उत्तराखंड के ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन का असर, 20 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पीछे खिसक रहा गंगोत्री ग्लेशियर
चमोली जिले के जिस क्षेत्र में आपदा आई वहां के आठ से अधिक ग्लेशियर पिछले 37 साल में 26 वर्ग किलोमीटर पीछे खिसके हैं। ये ग्लेशियर हर साल पांच से 30 मीटर तक की रफ्तार से खिसक रहे हैं। इसी तरह उत्तराखंड के अन्य ग्लेशियरों की सेहत भी नासाज है।
जागरण संवाददाता, देहरादून: चमोली जिले के जिस क्षेत्र में आपदा आई, वहां के आठ से अधिक ग्लेशियर पिछले 37 साल में 26 वर्ग किलोमीटर पीछे खिसके हैं। ये ग्लेशियर हर साल पांच से 30 मीटर तक की रफ्तार से खिसक रहे हैं। इसी तरह उत्तराखंड के अन्य ग्लेशियरों की सेहत भी नासाज है।इनके पीछे खिसकने की सालाना औसत दर 10 मीटर है। सबसे तेज 20 मीटर की दर से गोंगोत्री ग्लेशियर पीछे खिसक रहा है।
गंभीर यह कि गंगोत्री के अलावा केदारनाथ त्रासदी का कारण बने चौराबाड़ी ग्लेशियर समेत डुकरानी व दूनागिरी जैसे प्रमुख ग्लेशियर अपेक्षाकृत अधिक रफ्तार से पीछे खिसक रहे हैं। डुकरानी ग्लेशियर 18 मीटर की गति से पीछे खिसक रहा है। चौराबाड़ी में यह दर 09 तो दूनागिरी ग्लेशियर में 13 मीटर प्रतिवर्ष है। जिन ग्लेशियरों में अधिक बदलाव हो रहे हैं, वहीं झील फटने या एवलांच आने की घटनाएं भी अधिक होती हैं।
मोटाई भी हो रही कम
ग्लेशियर न सिर्फ तेजी से पीछे खिसक रहे हैं, बल्कि उनकी सतह की मोटाई भी निरंतर कम हो रही है। वाडिया संस्थान के अध्ययन के अनुसार उत्तराखंड के ग्लेशियरों की सतह 32 से 80 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रही है। हिमनद विशेषज्ञ डा. डोभाल के अनुसार ग्लेशियर पीछे खिसकने की रफ्तार जितनी अधिक होगी, उनकी मोटाई भी उसी रफ्तार से घटती चली जाएगी।
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इस तरह घट रही सतह (प्रतिवर्ष औसत सेमी में)
- गंगोत्री 80
- डुकरानी 75
- चौराबाड़ी 40
- दूनागिरी 33
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