Shanshkarshala: न्यूरो साइकोलाजिस्ट डा. सोना कौशल गुप्ता ने कहा- गंभीर मानसिक रोगों की तरफ धकेल रही स्क्रीन की लत
Shanshkarshala दैनिक जागरण के हेलो जागरण कार्यक्रम में न्यूरो साइकोलाजिस्ट डा. सोना कौशल गुप्ता ने जनता के सवालों के जवाब दिए। इस दौरान उन्होंने कहा कि स्क्रीन की बढ़ती लत आज गंभीर मानसिक रोगों का कारण बन रही है।
देहरादून। सूचना और तकनीक के इस दौर में इंसान इतना उलझ चुका है कि उसका आधे से ज्यादा समय हर रोज स्क्रीन के साथ बीत रहा है। खासकर मोबाइल तो उसका हर कदम का साथी बन चुका है। खाते-पीते, चलते-फिरते यहां तक कि सोते समय भी यह करीब रहता है।
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मोबाइल ने दिनचर्या बदल कर रख दी है। ऐसे में इसके भयावह शारीरिक, मानसिक और सामाजिक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं जो कि चिंताजनक है। इसको लेकर समाज में जागरूकता फैलाना आज समय की मांग बन चुकी है।
दैनिक जागरण ने इस विषय को लेकर राज्य कार्यालय में हेलो जागरण कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमें न्यूरो साइकोलाजिस्ट डा. (प्रोफेसर) सोना कौशल गुप्ता से दूरभाष के माध्यम से प्रदेशभर के लोगों ने प्रश्न पूछे। डा. गुप्ता का कहना है कि स्क्रीन की बढ़ती लत आज गंभीर मानसिक रोगों का कारण बन रही है। उन्होंने घर में स्क्रीन टाइम को निर्धारित करने की सलाह दी है।
- सवाल : मेरी बेटी तीन साल की है अधिकतर समय मोबाइल से खेलती रहती है, हम उसे लेकर चिंतित हैं। दीपक शर्मा, त्यागी रोड।
- जवाब : स्मार्ट फोन आपका है, घर आपका है और बेटी भी आपकी है। इसलिए उससे मोबाइल लेना भी आपकी जिम्मेदारी हैं। उसे मोबाइल के बजाय खेलकूद व सैरसपाटे पर लेकर जाएं, ताकि वह कम से कम समय मोबाइल पर वीडियो देख पाए।
- सवाल : स्मार्ट फोन की आदत न केवल युवा पीढ़ी में अधिक देखी जा रही है, बल्कि अधेड़ पुरुष व महिलाएं भी घंटों स्क्रीन के आगे रहती हैं। बीना रावत, विकासनगर।
- जवाब : स्मार्ट फोन के आगे घंटों समय व्यतीत करना हर वर्ग के लिए नुकसानदायक है। यदि युवा पीढ़ी को मोबाइल की लत से दूर रखना है तो पहले खुद को मोबाइल से दूर रखना होगा। अभिभावकों को देखकर बच्चों को मोबाइल की लत पड़ रही है।
- सवाल : मेरा बेटा सात वर्ष का है। वह दिन में आठ से दस घंटे मोबाइल पर गेम खेलता रहता है। मना करने पर रोने लगता है। जसवीर सिंह देहरादून।
- जवाब : बच्चे को स्मार्ट फोन की आदत अभिभावकों ने ही डलवाई, इसलिए उससे मोबाइल छीनने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। बच्चे को प्यार से समझाएं कि मोबाइल से होने वाले नुकसान कौन-कौन से हैं। उसे खेलकूद व अन्य गतिविधियों में व्यस्त करें।
- सवाल : अधिक समय स्क्रीन के सामने रहने वाले बच्चों के व्यवहार में भी चिड़चिड़ापन आ रहा है। इससे उन्हें कैसे बचाएं। राकेश शर्मा, गढ़ीकैंट।
- जवाब : यह सही बात है। दिन में आठ से दस घंटे मोबाइल पर गेम देखने वालों को इसकी लत लग चुकी है। इस लत को छुड़ाने के लिए अभिभावकों को अपने घर में स्क्रीन टाइम तय करना होगा। इसका पालन स्वयं करें, फिर बच्चों पर लागू करें।
- सवाल : अधिकांश लोग की जिंदगी मोबाइल में कैद हो गई है। कई पानी पीए बिना रह सकते हैं, लेकिन मोबाइल के बिना नहीं। सुमित कुमार, भानियावाला।
- जवाब : जिस प्रकार शराब, अफीम, गांजा जैसे नशे के कुछ लोग आदी होते हैं, उसी प्रकार कई मोबाइल देखे बिना एक मिनट नहीं रह सकते हैं। यह न केवल मानसिक बीमारी को जन्म दे रहा है, बल्कि शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचा रहा है। आत्मचिंतन से ही इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
- सवाल : मेरे घर पर दोनों बच्चे और बीबी का अधिकतर समय फोन पर चैट व गेम देखने में जाया हो रहा है। मुझे इससे परेशानी होती है। सोहन सिंह पंवार, धर्मपुर।
- जवाब : मोबाइल की लत से छुड़वाने के लिए आपको ही पहल करनी होगी। सबसे पहले पत्नी को इसके नुकसान समझाएं। फिर बच्चों को प्यार से बताएं कि मोबाइल के अधिक प्रयोग से मानसिक बीमारी होने का खतरा है। बच्चों के साथ खेलें, उन्हें घुमाने ले जाएं। उनका ध्यान मोबाइल से हट जाएगा।
स्क्रीन की लत छुड़ाने के लिए आजमाएं ये उपाय
- परिवार के लिए सप्ताह में एक दिन इंटरनेट फास्टिंग तय करें।
- भोजन करते समय मोबाइल व टीबी देखने की आदत पर रोक लगाएं।
- हर रोज घर में एक फैमिली टाइम निर्धारित करें, इस दौरान कोई भी मोबाइल का प्रयोग न करे।
- अभिभावक अपने बच्चे को इंटरनेट मीडिया की काल्पनिक दुनिया से परिचित कराएं।
- चार साल तक के बच्चे से मोबाइल छीन लें और रोने से घबराए नहीं। कुछ समय बाद वह मोबाइल को भूल जाएगा।