व्हील चेयर पर युवाओं का भविष्य संवार रहा है यह शिक्षक
शारीरिक रूप से दिव्यांग जौनसार-बावर के रडू निवासी शिक्षक घर से विद्यालय तक व्हील चेयर के सहारे ग्रामीण नौनिहालों का भविष्य संवार रहे हैं।
त्यूणी, देहरादून [चंदराम राजगुरु]: 'हे पीड़ा, कर मुझको पीड़ित इतना कि, मैं हर हृदय की पीड़ा लिख सकूं और दर्द की टहनी पर आत्मीयता की नई पौध लगा संकू, लिखूं कुछ ऐसा कि सदियों से सोया इंसान जगा सकूं।' इन पंक्तियों के जरिये शारीरिक रूप से दिव्यांग जौनसार-बावर के रडू निवासी शिक्षक पूरण चौहान ने अपने संघर्षशील जीवन की दास्तां बयान की। शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में गहरी रुचि रखने वाले आदर्श विद्यालय राइंका त्यूणी के हिंदी प्रवक्ता पूरण चौहान ने कड़ी मेहनत से सफलता की बड़ी मिसाल पेश की है। घर से विद्यालय तक व्हील चेयर के सहारे ग्रामीण नौनिहालों का भविष्य संवार रहे इस शिक्षक ने अध्यापन के साथ ही दर्जनभर पुस्तकें भी लिखी हैं। इसके लिए उन्हें वर्ष 2008 में हिंदी साहित्य शिखर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।
सीमांत तहसील त्यूणी के साधारण परिवार में जन्मे पूरण चौहान ने पांचवीं तक की पढ़ाई गांव के प्राइमरी स्कूल में की। करीब पंद्रह वर्ष की उम्र में मांसपेशियों में खिंचाव की वजह से वह चलने-फिरने में कठिनाई महसूस करने लगे। लेकिन, कई अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी इसमें जब स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं आया तो व्हील चेयर ही जीवन का सहारा बन गई। हालांकि, पूरण ने इससे हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा। खेलने-दौड़ने की उम्र में पैरों के साथ नहीं देने से उनके हाथ में बैट-बॉल की जगह किताब-कलम आ गई।
करीबी दोस्तों के स्नेह एवं सहयोग से पूरण ने आगे की पढ़ाई पूरी की। एमए हिंदी साहित्य के साथ उन्होंने यूजीसी नेट व यू-सेट की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। वर्ष 2007 में उन्हें शिक्षा विभाग में नियुक्ति मिली और पहली पोस्टिंग अपने गांव रडू के ही प्राइमरी स्कूल में हुई। यहां पूरण ने चार साल तक गांव के बच्चों को बिना वेतन लिया पढ़ाया। साथ ही जीवन में बड़ा लक्ष्य पाने की कोशिश जारी रही। नतीजा वर्ष 2017 में उनका चयन आदर्श विद्यालय राइंका त्यूणी में हिंदी प्रवक्ता के पद पर हो गया।
दर्जनभर पुस्तकों का किया सृजन
44-वर्षीय इस साहसी शिक्षक ने करीब एक दर्जन पुस्तकें भी लिखी हैं। इनमें संयुक्त काव्य संग्रह अंतर्मन, धूप के रंग, मीठी सी तल्खियां (तीन भागों में), साहित्य रागिनी एवं प्रयास, मेधाली, एक आशियाना मेरा भी आदि पुस्तकें शामिल हैं। जौनसार के विख्यात कवि एवं साहित्यकार रतन सिंह जौनसारी को अपना आदर्श मानने वाले इस शिक्षक को ब्लॉक एवं जिला स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
'भविष्य' को संवारना सबसे बड़ा परोपकरा
शिक्षा के साथ सामाजिक चेतना की अलख जगाने वाले इस शिक्षक ने अपना घर नहीं बसाया। कहते हैं, बच्चों का भविष्य संवारने से बड़ा परोपकार कोई और नहीं हो सकता। इस कार्य में असीम आनंद की अनुभूति होती है।
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