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सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन उनके संघर्षों की ही जीत

सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन भी संघर्षों की ही जीत है। इसमें उत्तराखंड का भी बड़ा योगदान है। या यूं कहें कि चिंगारी को मशाल बनाने की शुरुआत इस वीरभूमि से हुई है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 24 Jul 2020 10:57 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 12:41 PM (IST)
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन उनके संघर्षों की ही जीत
सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन उनके संघर्षों की ही जीत

देहरादून, जेएनएन। जीवन का सिद्धांत है, जो व्यक्ति हिम्मत के साथ आगे बढ़ता है और संघर्ष करता है, भाग्य भी उसी का साथ देता है। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन भी संघर्षों की ही जीत है। इसमें उत्तराखंड का भी बड़ा योगदान है। या यूं कहें कि चिंगारी को मशाल बनाने की शुरुआत इस वीरभूमि से हुई है।

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रंग लाया विंग कमांडर अनुपमा जोशी का संघर्ष

दून निवासी विंग कमांडर (सेनि.) अनुपमा जोशी देश की उन महिला अफसरों में शुमार हैं, जिन्होंने 1993 में भारतीय एयरफोर्स ज्वाइन की थी। वायुसेना में महिला अधिकारियों का यह पहला बैच था। पांच साल की सर्वि के बाद आवाज उठाई तो उन्हें तीन साल और फिर तीन साल का एक्सटेंशन मिला। हर बार टुकड़ों में मिल रहे एक्सटेंशन से वह खिन्न आ गईं। वर्ष 2002 में उन्होंने इसके लिए अपने सीनियर अधिकारियों से लिखित में जवाब मांगा। कोई जवाब नहीं आया तो कोर्ट में मुकदमा करने की ठान ली।

2006 में उन्होंने कोर्ट में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने इस केस की सुनवाई में नई भर्तियों को स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया, लेकिन सेवारत महिला अधिकारियों का फैसला नहीं हो पाया। 2008 में वह रिटायर हो गईं, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा। कुछ अन्य अधिकारियों ने भी सेना में तैनात महिलाओं को स्थायी कमीशन देने को मामला दायर किया। 

हाईकोर्ट ने महिला अधिकारियों के पक्ष में निर्णय सुनाया। वायुसेना ने यह निर्णय तभी मान लिया था, पर सेना में इस पर अमल होते काफी वक्त लग गया। अनुपमा कहती हैं कि महिलाएं भी पुरुषों के बराबर ही सामर्थ्‍यवान हैं। स्थायी कमीशन को भी मेरा यही तर्क था। मैं उन काल्पनिक बंधनों से आजादी की मांग करती रही हूं, जो सिर्फ महिलाओं को बनाए गए हैं। ऐसे बंधन, जो महिलाओं की सोच पर बंदिश लगाते हैं, उनकी पंसद पर बंदिश लगाते हैं।

नौसेना में स्थायी कमीशन की लड़ी लड़ाई

नौसेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन दिलाने में उत्तराखंड से प्रथम महिला अफसर सुमिता बलूनी का योगदान अहम रहा। जिन पांच अधिकारियों ने कमीशन के लिए कोर्ट में याचिका दायर की थी, उसमें उत्तराखंड की सुमिता भी शामिल थीं। महिला अफसर सुमिता बलूनी ने ग्रेजुएशन के बाद अगस्त 1993 में नेवी ज्वाइन की थी। इसी दौरान उनके भाई कैप्टन आशीष बलूनी भी नेवी में बतौर अफसर शामिल हुए थे। मूलरूप से कोटद्वार के कंडलसेरा के रहने वाली कमांडर सुमिता बलूनी और कैप्टन आशीष बलूनी उत्तराखंड से नेवी में अफसर बनने वाले पहले भाई-बहन थे। उनके पिता दिनेश चंद्र बलूनी डीआरडीओ में विज्ञानी के पद पर कार्यरत थे। 

14 साल की सेवा के बाद कमांडर सुमिता बलूनी को 2007 में रिटायरमेंट दे दिया गया था। उस समय उन्होंने उन्हें कमीशन दिए जाने की मांग की थी, लेकिन उन्हें नहीं दिया गया, जबकि उनके साथी पुरुष अफसर को कमीशन दे दिया गया। अन्य महिला अफसरों के साथ उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने वर्ष 2012 में महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन देने के निर्देश दिए थे, लेकिन इसके बाद नौसेना सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट ने भी थल सेना की भांति नौसेना में भी महिला अफसरों को स्थायी कमीशन देने की इजाजत दे दी है।

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