धन सिंह रावत बोले, उत्तराखंड में होगा उच्च शिक्षा आयोग का गठन
उत्तराखंड में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लाने और विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने को लेकर सरकार जल्द ही उच्च शिक्षा आयोग का गठन करेगी।
देहरादून, जेएनएन। उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लाने और विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता देने को लेकर सरकार जल्द ही उच्च शिक्षा आयोग का गठन करेगी। साथ ही प्रदेश के प्रत्येक जिले में एक मॉडल महाविद्यालय चयनित किया जाएगा, जिसमें छात्रों की बायोमैट्रिक उपस्थिति ली जाएगी। इस नियम को अगले चरण में प्रदेश के सभी कॉलेजों में भी लागू किया जा सकता है। यह बात उच्च शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. धन सिंह रावत ने यूटीयू में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि कही।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जो बिंदु सुझाव में शुमार हैं, उनमें से कुछ पर तो उत्तराखंड में पहले से ही अमल किया जा रहा है। कहा कि प्रदेश में 10 सितंबर से पहले छात्र संघ चुनाव संपन्न करा दिए जाएंगे। चुनाव पूरे प्रदेश में एक ही दिन होंगे। अगले सत्र से गरीब बच्चों के लिए शुरू की गई सुपर-30 योजना को सुपर-50 के रूप में परिवर्तित किया जाएगा। जिसके तहत 150 मेधावियों को द्वाराहाट, श्रीनगर और देहरादून कोचिंग सेंटरों में शामिल किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस वर्ष सुपर 30 के 82 छात्र आइआइटी के लिए चयनित हुए हैं। राज्य के विवि में गढ़वाली और कुमाऊंनी अध्ययन केंद्र खोले जा रहे हैं।
इस मौके पर भारतीय शिक्षा मंडल उत्तराखंड प्रांत के अध्यक्ष मनोहर सिंह रावत, भारतीय शिक्षक मंडल के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री ओम प्रकाश सिंह, कार्यक्रम के संयोजक प्रो. संदीप विजय, सह संयोजक भारत भूषण वशिष्ठ, सह संयोजक अशोक मनोड़ी आदि मौजूद रहे।
कॉलेज बंक करने वाले छात्रों के घर पहुंची चिट्ठी
डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि कॉलेजों में पढ़ रहे जिन छात्रों की उपस्थिति 180 दिन से कम होगी उन्हें परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा। पिछले वर्ष 23 सौ से अधिक छात्र ऐसे थे जिनकी उपस्थिति 180 दिन से कम थी। कक्षाओं से बंक मारने वाले छात्रों के अभिभावकों को उन्होंने चिट्ठी भेजी और चेताया कि भविष्य में दोबारा उपस्थिति कम हुई तो कॉलेज में दाखिले से वंचित कर दिया जाएगा।
यूटीयू मुख्यमंत्री सेवा योजना से जुड़ा: कुलपति
राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए यूटीयू के कुलपति प्रो. नरेंद्र एस चौधरी ने कहा कि उत्तराखंड में शिक्षा गुणवत्ता के लिए यूटीयू निरंतर कार्य कर रहा है। विवि में शिक्षा, शोध एवं तकनीकी शिक्षा विस्तार पर कार्य किया जाए रहा है। मुख्यमंत्री सेवा योजना से जुड़कर विवि के छात्र पलायन जैसे मुद्दे पर कार्य कर रहे हैं।
'राष्ट्रीय शिक्षा नीति में' 88 फीसद आबादी को मिलेगा हिन्दी में अधिमान
'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' के 453 पृष्ठ के प्रारूप में सबसे बड़ा आमूलचूल परिवर्तन और सार्थक पहल यह है कि देश की 88 फीसद आबादी के लिए अब उच्च शिक्षा की पढ़ाई हिन्दी में भी उपलब्ध होगी। देश के प्रतिष्ठित आइआइटी व आइआइएम में अंग्रेजी के अलावा हिन्दी में भी पढ़ाई शुरू हो चुकी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत के पुराने गौरव को लौटने के रूप में उपयोगी सिद्ध होगी। यह बता भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने उत्तराखंड तकनीकी विवि के सभागार में कही।
