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स्वाद एवं सेहत से भरपूर पहाड़ी दालें

उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराएं ही नहीं, यहां के खान-पान में भी एक अलग ही स्वाद है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 29 Nov 2018 03:00 AM (IST)Updated: Thu, 29 Nov 2018 03:00 AM (IST)
स्वाद एवं सेहत से भरपूर पहाड़ी दालें

दीपिका नेगी, देहरादून : उत्तराखंड की संस्कृति एवं परंपराओं ही नहीं, यहां के खान-पान में भी विविधता का समावेश है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर उत्तराखंडी खान-पान में मोटी दालों को विशेष स्थान मिला हुआ है। यहां होने वाली दालें राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है। खास बात यह कि उत्तराखंडी दालें जैविक होने के साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहद लाभदायी हैं। इनकी खेती गढ़वाल-कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में की जाती है। हालांकि अब कई संस्थाओं और संगठनों के माध्यम से इन्हें बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है। ताकि काश्तकारों को इनका अच्छा मूल्य मिल सके और लोग पारंपरिक खेती के प्रति भी आकर्षित हों। औषधीय गुणों से भरपूर पहाड़ी दालें

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गहथ (कुलथ): हल्के भूरे रंग की गहथ पहाड़ की औषधीय गुणों वाली प्रमुख दाल है। इससे गथ्वाणी, फाणु, पटुंगी, भरवा परांठे, खिचड़ी आदि व्यंजन बनाए जाते हैं। यह गुर्दे की पथरी में बेहद कारगर होती है। वर्तमान में इसकी कीमत 140 रुपये प्रति किग्रा है। तोर: हरे और भूरे रंग वाली तोर (तुअर) अरहर की ही एक प्रजाति है, जो मैदानी अरहर से बिल्कुल अलग है। पहाड़ी तोर का दाना छोटा है। तोर का शोरबा या सूप बनाकर पीने से सर्दी दूर होती है। यह 240 रुपये प्रति किग्रा की कीमत पर बाजार में बिक रही है। नौरंगी दालें: आकर्षक नौ रंगों में उगने वाली नौरंगी की दालें बेहद सुपाच्य होती है। इन्हें रैस, रयांस, तितर्या व झिलंगा भी कहते हैं। यह 100 रुपये प्रति किग्रा की कीमत में बाजार में उपलब्ध हैं। भट (सोयाबीन): काले, भूरे और सफेद रंग में पाए जाने वाले भट की छह प्रजातियां उत्तराखंड में मिलती हैं। काले भट में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और ओमेगा-3 पाया जाता है। इससे बनने वाला चुड़कानी व डुबके बेहद स्वादिष्ट होते हैं। भट की कीमत 100 रुपये प्रति किग्रा है। पहाड़ी उड़द: पहाड़ी उड़द के पकौड़े और चैसूं का जायका बेहद लजीज होता है। बासमती और रानी पोखरी इसकी लोकप्रिय प्रजातियां हैं। यह 100 रुपये प्रति किग्रा के हिसाब से बाजार में बिक रही है। छेमी (राजमा): उत्तराखंड में राजमा को छेमी के नाम जाना जाता है। हर्षिल, चकराता, जोशीमठ और मुनस्यारी में होने वाली राजमा पूरे देश में सर्वोत्तम किस्म की मानी जाती है। पहाड़ की राजमा आसानी से पकने वाली और स्वाद में उत्तम होती है। इसकी तासीर गर्म होती है। इसकी कीमत 190 रुपये प्रति किग्रा से 220 रुपये प्रति किग्रा है। लोबिया (सुंठा): लोबिया की दाल आमतौर पर रोजाना घरों में बनाई जाती है। हल्के पीले और सफेद रंग की लोबिया में अन्य दालों के मुकाबले फाइबर की मात्रा अधिक होती है। यह 100 रुपये प्रति किग्रा की कीमत में बाजार में बिक रही है। दालों में पोषणमान प्रति ग्राम

दालें, जल, प्रोटीन, वसा, कार्बोज, फाइबर, कैल्शियम (मिग्रा), फास्फोरस (मिग्रा), आयरन, ऊर्जा (कैलोरी)

राजमा, 12, 22.9, 1.3, 60.6, -, 260, 410, 6.8, 346

उड़द, 10.9, 24, 1.4, 59.6, 0.9, 154, 385, 9.1, 347

गहथ, 11.8, 22, 0.5, 57.2, 5.3, 287, 3.11, 8.4, 321

लोबिया, 13.4, 24.1, 1, 54.5, 3.8, 77, 414, 5.9, 323

तोर, 13.4, 22.3, 1.7, 57.6, 1.5, 73, 304, 5.8, 335

भट, 8.1, 43.3, 19.5, 20.9, 3.7, 240, 690, 11.5, 432

नौरंगी, 10.4, 25, 0.6, -, 4.8, 450, 393, 6, -

(स्रोत: बीज बचाओ आंदोलन के सूत्रधार विजय जड़धारी की पुस्तक उत्तराखंड में पौष्टिक खानपान की संस्कृति से लिए गए आंकड़े।) बढ़ रही जागरूकता

दून में पहाड़ी उत्पादों के विक्रेता संजय कोठियाल ने बताया कि लोग अब पारंपरिक अनाजों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। इनकी खरीदारी का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है। पहाड़ी दालें सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। हाई प्रोटीन वैल्यू होने के साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती हैं। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। वहीं गहथ की दाल की तासीर गर्म होती है, जो गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद होती है। इसका सूप बुखार और निमोनिया आदि में लाभदायक है।

-डॉ. नवीन जोशी, वरिष्ठ आयुर्वेद चिकित्सक, देहरादून उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत

उत्तराखंड में कृषि के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हिमालयन एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी महेंद्र सिंह कुंवर ने बताया कि पहाड़ में खेती उत्पादन कम हो रहा है। इसकी कई वजह हैं। सरकार और स्थानीय लोगों को मिलकर इसके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए काम करने की जरूरत है। मार्केट में इनकी मांग अधिक है, लेकिन इस हिसाब से उत्पादन काफी कम है। बताया कि संस्था की ओर से चमोली, उत्तरकाशी, देहरादून, बागेश्वर आदि जिलों में पहाड़ी अनाजों की खेती और उत्पाद तैयार करने का काम किया जा रहा है। संस्था के अंतर्गत 38 संगठन काम कर रहे हैं और करीब 45 हजार लोग इस रोजगार जुड़े हुए हैं।


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