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Kedarnath Yatra: केदारनाथ के नए मार्ग पर सात बड़े एवलांच जोन, यूसैक ने इस मार्ग को बताया खतरनाक

आपदा में केदारनाथ जाने के पारंपरिक मार्ग के तबाह हो जाने के बाद जो नया मार्ग बनाया गया है। इसरो की नोडल एजेंसी यूसैक ने इस मार्ग पर एवलांच का खतरा बताया है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 06 Mar 2020 09:06 AM (IST)Updated: Fri, 06 Mar 2020 08:49 PM (IST)
Kedarnath Yatra: केदारनाथ के नए मार्ग पर सात बड़े एवलांच जोन, यूसैक ने इस मार्ग को बताया खतरनाक

देहरादून, सुमन सेमवाल। केदारनाथ क्षेत्र को वर्ष 2013 में आई आपदा से उबारने के लिए केंद्र सरकार यहां के पुनर्निर्माण कार्यों पर खास ध्यान दे रही है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन कार्यों की मॉनीटरिंग कर रहे हैं। हालांकि, आपदा में केदारनाथ जाने के पारंपरिक मार्ग के तबाह हो जाने के बाद जो नया मार्ग बनाया गया है, उसकी सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसरो की नोडल एजेंसी उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) ने इस मार्ग पर एवलांच (हिमस्खलन) का खतरा बताया है।

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यूसैक के निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजय राघवन के समक्ष सेटेलाइट चित्रों का प्रस्तुतीकरण देकर बताया कि केदारपुरी क्षेत्र में ही सात बड़े एवलांच जोन हैं। इसके अलावा गौरीकुंड तक कई छोटे एवलांच जोन भी हैं। निदेशक डॉ. बिष्ट ने बताया कि पूर्व में जो पारंपरिक मार्ग था, वह नदी के दायीं तरफ था। नया मार्ग भी इसी तरफ बनाया जाना चाहिए था। क्योंकि, इस क्षेत्र में सख्त चट्टानें हैं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि दायीं तरफ रोपवे बनाया जा सकता है।

एवलांच के साथ आए मलबे से बनी जगह

यूसैक निदेशक ने भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार को बताया कि आपदा के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हड़बड़ी में मार्ग निर्माण का कार्य शुरू करा दिया। जिस जमीन पर मार्ग बना है, वह इसलिए कच्ची है कि उसका निर्माण एवलांच के साथ आए मलबे से हुआ है।

शंकराचार्य के समाधि स्थल और सुरक्षा दीवार पर भी सवाल

यूसैक निदेशक डॉ. एमपीएस बिष्ट ने अपने प्रस्तुतीकरण में बताया कि केदारपुरी में आदि शंकराचार्य के समाधि स्थल को संरक्षित करने के लिए 100 मीटर की परिधि में करीब 60 फीट गहराई का रैंपनुमा स्थल बनाया गया है। पिछले सीजन में यहां 48 फीट बर्फ जम गई थी और सीजन के बाद भी 10 फीट तक बर्फ शेष थी। हर समय बर्फ रहने के बाद किस तरह यहां शंकराचार्य के दर्शन होंगे, यह बड़ा सवाल है। डॉ. बिष्ट ने केदारनाथ मंदिर के पीछे बनाई गई 90 फीट लंबी और करीब 15 फीट ऊंची सुरक्षा दीवार की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि इसकी नींव 1.5 मीटर से अधिक नहीं है।

जमा है 160 मीटर ऊंचाई का मलबा

यूसैक निदेशक ने प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार का ध्यान केदारपुरी क्षेत्र में 160 मीटर ऊंचे मलबे के ढेर की तरफ भी आकृष्ट कराया। उन्होंने कहा कि यह मलबा कभी भी पूरे वेग के साथ नीचे आ सकता है, लिहाजा इस क्षेत्र में गतिविधियों को नियंत्रित करने की जरूरत है।

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प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ने 20 मार्च को किया आमंत्रित

भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. के. विजयन राघवन ने यूसैक निदेशक के प्रस्तुतीकरण को गंभीरता से देखा और माना कि पुनर्निर्माण के कार्यों में विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। उन्होंने विस्तृत विश्लेषण के लिए निदेशक को 20 मार्च को दिल्ली बुलाया है। उन्होंने कहा कि वह इन सब बातों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष प्रमुखता से रखेंगे।

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