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सरहद की हिफाजत के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान संभाले हैं ये रणबांकुरे

पिछले साढ़े तीन दशक से 127-गढ़वाल (टीए) ईको टास्क फोर्स कई वनस्पतिविहीन पहाड़ियों को फिर हरा-भरा कर दिया है।यह फोर्स डेढ़ करोड़ पौधे लगाने का कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है।

By Sunil NegiEdited By: Mon, 13 Mar 2017 11:00 PM (IST)
सरहद की हिफाजत के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान संभाले हैं ये रणबांकुरे
सरहद की हिफाजत के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान संभाले हैं ये रणबांकुरे
देहरादून, [सुकांत ममगाईं]: सरहद की हिफाजत करने वाले जवानों को रिटायरमेंट के बाद पर्यावरण संरक्षण की कमान मिली तो इन रणबांकुरों के हाथ पहाड़ की मिट्टी में भी रच-बस गए। हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण असंतुलन के खतरे से निपटने को 'हरित योद्धा' पूरी मुस्तैदी से जुटे हैं। पिछले साढ़े तीन दशक में उन्होंने कई वनस्पतिविहीन पहाड़ियों को फिर हरा-भरा कर दिया है। हम बात कर रहे हैं 127-गढ़वाल (टीए) ईको टास्क फोर्स की। यह फोर्स डेढ़ करोड़ पौधे लगाने का कीर्तिमान स्थापित कर चुकी है।
ईको टास्क फोर्स के गठन से सैन्य बहुल उत्तराखंड को दोहरा फायदा मिला। एक तो बड़ी संख्या में पूर्व सैनिकों को इससे रोजगार मिल रहा है और दूसरा यह फोर्स पर्यावरण संरक्षण का काम कर रही है। वर्तमान समय में करीब 550 पूर्व सैनिक पहाड़ों को हरा-भरा बनाने में जुटे हैं। 
ये लोग अपनी पौधशाला में विभिन्न प्रजाति के पौधे तैयार करते हैं तथा उन्हें गांव और वन पंचायत की भूमि पर रोपने का कार्य करते हैं। गढ़वाल मंडल की कंपनियों ने देहरादून, मसूरी, पौड़ी, केदारनाथ आदि स्थानों पर काम किया और अब वह जौनसार व गोपेश्वर में अभियान चला रहे हैं।
खास बात यह कि 80 के दशक में जब ईको टास्क फोर्स ने मसूरी में काम करना शुरू किया, उस वक्त यहां चूने की 25 से अधिक खदानें लगातार पर्वतों को खोखला बना रही थीं। उनके अभियान के बाद न सिर्फ खदान बंद की गईं, बल्कि टास्क फोर्स पर्यावरण को हो चुके नुकसान की भरपाई करने में भी कामयाब रही। 
टास्क फोर्स के सघन पौधरोपण अभियान से मिट्टी का कटान तो रुका ही, नमी का भी संरक्षण हुआ। ईको टास्क फोर्स की सफलता इस बात पर भी निर्भर है कि वह इस अभियान में स्थानीय लोगों को साथ लेकर चलते हैं। तभी हरियाली सहेजने की मुहिम में वह निरंतर सफलता के पग भर रहे हैं।
127-गढ़वाल (टीए) ईको टास्क फोर्स के कमान अधिकारी कर्नल एचआरएस राणा के अनुसार भूतपूर्व सैनिक एक पर्यावरणकर्मी के रूप में अच्छा काम कर रहे हैं। पर्यावरणीय बदलावों के बीच वह अपने दायित्व के प्रति पूरी तरह सजग हैं। इसका उदाहरण पहाड़ के वे क्षेत्र हैं, जो विभिन्न कारणों के चलते उजाड़ हो गए थे। ईको टास्क फोर्स के पर्यावरण प्रहरियों के कारण ही यह क्षेत्र फिर हरे-भरे हो गए हैं। यह मुहिम एक व्यापक एवं सतत अभियान के रूप में बढ़ती रहेगी।