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जानिए कौन हैं मेजर प्रिया सेमवाल, जिनका समंदर की उफनती लहरों पर दिखा हौसला; इस अभियान का हैं हिस्सा

दून की मेजर प्रिया सेमवाल चेन्नई से विशाखापट्टनम के बीच थल सेना की महिला अधिकारियों के पहले नौकायान अभियान का हिस्सा हैं। प्रिया सेमवाल को राज्य के प्रतिष्ठित तीलू रौतेली सम्मान से भी उन्हें नवाजा जा चुका है

By Raksha PanthriEdited By: Published: Sat, 19 Feb 2022 03:37 PM (IST)Updated: Sun, 20 Feb 2022 10:54 PM (IST)
जानिए कौन हैं मेजर प्रिया सेमवाल, जिनका समंदर की उफनती लहरों पर दिखा हौसला; इस अभियान का हैं हिस्सा
जानिए कौन हैं मेजर प्रिया सेमवाल, जिनका समंदर की उफनती लहरों पर दिखा हौसला।

जागरण संवाददाता, देहरादून। उत्तराखंड की बेटियों के साहस को सलाम। पर्वत शिखर से समंदर की उफनती लहरें तक इनके हौसले की कहानी कहती हैं। दून की मेजर प्रिया सेमवाल इसी हौसले की जीवंत मिसाल हैं। वह चेन्नई से विशाखापट्टनम के बीच, थल सेना की महिला अधिकारियों के पहले नौकायान अभियान का हिस्सा हैं। समुद्र की उफनती लहरों के बीच 44 फीट की एक नौका पर दस महिला अधिकारी इस अभियान को अंजाम दे रही हैं।

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900 नाटिकल मील के इस अभियान का मकसद महिला सशक्तीकरण की भावना को प्रोत्साहित करना है। साथ ही दुनिया को भारतीय सेना में महिला शक्ति का अहसास कराना है। प्रिया का मानना है कि यह अभियान लड़कियों को सेना में शामिल होने और देश सेवा को प्रेरित करेगा। मेजर प्रिया इससे पहले भी पश्चिम बंगाल के हल्दिया से पोरबंदर, गुजरात के बीच आर्मी सेलिंग एक्सपीडिशन का हिस्सा रह चुकी हैं। तब 50 सदस्यीय दल ने 45 दिन में समुद्र पर 3500 नाटिकल मील का सफर तय किया था। पर इस बार अभियान में केवल महिला अधिकारी शामिल हैं।

बता दें, धोरण गांव निवासी प्रिया के पति नायक अमित शर्मा 20 जून 2012 को अरुणाचल प्रदेश में सेना के आपरेशन आर्किड में शहीद हो गए थे। पति की मौत के बाद भी प्रिया ने हौसला नहीं खोया। उन्होंने हिम्मत दिखाते हुए सेना में जाने का फैसला लिया। 15 मार्च 2014 को प्रिया आफिसर्स ट्रेनिंग ऐकेडमी (ओटीए) चेन्नई से बतौर लेफ्टिनेंट पासआउट हुईं। उन्हें कई स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है।

राज्य के प्रतिष्ठित तीलू रौतेली सम्मान से भी उन्हें नवाजा जा चुका है। उनके भाई प्रवेश सेमवाल का कहना है कि ऐसी वीरांगनाओं को राज्य सरकार को एक रोल माडल के रूप में पेश करना चाहिए। उन्हें स्कूलों में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार इस और पहल कर चुकी है, पर वीरभूमि उत्तराखंड में अभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है।

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