गांधी पार्क घोटाले की लोक निर्माण विभाग करेगा जांच, पढ़िए पूरी खबर Dehradun News
किड्स जोन में वित्तीय अनियमितता के मामले में नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने लोक निर्माण विभाग के निर्माण खंड को जांच सौंपने का आदेश दिया है।
देहरादून, जेएनएन। गांधी पार्क में अमृत योजना से बने किड्स जोन में वित्तीय अनियमितता के मामले में नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने लोक निर्माण विभाग के निर्माण खंड को जांच सौंपने का आदेश दिया है। सूचना के अधिकार में ली गई जानकारी में खुलासा हुआ है कि निगम अधिकारियों ने सामान खरीद में किस तरह लाखों रुपये की बंदरबांट की और बाजारभाव से तीन से चार गुना रेट पर सामान खरीदा। पिछले साल जून में यह खुलासा हुआ था लेकिन तत्कालीन अधिकारियों ने जांच पर पर्दा डाला हुआ था। जांच न होने पर बीते दिनों बोर्ड बैठक में भी मामला उठा था, तो महापौर सुनील उनियाल गामा ने मामले की कराने के आदेश दिए थे। पहले आइआइटी रुड़की को जांच दी जा रही थी लेकिन अब लोनिवि को जांच सौंपी गई है।
मामले में निगम के निर्माण, वित्त अनुभाग और अमृत प्रोजेक्ट के अफसरों की भूमिका सवालों में है। दरअसल, अफसरों का काम पार्क में चल रहे कार्य की गुणवत्ता जांच के साथ-साथ वहां लगाए जा रहे सामान की कीमत का मूल्यांकन करना भी था। आरोप है कि ठेकेदार ने जिस मूल्य के सामान की सूची निगम अधिकारियों को दी, उसे पास कर दिया गया। इसमें अफसरों को सामान के मूल्य का परीक्षण भी कराना था लेकिन यह प्रक्रिया पूरी तरह दरकिनार कर ठेकेदार को अनुचित तरीके से लाभ पहुंचाया गया।
आरोप है कि निर्माण की धरातलीय जांच के बिना अधिकारियों की ओर से तमाम बिलों के भुगतान की मंजूरी दे दी गई। नगर निगम में अन्य कार्यों के बिलों पर अक्सर अचड़न लगाने वाले वित्त अनुभाग ने भी गांधी पार्क से जुड़े बिलों का भुगतान करने में देरी नहीं लगाई।
इस तरह की बजट की बंदरबांट
बता दें कि, सूचना के अधिकार में यह खुलासा हुआ था कि बाजार में पांच से छह हजार रूपये में मिलने वाली एलईडी लाइट 28,600 रुपये की दर पर खरीदी गईं। यही नहीं बैठने वाली साधारण बेंच भी 18,000 की दर पर खरीदी गई। सामान्य पोलों की खरीद 55 हजार प्रति पोल की पर की गई। इतना ही नहीं बच्चों की टॉय ट्रेन साढ़े 12 लाख रुपये में खरीदी गई और हैरानी वाली बात ये है कि इसकी टीन शेड पर ही नगर निगम अधिकारियों ने 10 लाख रुपये का खर्च आना दर्शाया।
दबा दिया था मामला
मामले में तत्कालीन नगर आयुक्त ने अपर नगर आयुक्त को जांच सौंपी थी, मगर इस जांच को अपर आयुक्त ने यह टिप्पणीं कर लौटा दिया था कि मामला सिविल का है। ऐसे में सिविल के ही अधिकारी से इसकी जांच कराई जानी चाहिए। इसके बाद जांच फाइल दफन कर दी गई। जनवरी में दैनिक जागरण ने इसका खुलासा किया तो वर्तमान नगर आयुक्त ने दोबारा जांच फाइल खोली।
बाल आयोग ने भी मांगा है जवाब
बच्चों के पार्क में अनियमितता और गुणवत्ता से खिलवाड़ को लेकर उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी नगर आयुक्त से जवाब मांगा है। आयोग ने यह भी पूछा है कि निम्न गुणवत्ता की वजह से कोई हादसा हो गया तो जिम्मेदारी किसकी मानी जाएगी।
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