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उत्तराखंड: जमीनी वादों की निस्तारण प्रक्रिया में होने वाला है बड़ा बदलाव, शहरी क्षेत्रों में जमीनी वाद नहीं सुन सकेंगे राजस्व कोर्ट

उत्तराखंड में जमीनी वादों के निस्तारण की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव होने वाला है। अब लैंड रेवेन्यू एक्ट-1901 के सेक्शन-28 के तहत विभिन्न राजस्व कोर्ट जमीनी प्रकरणों की सुनवाई नहीं कर पाएंगे। इस सेक्शन में विशेषकर खसरा खतौनी संबंधी वाद/प्रकरण आते हैं।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Wed, 21 Jul 2021 09:16 AM (IST)Updated: Wed, 21 Jul 2021 09:16 AM (IST)
उत्तराखंड: जमीनी वादों की निस्तारण प्रक्रिया में होने वाला है बड़ा बदलाव।

सुमन सेमवाल, देहरादून। उत्तराखंड में जमीनी वादों के निस्तारण की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव होने वाला है। अब लैंड रेवेन्यू एक्ट-1901 के सेक्शन-28 के तहत विभिन्न राजस्व कोर्ट जमीनी प्रकरणों की सुनवाई नहीं कर पाएंगे। इस सेक्शन में विशेषकर खसरा, खतौनी संबंधी वाद/प्रकरण आते हैं। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने संजय गुप्ता बनाम आयुक्त गढ़वाल मंडल के मामले में यह आदेश जारी किया है। लैंड रेवेन्यू एक्ट संबंधी प्रकरण अब सिविल न्यायालयों के समक्ष दाखिल किए जा सकेंगे।

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हाई कोर्ट के आदेश के क्रम में जिलाधिकारी देहरादून, मंडलायुक्त गढ़वाल और उत्तराखंड राजस्व परिषद ने भी संबंधित प्रकरण में सुनवाई करने से हाथ खींच दिए हैं। हालांकि, राजस्व विभाग के निचले कोर्ट में अभी यह व्यवस्था लागू नहीं की जा सकी है। अपर जिलाधिकारी कोर्ट, उप जिलाधिकारी कोर्ट व तहसील सदर की विभिन्न न्यायालयों में अभी भी इस तरह के वाद गतिमान हैं। इस तरह के कुछ मामले जिलाधिकारी कोर्ट में भी गतिमान हैं। पूर्व में नगर निकाय क्षेत्रों में राजस्व वादों का अधिकार उत्तराखंड सरकार एक गजट नोटिफिकेशन के तहत समाप्त कर चुकी थी। इसके बाद भी निचले स्तर पर नोटिफिकेशन को लागू नहीं कराया जा सका। इतना जरूर है कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब राजस्व की विभिन्न उच्च कोर्ट ने राजस्व वादों को खारिज करना शुरू कर दिया है।

राजस्व कोर्ट में मिलती है तारीख पर तारीख

यदि हाई कोर्ट के आदेश को जनता की नजर से देखा जाए तो इससे आमजन को बड़ी राहत मिलेगी। क्योंकि राजस्व अधिकारियों के पास प्रशासनिक जिम्मेदारी भी होती है। इसके चलते तमाम वादों में सिर्फ तारीख ही हिस्से आती है। वर्तमान में दून के छह राजस्व कोर्ट में हजारों केस गतिमान हैं। इनमें 90 फीसद मामले देहरादून नगर निगम क्षेत्र के ही हैं। वैसे भी तहसील सदर का करीब 90 फीसद भाग भी नगर निगम के क्षेत्र में आता है। इन कोर्ट की कार्यप्रणाली देखी जाए तो वादों के निस्तारण में लंबा समय लग जाता है। राजस्व न्यायालयों में कोर्ट फीसद के रूप में अच्छी खासी रकम जमा करने की बाध्यता न होने के चलते भी कई दफा जमीनी विवाद अनावश्यक रूप से भी दाखिल कर दिए जाते हैं।

तहसील में नहीं होंगे दाखिल खारिज

हाई कोर्ट के आदेश के क्रम में अब शहरी क्षेत्र की संपत्ति के दाखिल खारिज तहसील में नहीं हो पाएंगे। इस आदेश के क्रम में देहरादून तहसील सदर ने दाखिल खारिज से हाथ खींच लिए हैं। कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड म्यूनिसिपल कार्पोरेशन एक्ट 1975 के तहत दाखिल खारिज करने का अधिकार नगर निगम को है। वर्तमान में दून में हर माह दाखिल खारिज के करीब 2000 आवेदन किए जाते हैं। इनमें से 90 फीसद आवेदन नगर निगम क्षेत्र के ही होते हैं। वर्तमान में तहसील में दाखिल खारिज नही किए जा रहे हैं और दूसरी तरफ नगर निगम ने इस दिशा में कोई उचित कार्रवाई शुरू नहीं की है।

गढ़वाल मंडलायुक्त रविनाथ रमन ने बताया कि हाई कोर्ट ने एलआर एक्ट के सिर्फ सेक्शन 28 के तहत नगर निकाय क्षेत्र में राजस्व कोर्ट के अधिकार को समाप्त किया है। हालांकि, इस तरह की जानकारी मिली है कि राजस्व विभाग (शासन स्तर) प्रकरण में डबल बेंच में अपील करने की तैयारी कर रहा है।

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