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वन आरक्षी परीक्षा में दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप

पूर्व दर्जाधारी रविंद्र जुगरान ने प्रदेश सरकार और उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पर भर्ती परीक्षाओं को निरस्त करने में दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 08:45 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 08:45 PM (IST)
वन आरक्षी परीक्षा में दोहरे  मापदंड अपनाने का आरोप
वन आरक्षी परीक्षा में दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप

जागरण संवाददाता, देहरादून: पूर्व दर्जाधारी रविंद्र जुगरान ने प्रदेश सरकार और उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग पर भर्ती परीक्षाओं को निरस्त करने में दोहरे मापदंड अपनाने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि वन आरक्षी भर्ती परीक्षा को गड़बड़ी के साक्ष्य मिलने के बाद भी निरस्त नहीं किया गया। जबकि, वर्ष 2018 में कनिष्ठ अभियंताओं की परीक्षा को संदेह के आधार पर ही निरस्त कर दिया गया था।

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शनिवार को रविंद्र जुगरान ने बयान जारी कर कहा कि वन आरक्षी भर्ती परीक्षा में उपलब्ध साक्ष्यों को दरकिनार कर सरकार पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर मनमाना रवैया अपना रही है। उन्होंने कहा कि एक ओर परीक्षा में दर्जनों व्यक्तियों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर उन्हें जेल भेजा गया है। साथ ही दो दर्जन से भी अधिक अभ्यíथयों के नकल करने की पुष्टि हुई है। बावजूद इसके उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग और राज्य सरकार ने भर्ती परीक्षा को निरस्त नहीं किया।

दूसरी ओर वर्ष 2016 में उत्तराखंड पावर कॉर्पोरेशन और पिटकुल में कनिष्ठ अभियंता (जेई) के 280 पदों के लिए विज्ञप्ति जारी की गई थी। इस भर्ती की परीक्षा नवंबर 2017 में कराई गई। फरवरी 2018 में परीक्षा परिणाम जारी होने के बाद मार्च में सभी चयनित अभ्यíथयों का पुलिस वेरिफिकेशन भी कर दिया गया। इसके बाद कुछ असफल अभ्यर्थी कोर्ट चले गए। उनका आरोप था कि रुड़की के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट से इस परीक्षा में बड़ी संख्या में अभ्यर्थी चयनित हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्होंने नकल की है। कोर्ट के आदेश पर आयोग ने जिलाधिकारी हरिद्वार से जाच कराई। जिलाधिकारी हरिद्वार ने केवल संदेह को आधार बनाकर अपनी रिपोर्ट आयोग को प्रेषित की और आयोग ने शासन से इस परीक्षा को निरस्त करने की संस्तुति कर दी। केवल संदेह के आधार पर इस परीक्षा को निरस्त कर दिया गया।


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