धामी सरकार पर बरसे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, कहा- पुरस्कारों का किया जा रहा है राजनीतिकरण
पांच विभूतियों को उत्तराखंड गौरव सम्मान देने की घोषणा पर पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष हरीश रावत सरकार पर खूब बरसे हैं। उनका कहना है कि धामी सरकार पुरस्कारों का राजनीतिकरण कर रही है।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। उत्तराखंड की पांच विभूतियों को उत्तराखंड गौरव सम्मान देने की घोषणा पर पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष हरीश रावत सरकार पर बरसे हैं। उन्होंने कहा कि धामी सरकार पुरस्कारों का राजनीतिकरण कर रही है। इंटरनेट मीडिया पर अपनी पोस्ट में हरदा ने कहा कि पुरस्कारों का नामकरण व दलीयकरण करना अच्छा संकेत नहीं है। यह उत्तराखंड की परिपाटी नहीं रही है। उनकी पिछली सरकार ने उत्तराखंड रत्न पुरस्कार शुरू किया था। धामी सरकार ने इसका नाम बदलकर उत्तराखंड गौरव पुरस्कार कर दिया। राज्य स्थापना दिवस पर ऐसा कदम उठाने से मनभेद पैदा हो रहा है।
हरीश रावत ने राज्य स्थापना दिवस पर नौ संकल्प अपनाए हैं। उन्होंने कहा कि कुल उपभोग की वस्तुओं का 30 प्रतिशत उत्तराखंडी उत्पादों को खरीदेंगे। दैनिक व्यवहार में 15 प्रतिशत उपयोग गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी व रंग भाषा के शब्दों, मुहावरों व कविताओं का करेंगे। लोक संस्कृति के पक्ष के उन्नयन के लिए समर्पित भाव से पहले अधिक उत्साह से काम करेंगे। एक गाय पालेंगे, असिंचित खेती वाले एक गांव का चयन कर उसे स्वावलंबी गांव के रूप में विकसित करेंगे।
उन्होंने कहा कि प्रत्येक दिन दो घंटा व्यक्तियों से मिलेंगे और महीने में न्यूनतम 50 घंटे जनता मिलन को समर्पित रहेंगे। कुल अर्जित आय का 50 प्रतिशत भाग दानी देवी मेमोरियल ट्रस्ट को जाएगा। प्रतिमाह पांच नए व्यक्तियों को कांग्रेस का सदस्य बनाएंगे।
इंद्रमणि बडोनी को पुरस्कार को नहीं चुने जाने से किशोर खफा
उधर, प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड राज्य आंदोलन के गांधी कहे जाने वाले स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी की उत्तराखंड गौरव पुरस्कार में अनदेखी करने पर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि उपाध्याय ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा कि सरकार इस भूल को सुधारेगी, ऐसी आशा उन्हें है। उन्होंने बडोनी से बड़ा कोई दूसरा उत्तराखंड का गौरव नहीं हो सकता। उत्तराखंड राज्य निर्माण में उनका अभूतपूर्व योगदान है। उन्होंने राष्ट्रीय राजनीतिक दल को तिलांजलि देकर संघर्ष का रास्ता चुना। अन्यथा वह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए होते।