ऋषि-मुनियों की प्रामाणिक अनुसंधान है संस्कृत भाषा
परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय अभ्युदय का अनवरत स्त्रोत विषय पर आयोजित दो दिवसीय संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में संस्कृत के विद्वानों व शोध छात्रों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
जागरण संवाददाता, ऋषिकेश : परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय अभ्युदय का अनवरत स्त्रोत विषय पर आयोजित दो दिवसीय संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में संस्कृत के विद्वानों व शोध छात्रों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
वैश्विक संस्कृत मंच तथा डा. शिवानंद नौटियाल स्नातकोत्तर राजकीय महाविद्यालय कर्णप्रयाग के संयुक्त तत्वाधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संस्कृत संगोष्ठी के समापन पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि 'तन्मे मन: शिवसंकल्प मस्तु।' हमारी सोच ही हमारी सृष्टि है। हमारी सोच ही हमारा संसार है, शेष सब विस्तार है इसलिए यहां से संस्कृत और संस्कृति को जागृत और जीवंत बनाने का संकल्प लेकर जायें। संकल्प विचार रूपी एक छोटा सा बीज है परंतु जब उसे सुरक्षित वातावरण मिलता है तो उसी बीज से वटवृक्ष रूपी पौधा बन जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे ऋषियों ने प्रामाणिकता और अनुसंधान के आधार पर संस्कृत भाषा और जीवन मूल्यों का निर्माण किया हैं। उन्हीं प्रामाणिक अनुसंधानों से भारतीय संस्कृति, संस्कार और साहित्य का प्रादुर्भाव हुआ है। भारतीय साहित्य और संस्कृति से जुड़ कर ही आज की युवा पीढ़ी अपनी जड़ें मजबूत कर सकती है।
कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार प्रो. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि हमारे चारों धामों में चार वेद विद्यालय होने चाहिए तथा उसका प्रमुख केन्द्र ऋषिकेश हो तो संस्कृत भाषा के विस्तार में विलक्षण परिवर्तन होगा। संगोष्ठी के समापन पर भारत के विभिन्न प्रांतों से आए संस्कृत के विद्वानों, आचार्यों, शोधार्थियों और छात्रों ने सहभाग कर संस्कृत के उत्थान, वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने रुद्राक्ष का माला पहनाकर और रुद्राक्ष का पौधा देकर सभी का अभिनंदन किया। इस अवसर पर डा. वाजश्रवा आर्य, डा. जनार्दन कैरवान, डा. देशबंधु भट्ट, डा. मृगांक मलासी, डा. सन्दीप भट्ट, डा शक्ति प्रसाद उनियाल, प्रो कर्मवीर सिंह, डा. जोरावर सिंह, डा. मदन शर्मा, कृष्ण गोपाल, विजेता पण्डित, रविन्द्र सिंह चमोली, अमित नौटियाल, सुशील, आशीष, भारती आदि मौजूद रहे।