उत्तराखंड प्रांत भारतीय शिक्षण मंडल और उत्तराखंड तकनीकी विवि (यूटीयू) के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता मुकुल कानिटकर ने बताया कि भारतीय शिक्षण मंडल की ओर से राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जिन बिंदुओं को सुझाव के रूप में दिया गया था उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने 60 फीसद तक स्वीकार कर लिया है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर विश्व का सबसे बड़ा विमर्श देश में 60 दिन चला।
उन्होंने कहा कि स्वयं उन्होंने इस प्रारूप का अध्ययन किया। इसके बाद 48 पृष्ठों के सुझाव तैयार किए गए, जिसमें देशभर के साढ़े चार लाख लोगों को इससे जोड़ा। डेढ़ लाख लोगों ने भारतीय शिक्षण मंडल को अपने सुझाव दिए। इसके बाद 60 फीसद सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शामिल कर लिए गए हैं। उन्होंने बताया कि किसी भी देश की सरकार में केंद्रीय शिक्षा मंत्री को भारत की तरह मानव संसाधन विकास मंत्री नहीं कहा जाता है। यह शब्द दोषपूर्ण है। मानव 'रिसोर्स' नहीं 'सोर्स' है। रिसोर्स व्यवसाय ये जुड़ा शब्द है। जबकि शिक्षा व्यवसाय नहीं है। इसलिए दुनिया की बड़े-बड़े सम्मेलनों में देश के शिक्षा मंत्री को न्यौता ही नहीं मिलता है।
1823 तक था भारत पूर्ण साक्षर मुकुल
कानिटकर ने शिक्षा के क्षेत्र में भारत के गौरवमयी इतिहास से परिचय करवाया। बताया कि यह प्रमाण आज भी पोर्टल में विद्यमान हैं कि देश 1823 तक शत फीस साक्षर था। यहां नालंदा और तक्षशिला जैसे विवि विश्व प्रसिद्ध थे। भारत विवि में गणित, सर्जरी, ज्यामिति और भौतिक विज्ञान में विश्वभर में सर्वेपरि था।
भारतीय शिक्षण मंडल ने दिए यह सुझाव
-मानव संसाधन विकास मंत्री पदनाम के स्थान पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री होना चाहिए।
-देश में चुनाव आयोग की तर्ज पर शिक्षा आयोग का गठन किया जाए।
-शिक्षा आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री और सदस्यों में 50 फीसद शिक्षाविद हों
-देश की संपूर्ण शिक्षा शिक्षक के हाथ में हो। शिक्षक ही शिक्षा व्यवस्था पर निर्णय लें
-शिक्षा नीति लचीली हो, नौवीं से 12वीं तक छात्र को 40 विभिन्न विषयों की पढ़ाई का मौका मिले।
- उच्च शिक्षा भारतीय भाषा में शुरू हो। देश में केवन 12 फीसद लोगों ने स्वीकार कि वह अंग्रेजी में काम करते हैं।
- नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को और अधिक सशक्त बनाया जाए।
- अध्यापकों को शिक्षण संस्थान में वीआइपी अधिकार मिले।
- बेहतर शिक्षण कार्य के लिए गोल्ड मेडल का प्रावधान हो।
- शिक्षण की गुणवत्ता में वृद्धि के लिए इंडक्शन प्रोग्राम और विभिन्न ट्रेनिंग की व्यवस्था।
- व्यवसायिक शिक्षा ऐसी हो जिसमें हमारे युवा नौकरी करने वाले नहीं नौकरी देने वाले बनें।
- शिक्षा में पूर्ण स्वायत्तता देकर उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के मानक तैयार किए जाएं।
-'शिक्षा दशांश' के तहत पूर्व छात्र अपने पुराने शिक्षण संस्थानों के लिए अपनी आय का दस फीसद दान करें।
-प्रदेश की जीडीपी का छह फीसद शिक्षा के क्षेत्र में व्यय हो।
- भारत के विश्वविद्यालय दुनियाभर में अपने कैंपस खोलें ताकि विदेशी मुद्रा बढ़े।
- देश के विश्वविद्यालय में विदेशी छात्र को पढ़ाई और शोध के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र किताबी ज्ञान लेने के बजाय वोकेशनल कोर्स से जुड़ें।
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