मसूरी की कैरिंग कैपेसिटी की तीन रिपोर्ट डंप, निर्माण के मानकों पर जमकर होती है हीलाहवाली, अब NGT ने तोड़ी नींद
मसूरी की धारण क्षमता को 20 साल में तीन अध्ययन किए जा चुके हैं इसके बाद भी अनियंत्रित दोहन रोकने पर जोर नहीं दिया गया। अब सुप्रीम कोर्ट की मानीटरिंग कमेटी ने मुख्य सचिव को पत्र लिख जिम्मेदारी याद दिलाई है।
सुमन सेमवाल, देहरादून: मसूरी की संवेदनशीलता और बढ़ते आबादी के दबाव को लेकर पिछले 20 साल में तीन अध्ययन किए जा चुके हैं। इनमें यह स्पष्ट किया जा चुका है कि धारण क्षमता (कैरिंग कैपेसिटी) के मुकाबले मसूरी पर दबाव अधिक बढ़ गया है। इसके बाद भी मसूरी में नियोजित व नियंत्रित गतिविधियों को लेकर ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिली। एक तरह से कहें तो रिपोर्ट डंप कर दी गईं।
अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) सक्रिय हुआ तो अधिकारियों की नींद भी टूटती दिख रही है। एनजीटी के दो अलग-अलग आदेश के क्रम में मसूरी झील से पानी के अनियंत्रित दोहन रोकने की याद भी अधिकारियों को आ गई। झील से टैंकरों से की जा रही जलापूर्ति को रोक दिया गया है। दूसरी तरफ उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी होटलों को नोटिस जारी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है।
बड़ा सवाल यह है कि इस तरह की कार्रवाई के लिए अधिकारी एनजीटी की सख्ती के इंतजार क्यों करते हैं। क्योंकि, मसूरी की स्थिति को लेकर वर्षों से अलग-अलग स्तर से शासन को अवगत कराया जा रहा है। मसूरी की धारण क्षमता को लेकर अब तक तीन अध्ययन रिपोर्ट (वर्ष 1998, 2011 व 2018) जारी की जा चुकी हैं।
सभी रिपोर्ट सरकार को भी सुपुर्द की जा चुकी हैं। हालांकि, इन रिपोर्टों पर कभी गंभीरता से गौर ही नहीं किया गया। यही कारण है कि एनजीटी ने भी हाल में एक आदेश में मसूरी की धारण क्षमता और उसके मुताबिक कार्रवाई करने के लिए आदेश जारी किया है। इसके लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति गठित करने को कहा गया है। अब अधिकारी इस दिशा में भी सक्रिय दिख रहे हैं।
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की मानिटरिंग कमेटी के सचिव एमसी घिल्डियाल ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। जिसमें उन्होंने कहा कि दूनघाटी (मसूरी समेत) की पर्यावरणीय स्थिति को लेकर समिति हर तीन माह में बैठक कर सरकार को रिपोर्ट सौंपती रहती है। सरकार को समय-समय पर यह परामर्श दिया जाता है कि दूनघाटी में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए क्या-क्या कदम उठाने चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की मानिटरिंग कमेटी के परामर्श को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है।
मसूरी में निर्माण के इन मानकों पर हीलाहवाली
मसूरी की संवेदनशीलता को देखते हुए समूचे क्षेत्र में भवन निर्माण को नियंत्रित करने के लिए कई मानक लागू किए गए हैं। मसूरी एक बड़े हिस्से (निचला क्षेत्र किंक्रेग व ऊपरी क्षेत्र लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी) को फ्रीज जोन घोषित किया गया है। यहां सिर्फ आवासीय श्रेणी में 100 वर्गमीटर तक क्षेत्रफल में निर्माण की अनुमति है।
फ्रीज जोन के बाहर डी-नोटिफाइड वन क्षेत्र में 150 वर्गमीटर तक क्षेत्रफल में आवासीय निर्माण किया जा सकता है। वहीं, नोटिफाइड वन क्षेत्र में निर्माण की मनाही है। इस क्षेत्र में सिर्फ वर्ष 1980 से पहले बने भवनों/जर्जर भवनों की मरम्मत तीन मंजिल तक की जा सकती है। इस स्थिति में 150 वर्गमीटर के नियम में भी छूट मिली है। हालांकि, इसके बाद भी विभिन्न क्षेत्रों में मनमर्जी से निर्माण जारी हैं।
एमडीडीए हुआ सक्रिय, तीन निर्माण सील
एनजीटी की फटकार के बाद एमडीडीए अधिकारी मसूरी क्षेत्र को लेकर सक्रिय हो गए हैं। इस क्रम में मसूरी क्षेत्र में तीन अवैध निर्माण बुधवार को सील किए गए। एमडीडीए के अनुसार, मसूरी में टिहरी-चंबा रोड पर गंभीर पंवार, हरीश, रविंद्र के निर्माणाधीन भवन समेत एक अन्य निर्माण को सील किया गया। इसके अलावा माजरी ग्रांट डोईवाला में राम अवतार गुप्ता, चुन्नी लाल व अन्य की अवैध प्लाटिंग तोड़ी गई।
एनजीटी ने एमडीडीए की कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल
एनजीटी ने जोशीमठ में भूधंसाव के आलोक में मसूरी की स्थिति पर चिंता जताई है। इसको लेकर एनजीटी ने स्वतः संज्ञान लेकर राज्य के अधिकारियों को दिशा निर्देश भी जारी किए। साथ ही मसूरी क्षेत्र में अनियोजित निर्माण पर अंकुश लगाने की दिशा में मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए।
एसडीएम ने तुड़वाया पतनाला, पानी झील में छोड़ा
एनजीटी के आदेश के क्रम में मसूरी झील से पानी भर रहे टैंकरों पर रोक लगाने के बाद अब उपजिलाधिकारी (एसडीएम) ने यहां के पतनाला भी तुड़वा दिया है। उपजिलाधिकारी मसूरी शैलेंद्र सिंह नेगी के अनुसार, टैंकरों में पानी भरने के लिए झील से एक पतनाला (पाइपयुक्त धारा) निकाला गया था। यहां से पानी की निकासी रोकने के लिए इसे तुड़वा दिया गया है। साथ ही पानी को वापस नहर के माध्यम से झील में छोड़ दिया गया है।