दून अस्पताल की बत्ती हुई गुल, चार कर्मियों को भेजा नोटिस
दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में शनिवार को फिर एक बार बत्ती गुल हो गई। हुआ यह कि लाइट गई और जनरेटर भी नहीं चला। इस मामले में चार कर्मियों को नोटिस भेजा गया है।
देहरादून, जेएनएन। दून मेडिकल कॉलेज चिकित्सालय में शनिवार को फिर एक बार बत्ती गुल हो गई। हुआ यह कि लाइट गई और जनरेटर भी नहीं चला। अच्छी बात यह रही कि करीब सात-आठ मिनट में समस्या से पार पा लिया गया। ऑपरेशन थियेटर या अन्य किसी भी तरह से दिक्कत नहीं हुई। इस मामले में अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने तुरंत अस्पताल में तैनात बिजली कर्मियों को तलब किया। उन्हें लताड़ लगाई। उन्होंने कहा कि इस तरह की दिक्कत बार-बार आ रही है। इससे पहले भी दो तीन बार ऐसा हुआ है। कहा कि कर्मचारी गलती से भी सबक नहीं ले रहे हैं। ऐसा क्यों है कि बार-बार जनरेटर से बैकअप मिलने में देरी होती है।
उन्होंने कहा कि आगे से इसकी पुनरावृत्ति न हो। अगर कहीं विद्युत लाइन में फॉल्ट है तो उसे भी दुरुस्त किया जाए। उन्होंने इस बावत चार बिजली कर्मचारियों को नोटिस देकर जवाब तलब किया है। कहा कि आइंदा ऐसी दिक्कत आई तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। बता दें, कुछ वक्त पहले महिला अस्पताल की भी बत्ती गुल हो गई थी। तब भी जनरेटर से बैकअप नहीं मिल पाया था। इस कारण चिकित्सकों को मोमबत्ती व मोबाइल की रोशनी में डिलिवरी करनी पड़ी थी। लेकिन बार-बार समस्या उत्पन्न होने के बाद भी इसका स्थायी समाधान नहीं हो पाया है।
ग्लूकोमा से बचाव को निकाली जागरूकता रैली
यदि किसी को मधुमेह और उच्च रक्तचाप की शिकायत है और परिवार में किसी को पहले से काला मोतिया या चश्मे का अधिक नंबर है तो वह सावधान रहें। क्योंकि ये लक्षण ग्लूकोमा का हो सकता है। ऐसे लक्षण वाले लोगों को चिकित्सक के संपर्क में रहना चाहिए, ताकि दवा व सर्जरी से बीमारी को रोका जा सके। यदि ऐसा नहीं होता तो आंखों की रोशनी तक जा सकती है। यह बात दून मेडिकल कॉलेज में नेत्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील ओझा ने दी।
मेडिकल कॉलेज में 10 से 16 मार्च तक ग्लूकोमा सप्ताह मनाया जा रहा है। इस दौरान तकरीबन 500 मरीजों की जांच की गई। इनमें पांच मरीजों का एडवांस्ड ग्लूकोमा था। जबकि पंद्रह मरीजों को फाकोमॉर्फिक ग्लूकोमा पाया गया। दो मरीजों का काला मोतिया का ऑपरेशन भी किया गया। शनिवार को ग्लूकोमा जागरूकता रैली का आयोजन किया गया। बताया गया कि जानकारी के अभाव में लोगों को इस बीमारी का पता देर से चलता है और तब तक यह बीमारी लाइलाज हो चुकी होती है। ग्लूकोमा को 'साइलेंट साइट स्नैचरÓ भी कहा जाता है क्योंकि इसकी वजह से आंखों को होने वाली क्षति गंभीर होती है। देश में इस रोग के बारे में जागरूकता बहुत कम है, लेकिन सतर्कता बरतने पर इससे बचा जा सकता है। 40 वर्ष के बाद ग्लूकोमा का खतरा कई ज्यादा बढ़ जाता है। इस दौरान चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा, डॉ. एमके पंत, डॉ. अनंत सिन्हा, डॉ. हरिशंकर पांडे समेत तमाम संकाय सदस्य व एमबीबीएस के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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