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नीति आयोग की रिपोर्ट, शिक्षा की गुणवत्ता में लुढ़क गया उत्तराखंड

स्कूली शिक्षा को लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट ने उत्तराखंड के माथे पर बल डाल दिए हैं। स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स की रिपोर्ट में उत्तराखंड 10वें पायदान से फिसलकर 14वें पर खिसक गया।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 12:38 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 12:38 PM (IST)
नीति आयोग की रिपोर्ट, शिक्षा की गुणवत्ता में लुढ़क गया उत्तराखंड
नीति आयोग की रिपोर्ट, शिक्षा की गुणवत्ता में लुढ़क गया उत्तराखंड

देहरादून, रविंद्र बड़थ्वाल। स्कूली शिक्षा को लेकर नीति आयोग की रिपोर्ट ने उत्तराखंड के माथे पर बल डाल दिए हैं। विश्व बैंक और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से तैयार स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स की रिपोर्ट में उत्तराखंड 10वें पायदान से फिसलकर 14वें पायदान पर खिसक गया है। कक्षा तीन के साथ पांचवीं और आठवीं कक्षा में उत्तराखंड के प्रदर्शन में गिरावट देखी गई है। 

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छात्रों के भाषा और गणित विषयों के ज्ञान के स्तर में अपेक्षा के अनुरूप सुधार नहीं हो पा रहा है। इस रिपोर्ट ने सरकार के शिक्षा के गुणवत्ता के दावों को भी जमीन दिखा दी है। चिंताजनक ये है कि नीति आयोग की सिफारिश के मुताबिक उक्त प्रदर्शन को आधार बनाकर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने बजट दिया तो उत्तराखंड की उम्मीदों को झटका लग सकता है।  

एकल शिक्षक स्कूल बढ़े

वर्ष 2015-16 को आधार वर्ष और 2016-17 को संदर्भ वर्ष मानकर तैयार की गई इस रिपोर्ट में उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था ने नई ऊंचाई छूने के बजाय नीचे की ओर गोता लगा दिया है। खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में कर्नाटक के बाद उत्तराखंड दूसरे स्थान पर है। 

राज्य सरकार भले ही शिक्षक और छात्र अनुपात में सुधार होने और शिक्षकों की संख्या में इजाफा होने का दावा करे, लेकिन छोटे राज्य में एकल शिक्षकों की संख्या काफी ज्यादा है। वर्ष 2015-16 में यह 6.6 फीसद से 2016-17 में बढ़कर 8.2 फीसद हो गया। यानी एकल शिक्षक विद्यालयों की संख्या राज्य में घटने के बजाय बढ़ी है। 

इलेक्ट्रानिक डाटाबेस में पिछड़े

किसी इलेक्ट्रानिक डाटाबेस में शिक्षकों की यूनिक आइडी दर्ज होने के मामले में भी उत्तराखंड का प्रदर्शन अच्छा नहीं है। हालांकि, इसमें वृद्धि की संभावना दिख रही है। आधार वर्ष में ऐसे शिक्षकों की संख्या शून्य थी तो संदर्भ वर्ष में यह बढ़कर 29 फीसद तक पहुंच गई।

भाषा-गणित में खराब प्रदर्शन 

कक्षा तीन में भाषा विषय में राज्य के बच्चों का औसत प्रदर्शन 72 फीसद और गणित में 67 फीसद है। इसीतरह कक्षा पांच में भाषा में 64 फीसद और गणित में 58 फीसद है। आठवीं कक्षा में भाषा में 59 फीसद तो गणित में 40 फीसद प्रदर्शन छात्रों ने किया है। भाषा और गणित में छात्र-छात्राओं का विषय ज्ञान स्तर सुधरने के बजाय और गिर रहा है। 

यह स्थिति राज्य में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर शिक्षा की भयावह तस्वीर बयां कर रही है। कंप्यूटर एडेड लर्निंग में आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष में उत्तराखंड का प्रदर्शन 14.4 फीसद तक सिमटा हुआ है, यानी पढ़ाई में कंप्यूटर के इस्तेमाल में राज्य का प्रदर्शन सुस्त है। 

कारणों की होगी पड़ताल 

शिक्षा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम के मुताबिक, नीति आयोग की ओर से तैयार रिपोर्ट में उत्तराखंड के खराब प्रदर्शन की जानकारी मिली है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट विभाग से तलब की जा रही है। पिछड़ेपन के कारणों की पड़ताल की जाएगी, राज्य की रैंकिंग में सुधार और प्रदर्शन को अच्छे स्तर तक ले जाने पर फोकस किया जाएगा।

नहीं होगी पूर्व प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति

पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के लिए शिक्षकों की नियुक्ति को सरकार को तैयार नहीं है। इसकी वजह सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा एक से पहले नर्सरी कक्षाओं का प्रावधान नहीं होना है। अलबत्ता, इसकी तोड़ के रूप में शिक्षा महकमा आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी प्रशिक्षण जिलों में डायट में दिया जा रहा है। 

दरअसल, हाईकोर्ट ने पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के लिए शिक्षकों को नियुक्त करने पर विचार करने को कहा है। विभागीय स्तर पर पूर्व प्राथमिक शिक्षकों को लेकर विचार किया गया। शिक्षा महकमे के मौजूदा ढांचे में पूर्व प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान नहीं है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाई कक्षा एक से शुरू होती है। 

नर्सरी टीचर्स का प्रशिक्षण ले चुके शिक्षकों की ओर से उन्हें सरकारी प्राथमिक शिक्षकों के तौर पर नियुक्ति देने के संबंध में हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। हाईकोर्ट ने उक्त शिक्षकों को नियुक्ति देने के मामले में महकमे से विचार करने को कहा था। शासन ने इस मामले में शिक्षा निदेशक से भी ब्योरा तलब किया था। इस संबंध में विभाग के स्तर पर मंथन हुआ, लेकिन मौजूदा ढांचे में यह व्यवस्था नहीं होने और पूर्व प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति होने पर सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ पड़ने का अंदेशा है। 

शिक्षा निदेशक आरके कुंवर का कहना है कि नई शिक्षा नीति में पूर्व प्राथमिक कक्षाओं को संचालित करने का प्रावधान रखा गया है, लेकिन वर्तमान में यह व्यवस्था नहीं है। केंद्र सरकार की प्रस्तावित नई शिक्षा नीति के प्रावधान लागू हुए तो पूर्व प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति पर विचार किया जा सकता है। 

उधर, शिक्षा महकमे की ओर से आंगनबाड़ी केंद्रों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह कार्य जिलों में डायट के माध्यम से किया जा रहा है। प्रशिक्षण कोर्स एससीईआरटी ने तैयार किया है। 

हालांकि, सालभर में करीब 300 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को ही प्रशिक्षण देना मुमकिन है। राज्य के करीब 20 हजार आंगनबाड़ी व मिनी आंगनवाड़ी केंद्रों में 33582 कार्यकर्ता और सहायिकाएं कार्यरत हैं। 

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इन सभी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने में वक्त लगना तय है। समग्र शिक्षा अभियान के अपर राज्य परियोजना निदेशक मुकुल कुमार सती का कहना है कि बाल विकास विभाग के प्रस्ताव के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को प्री नर्सरी प्रशिक्षण मुहैया कराया जा रहा है।

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