सावधान! कहीं आपके बच्चे को तो नहीं लग रही ये लत, बन सकते हैं मनोरोगी
छात्र-छात्राओं के सिर पबजी का नशा चढ़ता जा रहा है। बच्चों को इस लत से दूर न रखा गया तो पढ़ाई खराब होने के साथ उनके मनोरोगी बनने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
देहरादून, जेएनएन। जानलेवा ब्लू व्हेल के बाद अब पबजी स्कूली बच्चों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। आठ से 25 साल उम्र के छात्र-छात्राओं के सिर पबजी का नशा चढ़ता जा रहा है। पबजी में मिशन पूरा करने के लिए छात्र-छात्राएं घर से लेकर स्कूल तक मोबाइल से चिपके रहते हैं। बच्चों को इस लत से दूर न रखा गया तो पढ़ाई खराब होने के साथ उनके मनोरोगी बनने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।
राजधानी के स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं में स्मार्ट फोन का क्रेज बढ़ा है। इसके पीछे उनका फोन का शौक कम और गेम खेलने की लत ज्यादा है। पिछले साल ब्लू व्हेल ने भी दून के युवाओं को खूब लती बनाया, लेकिन अब पबजी यानि प्लेयर्स अननोन बैटलग्राउंड्स गेम का नशा युवाओं पर छाया हुआ है। स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाला हर दूसरा छात्र इस गेम की लती है या फिर इसकी चर्चा करता मिलता है।
बच्चों पर ध्यान दें परिजन
मोबाइल फोन आज जरूरत हो गए हैं। घर के हर सदस्य के पास मोबाइल फोन है। इसका उपयोग कैसे हो, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। टेक्नोलॉजी से बच्चों को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन अभिभावकों को यह तय करना होगा कि बच्चे कितनी देर तक मोबाइल पर गेम खेलें या फिर मोबाइल पर बात करें। पबजी, फ्री फायर, फोर्टनाइट जैसे गेम्स को लेकर बच्चों को जागरूक करने की जरूरत है। साथ ही, बच्चे इंटरनेट पर क्या देख रहे हैं, इस पर भी नजर रखने की जरूरत है।
पीएम भी बोले थे 'ये पबजी वाला है क्या'
दिल्ली में परीक्षा पर चर्चा के कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक परिजन के जवाब में कहा था कि ये पबजी वाला है क्या। उसके बाद यह बात मोबाइल पर गेम खेलने वाले बच्चों पर तंज के रूप में मारी जाती है, लेकिन जिस गेम को लेकर देश का प्रधानमंत्री भी चिंता जाहिर करते हों, उसके प्रति अभिभावकों को भी सजग होना पड़ेगा।
डा.सोना कौशल (न्यूरो साइकोलॉजिस्ट) का कहना है कि पढ़ाई में कमजोर और परिजनों से दूर रहने वाले बच्चे इस तरह के खेल में शामिल होते हैं। मिशन पूरा करने के चक्कर में वह इसकी लत में आ जाते हैं। मिशन पूरा न कर पाने में डिप्रेशन में आ जाते हैं। स्वयं को हीन भावना से देखते हैं। ऐसे बच्चों पर परिजनों और शिक्षकों को ध्यान देना चाहिए। जागरूकता से भी इस तरह की लत को दूर किया जा सकता है।
अशोक कुमार (पुलिस महानिदेशक अपराध एवं कानून व्यवस्था) का कहना है कि ब्लू व्हेल के बाद पबजी की लत युवाओं को बर्बाद कर रही है। मोबाइल की बजाय बच्चों को खेल मैदान में खेलना चाहिए। पढ़ाई की उम्र में बच्चों पर ध्यान देने की जरूरत है। स्कूल और कॉलेज में भी इसके प्रति जागरूकता लानी चाहिए।
पबजी के मारे, अपनों से हुए बेगाने
पबजी गेम की लत ने दून के पांच बच्चों को घर से भागने को मजबूर कर दिया। पुलिस का कहना है कि दिनरात मोबाइल पर पबजी खेलने के चलते परिजनों ने बच्चों को रोका था, इससे नाराज होकर बच्चों ने घर छोड़ने का कदम उठा लिया। मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने पांचों बच्चों को दिल्ली से बरामद कर लिया है। उन्हें परिजनों के सुपुर्द कर दिया गया है।
राजपुर पुलिस को 11 जुलाई को सपेरा बस्ती, शहंशाही आश्रम के रहने वाले शमून राणा, डेनियल ने तहरीर दी कि उनके बच्चे स्कूल जाने के बाद से गुमशुदा हैं। इसी तरह 22 जुलाई को सायरा बानो, संगीता पली मुखदेव व रामेश्वर ने भी अपने तीन बच्चों के गुमशुदा होने की तहरीर दी। पुलिस ने गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए टीम गठित कर राजपुर, कुठालगेट, कोल्हूखेत, रेलवे स्टेशन, आइएसबीटी, आदि इलाकों में तलाश शुरू की। यहां लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी देखी। इसके अलावा फोटो, पंपलेट और अन्य माध्यम से भी बच्चों की तलाश शुरू की, मगर बच्चों का कहीं पता नहीं चल सका।
परिजनों ने बताया कि बच्चे कुछ समय से फ्री-फायर और पबजी नामक गेम खेल रहे थे। इससे उन्हें बार-बार रोका जा रहा था। राजपुर थानाध्यक्ष नत्थीलाल उनियाल ने बताया कि बच्चों के पास मोबाइल भी था। इसी आधार पर सर्विलांस के माध्यम से बच्चों की लोकेशन निकाली गई। लोकेशन दिल्ली में मिली तो पुलिस टीम रवाना की गई। जहां मंगलवार को पुलिस ने दो बच्चों को बस अड्डा, मेट्रो स्टेशन और तीनों बच्चों को निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से बरामद कर लिया। बच्चों से पूछताछ की गई तो पता चला कि पबजी की लत ने उन्हें घर छोडऩे को मजबूर कर दिया। पुलिस ने पांचों बच्चों को दून लाने के बाद परिजनों के सुपुर्द कर दिया है। एसओ ने बताया कि इन बच्चों में से एक 10वीं और अन्य सातवीं में प्राइवेट और सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। पुलिस टीम में एसआइ ज्योति प्रसाद उनियाल, सिपाही अरुण राठौर, प्रमोद पंवार आदि शामिल रहे।
कंबल और कपड़े ले गए साथ
पबजी खेलने की लत से न केवल छात्रों ने घर छोड़ा बल्कि कंबल और कपड़े भी साथ ले गए। पुलिस के अनुसार बच्चे कुछ दिन दून के आस-पास रहे। मगर, इसके बाद रेल से सीधे दिल्ली पहुंचे। जहां बच्चे पबजी गेम खेलने का सेंटर तलाश रहे थे। बच्चों के पास मोबाइल फोन भी बताया गया।
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