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पाडुलिपि सम्पदा के रहस्य उजागर करेंगे शोध

उत्तराखंड में मौजूद पाडुलिपि संपदा के रहस्यों को उजागर करने के लिए दून के कैंब्रियन हॉल स्कूल में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 May 2019 08:43 PM (IST)Updated: Thu, 16 May 2019 08:43 PM (IST)
पाडुलिपि सम्पदा के रहस्य उजागर करेंगे शोध
पाडुलिपि सम्पदा के रहस्य उजागर करेंगे शोध

जागरण संवाददाता, देहरादून : उत्तराखंड में मौजूद पाडुलिपि संपदा के रहस्यों को उजागर करने के लिए दून के कैंब्रियन हॉल स्कूल में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। राष्ट्रीय पाडुलिपि मिशन, संस्कृति मंत्रालय और पुराना दरबार आर्कलॉजिकल एंड मैटेरियल कलेक्शन ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का गुरुवार को आगाज हुआ। पहले दिन देशभर से जुटे पाडुलिपि विशेषज्ञों ने अपनी शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की।

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कार्यक्रम का शुभारंभ प्रकाशन विभाग के पूर्व महानिदेशक पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि, पूर्व मुख्य सचिव नृप सिंह नपलच्याल, पद्मश्री बसंती बिष्ट, पुराना दरबार के भवानी प्रताप सिंह, पाडुलिपि मिशन के श्रीधर बारिक, संस्कृत विवि की पूर्व कुलपति डॉ. सुधा रानी पाडे ने संयुक्त रूप से किया। कार्यक्रम संयोजक डॉ. देवेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि उत्तराखंड में पाडुलिपियों का पुराना इतिहास रहा है। यहा कई लोगों के घरों में पाडुलिपिया मिली हैं। हालाकि आधिकारिक तौर पर अभी इन पर बहुत कम काम हो सका है। प्रदेश की इस धरोहर को दुनिया तक पहुंचाने के उद्देश्य से यह राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है। प्रदेश के चारों धामों में भी पाडुलिपिया मौजूद हैं। इसे बड़े पैमाने पर पहचान दिलाने और आमजन तक प्रदेश की इस संपदा को पहुंचाने के लिए यह प्रयास किए जा रहे हैं। इस दौरान साहित्यकार डॉ. एससी ब्याला की टहकन से बनी जैमिनी याश्वमेध की पाडुलिपि पर आधारित शोध ग्रंथ का विमोचन भी किया गया।

कार्यक्रम के दौरान प्रकाशन विभाग के पूर्व महानिदेशक पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि, प्रो. यशवंत सिंह कठौच, प्रो. शिव प्रसाद नैथानी, डॉ. विष्णु दत्त कुकरेती, बीना बेंजवाल, विजय बहुगुणा आदि ने शोध पत्र प्रस्तुत किए।

खास आरती के साथ शुरुआत

जागर गायिका बसंती बिष्ट ने बदरीनाथ आरती के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। यह आरती बदरीनाथ के बर्थवालों के घर से 20 साल पहले मिली थी। पुराना दरबार के भवानी सिंह ने बताया कि यह आरती वर्ष 1750 में लिखी गई थी। यह बर्थवाल थोकीदारों के घर से मिली। जिनके घर में यह आरती मिली, उस परिवार को शुक्रवार को सम्मानित किया जाएगा।

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