सी-प्लेन के इंतजार में टिहरी झील
टिहरी झील में पर्यटन को गति देने के लिए दो साल पहले सी-प्लेन उतारने की योजना बनाई गई। निर्णय लिया गया कि यह वाटरड्रोम भी बनाया जाएगा। इसके लिए बकायदा प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए।
विकास गुसाईं, देहरादून: टिहरी झील में पर्यटन को गति देने के लिए दो साल पहले सी-प्लेन उतारने की योजना बनाई गई। निर्णय लिया गया कि यह वाटरड्रोम भी बनाया जाएगा। इसके लिए बकायदा प्रदेश और केंद्र सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। जोर शोर से यह प्रचार किया गया कि वाटरड्रोम की स्थापना के लिए करार करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बन गया है। इसके लिए टिहरी झील के निकट 2.5 हेक्टेयर जमीन भी चिह्नित की गई। तैयारियां भी शुरू हुई लेकिन यहां अभी तक सी-प्लेन नहीं उतर पाया है। दरअसल, इसके पीछे अब कुछ तकनीकी कारण भी बताए जा रहे हैं। जो स्थान सी-प्लेन को उतारने के लिए तय किया गया था, वहां इस समय बोटिंग की जा रही हैं। जिसका पर्यटक खासा लुत्फ उठा रहे हैं। सी-प्लेन उतारने की सूरत में इसे बंद करना पड़ेगा। इसके साथ ही इसके नजदीक का इलाका डैम की सुरक्षा के कारण बंद है।
अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर विभागों का सुस्त रवैया
सरकार ने लापरवाह व भ्रष्ट कर्मचारियों नकेल कसने के लिए कड़े कदम उठाने का एलान किया। कहा कि भ्रष्ट व लापरवाह अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जाएगी। इससे लगा कि सरकारी सेवाएं पटरी पर आ जाएंगी। अधिकारी व कर्मचारी अपने कार्य के प्रति ज्यादा गंभीर नजर आएंगे। कोई लापरवाही दिखाएगा तो उसे बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं लगाई जाएगी। शासन ने भी इसमें आदेश जारी करते हुए सभी विभागाध्यक्षों को ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित कर उनकी सूची शासन को भेजने के निर्देश दिए गए। इससे कर्मचारियों में हड़कंप भी मचा। विभागों ने सूची तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की। लापरवाह कार्मिकों के नाम ढूंढे जाने लगे। फिर अचानक ही इस मामले में ब्रेक लग गया। अब स्थिति यह है कि शासन रिमाइंडर भेजता है तो विभाग हरकत में आते हैं। अभी स्थिति यह है कि भ्रष्टाचार के मामलों में विभागीय संस्तुति पर मुख्यमंत्री खुद एक्शन ले रहे हैं।
शहरों के बाहरी आवरण में एकरूपता नहीं
योजना बनाई गई देवभूमि के शहरों को आकर्षक व मनमोहक बनाने की। इसके लिए राज्य के मुख्य मार्गों पर बने भवनों के आवरण में एकरूपता लाने की बात कही गई। उम्मीद यह कि इन मार्गों से गुजरने वाले यात्रियों को ये आकर्षित करें और इनकी तारीफ करे। इसके लिए कैबिनेट ने बकायदा बाहय आवरण (फसाड) नीति को मंजूरी दी। प्रविधान किया गया कि उत्तराखंड की संस्कृति और पारंपरिक शैली अपनाने पर भवन में एक अतिरिक्त मंजिल की छूट दी जाएगी। इसके अलावा शहरों-कस्बों में मुख्य मार्गों को भी साइन बोर्ड, फ्लैक्स, बैनर लगाकर चमकाया जाएगा। उम्मीद जताई गई कि अब जल्द ही देवभूमि बदले स्वरूप में नजर आएगी। अफसोस अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। कुंभ के मद्देनजर इस समय हरिद्वार में जरूर वाल पेंटिंग में उत्तराखंड की छवि नजर आ रही है। अन्य स्थानों के मुख्यमार्गों पर अभी भी भवन निर्माण में एकरूपता नजर नहीं आ रही है।
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बिजली पर अभी तक नहीं पूरा हक
टिहरी बांध के लिए स्थानीय निवासियों ने काफी कुछ खोया है। बांध निर्माण के लिए पर्यावरण का नुकसान हुआ तो स्थानीय लोग बेघर हुए। यहां तक कि उन्हें अपने पैतृक गांव व खेत तक छोडऩे पड़े। इस आस के साथ कि एक दिन इस बांध निर्माण से पूरे प्रदेश को फायदा होगा। पहाड़ का हर गांव बिजली से जगमगाएगा। अलग राज्य बनने के बाद यह आस और बलवती हुई। बांध परियोजना की शर्तों के मुताबिक प्रदेश को 25 फीसद बिजली मिलनी थी। उत्तर प्रदेश ने परिसंपत्तियों का बंटवारा तो किया लेकिन 25 फीसद बिजली देने में आनाकानी की। अभी उत्तराखंड को परियोजना क्षेत्र का राज्य होने के नाते केवल 12.5 प्रतिशत रायल्टी ही मिल पा रही है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जब भाजपा सरकारें आईं तो लगा यह मसला अब बातचीत से हल हो जाएगा। बावजूद इसके अभी तक इस मसले का कोई हल ही नहीं निकल पाया है।
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