Move to Jagran APP

झिलमिल कंजर्वेशन रिजर्व में बारहसिंघों पर लगेंगे रेडियो कॉलर

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने उत्तराखंड में बारहसिंघों (स्वैंप डीयर) के एकमात्र वासस्थल झिलमिल कंजर्वेशन रिजर्व में बारहसिंघों पर रेडियो कॉलर लगाने की इजाजत दे दी है।

By Sunil NegiEdited By: Published: Thu, 25 May 2017 12:59 PM (IST)Updated: Fri, 26 May 2017 05:05 AM (IST)
झिलमिल कंजर्वेशन रिजर्व में बारहसिंघों पर लगेंगे रेडियो कॉलर

देहरादून, [केदार दत्त]: केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने उत्तराखंड में बारहसिंघों (स्वैंप डीयर) के एकमात्र वासस्थल झिलमिल कंजर्वेशन रिजर्व में बारहसिंघों पर रेडियो कॉलर लगाने की इजाजत दे दी है। प्रथम चरण में चार बारहसिंघों पर ये कॉलर लगाए जाएंगे, जिनके जरिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के वैज्ञानिक इनके आचार-व्यवहार, माइग्रेशन, आनुवांशिकी, बीमारी समेत अन्य पहलुओं पर अध्ययन करेगें। इसमें सामने आने वाले नतीजों के आधार पर बारहसिंघों के संरक्षण को न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि उत्‍त प्रदेश की सीमा में भी प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।

loksabha election banner

हरिद्वार वन प्रभाग की चिड़ियापुर रेंज में गंगा नदी के किनारे 37.84 वर्ग किमी में फैला है झिलझिल कंजर्वेशन रिजर्व। राज्य में सिर्फ इसी दलदली क्षेत्र में पाए जाते हैं बारहसिंघे। यहां इनकी संख्या 320 के आसपास है, लेकिन मानवीय दखल से इनके स्वछंद विचरण पर भी असर पड़ा है। यही कारण भी है कि झिलमिल से निकलकर ये उत्तर प्रदेश की सीमा तक चले जा रहे हैं। जाहिर है, इससे उनके लिए खतरा भी पैदा हो गया है।

ऐसे में वन महकमे ने भारतीय वन्यजीव संस्थान से इनके वासस्थल, व्यवहार, माइग्रेशन आदि के कारणों की पड़ताल का निर्णय लिया। प्रमुख वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीवीएस खाती के मुताबिक इस सिलसिले में बारहसिंघों पर रेडियो कॉलर लगाने के लिए विभाग के प्रस्ताव को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने चार बारहसिंघों पर रेडियो कॉलर लगाने की मंजूरी दे दी है। अगले माह की शुरुआत में इन्हें लगाकर वन्यजीव संस्थान अध्ययन शुरू कर देगा। जरूरत पड़ने पर अगले चरण में अन्य बारहसिंघों पर भी रेडियो कॉलर लगाने की अनुमति के लिए आवेदन किया जाएगा।

जौलासाल से मिट चुके हैं बारहसिंघे

एक दौर में उत्तराखंड में जौलासाल (तराई पूर्वी वन प्रभाग) में भी बारहसिंघों का बसेरा था। जौलासाल में इनकी बहुलता को देखते इसे बाकायदा अभयारण्य तक का दर्जा दिया गया। 60 के दशक में यहां बसागत कराने के साथ ही एग्जॉटिक फॉरेस्ट्री (दूसरे देशों की प्रजातियों के पौधरोपण) के तहत जौलासाल के दलदली क्षेत्र व घास के मैदानों में पौधरोपण हुआ। नतीजतन, धीरे- धीरे बारहसिंघों का वासस्थल खत्म होने लगा और इसी के साथ जौलासाल में ये इतिहास के पन्नों में सिमट गए।

यह भी पढ़ें: हल्दूपड़ाव में निगहबानी करेंगे कर्नाटक के गजराज

यह भी पढ़ें: कॉर्बेट पार्क ने भरी सरकार की झोली, कमाया नौ करोड़ रुपये


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.