राजभवन में नई नियुक्ति से मिशन 2019 की रणनीति पर कदम
केंद्र की भाजपा सरकार ने राज्यपालों की तैनाती में सोशल इंजीनियरिंग और महिला के हाथों में उत्तराखंड राजभवन की कमान सौंपकर मिशन 2019 की रणनीति पर कदम आगे बढ़ा दिए हैं।
देहरादून, [रविंद्र बड़थ्वाल]: मातृशक्ति के लंबे आंदोलन की कोख से जन्मे अलग राज्य उत्तराखंड में नए राज्यपाल की नियुक्ति के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। केंद्र की भाजपा सरकार ने राज्यपालों की तैनाती में सोशल इंजीनियरिंग और महिला के हाथों में उत्तराखंड राजभवन की कमान सौंपकर मिशन 2019 की रणनीति पर कदम आगे बढ़ा दिए हैं।
उत्तराखंड में पहली बार भाजपाई पृष्ठभूमि की किसी महिला को राज्यपाल का पद सौंपा गया है। केंद्र की मोदी सरकार की इस कवायद के चलते राज्य को दूसरी बार महिला राज्यपाल मिली हैं। इससे पहले केंद्र की पिछली यूपीए सरकार ने कांग्रेसी पृष्ठभूमि की तेजतर्रार महिला नेता माग्रेट आल्वा को उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया था। अलग उत्तराखंड राज्य को बनाने में मातृशक्ति की अहम भूमिका रही है।
भाजपाई हलकों में यह आम चर्चा है कि महिला नेता को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने के पीछे पार्टी की यही मंशा रही है। उत्तराखंड की नई राज्यपाल की नियुक्ति में महिला के साथ ही सोशल इंजीनियरिंग पर खास जोर दिया गया है। राज्य में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का ठीक-ठाक वोटबैंक है।
यह वोटबैंक हरिद्वार और नैनीताल यानी दो संसदीय सीटों पर काफी असर रखता है। भाजपा के रणनीतिकार भी स्वीकार कर रहे हैं कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर पार्टी हर तबके खासतौर पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं को लेकर बेहद सतर्क है।
वर्ष 2014 में बीते लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति मतदाताओं ने बड़ी संख्या में भाजपा पर भरोसा जताया था। इन मतदाताओं का यह भरोसा अभी पार्टी के साथ बना हुआ है। उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश समेत विभिन्न राज्यों के चुनाव नतीजों में भाजपा के बंपर प्रदर्शन को इसकी बानगी के तौर पर पेश किया जा रहा है।
अनुसूचित जाति के मतदाताओं में भाजपा के इस असर को खत्म करने के लिए विपक्षी दल लामबंद होना शुरू हो गए हैं। ऐसे में भाजपा को एक-एक संसदीय सीट के समीकरण को नए सिरे से खंगालना पड़ रहा है। उत्तराखंड में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पांचों संसदीय सीटों पर कब्जा किया है। पार्टी अगले चुनाव में भी अपने प्रदर्शन को दोहराने की कवायद में जुट गई है।
उत्तराखंड में राज्यपाल की नियुक्ति में सोशल इंजीनियरिंग के साथ महिला नेत्री को जोड़ने को केंद्र की मोदी सरकार के बड़े दांव के रूप में देखा जा रहा है।
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