एक नजर इधर भी : पर्वतीय क्षेत्रों में कब बजेगी मोबाइल की घंटी
उत्तराखंड के कई गांव ऐसे हैं जहां आज भी मोबाइल कनेक्टिविटी नहीं है। इसमें सामरिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण सीमांत गांव शामिल हैं। इसकी कमी आपदा और महामारी के दौर में महसूस की गई। यह मामला कई बार केंद्र के समक्ष भी उठाया जा चुका है।
विकास गुसाईं, देहरादून। अब जमाना फोर जी से फाइव जी की ओर जा रहा है, लेकिन उत्तराखंड के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी मोबाइल की घंटी सुनने को ग्रामीणों के कान तरस रहे हैं। इसका कारण यह नहीं है कि ग्रामीणों के पास मोबाइल फोन नहीं हैं।
फोन हैं लेकिन लचर संचार सेवाओं के कारण मोबाइल कनेक्टिविटी अभी तक दुरुस्त नहीं हो पाई है। सामरिक दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण सीमांत गांवों में भी अमूमन यही स्थिति है। इसके लिए स्थानीय ग्रामीण व जनप्रतिनिधि लगातार सरकार से पत्राचार कर रहे हैं।
यह मसला केंद्र के समक्ष भी उठाया जा चुका है। केंद्र से आश्वासन तो मिला, लेकिन बजट के अभाव में प्रस्तावित डिजिटल फाइबर योजना आगे नहीं बढ़ पा रही है।
मोबाइल कनेक्टिविटी न होने का सबसे अधिक असर आपदा और महामारी के दौर में महसूस किया गया। बावजूद इसके सरकार इस मोर्चे पर अभी तक सफल नहीं हो पाई है।
पर्यटन को पंख दे सकता है सी प्लेन
उत्तराखंड का नैसर्गिक सौंदर्य बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां अभी ऐसी कई स्थान हैं, जो पर्यटकों की निगाह से दूर हैं। इन सभी पर्यटन स्थलों की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।
इनमें से एक सी प्लेन योजना है। सरकार ने कुछ वर्ष पूर्व प्रदेश की झीलों में सी प्लेन उतारने की योजना बनाई थी। कहा गया कि इससे पर्यटन का रोमांच बढ़ेगा और पर्यटक सीधे इन झीलों तक पहुंच सकेंगे।
प्राथमिकता में टिहरी झील को रखा गया। कहा गया कि सबसे पहले सी प्लेन टिहरी झील में उतारा जाएगा। टिहरी में तो सी प्लेन अभी तक उतर नहीं पाया है, लेकिन अब सरकार ने प्रदेश के चार और स्थानों पर सी प्लेन उतारने की योजना बनाई है। उम्मीद है कि सरकार इस संबंध में केंद्र से संवाद कर योजनाओं को जल्द से जल्द जल्द धरातल पर उतारेगी।
विधानसभा शिफ्ट करने पर गंभीरता से हो काम
विधानसभा के छोटे परिसर और सत्र के दौरान स्थानीय निवासियों को होने वाली दिक्कतों को देखते हुए छह वर्ष पूर्व विधानसभा को अन्यत्र शिफ्ट करने का निर्णय लिया गया। इसके लिए रायपुर में जमीन चिह्नित की गई। तीन साल पहले पर्यावरणीय अनुमति भी मिल गई।
अब सारा मसला राजनीतिक इच्छाशक्ति पर टिक गया है। कारण यह कि यहां प्रस्तावित स्थल पर विधानसभा भवन निर्माण को कोई कदम नहीं उठाया गया है। शायद यही कारण है कि विधानसभा शिफ्टिंग के लिए छह साल में विधानसभा में गिनती की कुल दो बैठकें हुई।
नतीजा यह कि आज भी विधानसभा सत्र के दौरान स्थानीय जनता व स्कूली बच्चों को जाम व प्रदर्शन की समस्या से लगातार जूझना पड़ता है। सभी राजनीतिक दल यदि वाकई जनसमस्याओं पर गंभीर है, तो उन्हें विधानसभा को शिफ्ट करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति के साथ मिलकर गंभीरता पूर्वक चिंतन मनन करना होगा और तेजी से कदम बढ़ाने होंगे।
निकाय मजबूत करने को जरूरी है 74वां संशोधन
निकायों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने और खुद के पैरों पर खड़ा करने के लिए बनाया गया 74वां संशोधन प्रदेश में अभी तक लागू नहीं हो पाया है। इस अवधि में तीन महापौर बदल चुके हैं, चौथे कुर्सी पर हैं, मगर कोई भी इसे लागू करने को सरकार पर दबाव नहीं डाल पाया।
इससे निकाय आज भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार का मुंह ताक रहे हैं। दरअसल, निकायों के लिए बनाए गए 73 व 74वें संशोधन में निकायों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
इसके तहत म्यूटेशन से लेकर बिजली व पानी के बिल भी निकायों में जमा करने की व्यवस्था है। सरकार ने अभी निकायों को केवल मलिन बस्तियों के सुधार, नगरीय सुख सुविधा, जन्म-मरण सांख्यिकी व सार्वजनिक सुख सुविधाओं से संबंधित अधिकार दिए हैं। पूर्ण अधिकार हासिल न होने से निकायों की आर्थिकी मजबूत नहीं हो पा रही है।