यह धनराशि पिछले साल निर्माण कार्यों के लिए रखी गई धनराशि 5288.11 करोड़ से भले ही कुछ ज्यादा हो, लेकिन बजट आकार की तुलना में इसकी हिस्सेदारी कम हुई है। विकास कार्यों के लिए बजट में कमी का असर दिख रहा है। यह रहन-सहन और खान-पान की गुणवत्ता के लिए अच्छा संकेत नहीं है। वहीं बीते वित्तीय वर्ष 2017-18 में केंद्रीय मदद में भी 1488 करोड़ की कमी आ चुकी है।
अहम परियोजनाओं से राहत
राज्य को विकास की अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र से मदद की दरकार है। अच्छी बात ये है कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाएं केदारनाथ पुनर्निर्माण, ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन, भारतमाला परियोजनाओं ने ढांचागत विकास की दिशा में लंबे डग भरने का रास्ता भी खोला है। बावजूद इसके हकीकत ये है कि 15वें वित्त आयोग से राज्य को जरूरी सहयोग नहीं मिला तो राज्य पर कर्ज का बोझ बेतहाशा बढ़ेगा ही, साथ में वित्तीय बंदोबस्त को संभालने में ही सरकार की सांसें फूलना तय है। आयोग ने फिलहाल सकारात्मक रुख अपनाने के संकेत दिए हैं।
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