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अफसोस अब तक पर्वतीय जोतों की नहीं हुई चकबंदी, पढ़िए पूरी खबर

मकसद था उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की बिखरी जोतों को एक करने का ताकि किसानों को एक ही स्थान पर खेती योग्य बड़ी जोत मिल सके। अफसोस अब तक ऐसा हुआ नहीं।

By Sunil NegiEdited By: Published: Fri, 14 Feb 2020 05:07 PM (IST)Updated: Fri, 14 Feb 2020 05:07 PM (IST)
अफसोस अब तक पर्वतीय जोतों की नहीं हुई चकबंदी, पढ़िए पूरी खबर
अफसोस अब तक पर्वतीय जोतों की नहीं हुई चकबंदी, पढ़िए पूरी खबर

देहरादून, विकास गुसाईं। मकसद था उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की बिखरी जोतों को एक करने का, ताकि किसानों को एक ही स्थान पर खेती योग्य बड़ी जोत मिल सके। हिमाचल व सिक्किम जैसे पर्वतीय राज्यों की सलाह ली गई। विधानसभा में विधेयक तक पारित हुआ। अफसोस चार साल बाद आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में चकबंदी एक सपना बनकर ही रह गई है। नतीजा, जिस पलायन को रोकने के लिए यह योजना बनाई गई थी, वह अभी तक बदस्तूर जारी है। दरअसल, प्रदेश सरकार ने वर्ष 2016 में सदन में भूमि चकबंदी एवं भूमि-व्यवस्था विधेयक पारित किया। इसमें देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंह नगर को छोड़ शेष नौ जिलों को शामिल किया गया। कृषि, उद्यानीकरण व पशुपालन की जमीन को भी इसके दायरे में लाने का निर्णय लिया गया। इससे पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ी कि अब वे एक बड़ी जोत में खेती कर सकेंगे। अफसोस अब तक ऐसा हुआ नहीं।

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कब उड़ेगी हेली एंबुलेंस

प्रदेश में आपदा और दुर्घटनाओं में घायलों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा दिलाने की तस्वीर खींची गई। इसके केंद्र में रखी गई हेली सेवाएं। नाम दिया गया हेली एंबुलेंस सेवा। वर्ष 2016 में इस दिशा में पत्रावली बननी शुरू हुई। इसमें प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में अस्पतालों और विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी का हवाला देकर दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों के निवासियों की स्वास्थ्य संबंधी पीड़ा को उकेरा गया। सभी बिंदुओं को समाहित करते हुए वर्ष 2018 में प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया। दिसंबर 2018 में इसके लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से आर्थिक मदद भी मिली। जनवरी 2018 में इस एंबुलेंस सेवा के शुरू होने की उम्मीद जताई गई। बाकायदा कई हेली कंपनियों ने प्रस्तुतिकरण दिए। बावजूद इसके सरकार का किसी कंपनी से करार नहीं हो पाया। स्थिति यह है कि न तो पर्वतीय क्षेत्रों में अभी समुचित इलाज मिल पा रहा है और न ही जल्द इलाज के लिए हेली एंबुलेंस सेवा।

स्कूलों की भारी फीस

सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर नकेल कसने का दावा किया। फीस के बोझ से दबते अभिभावकों ने राहत की सांस ली। उम्मीद जगी कि अब उन्हें स्कूलों की मनमानी का सामना नहीं करना पड़ेगा। न स्कूलों से मनमानी कीमत पर पुस्तक और यूनिफॉर्म खरीदनी पड़ेगी, न अनावश्यक शुल्क देना होगा। इस इंतजार में एक-एक कर तीन साल गुजर गए। बावजूद इसके अभी तक फीस एक्ट धरातल पर नहीं उतर पाया है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने इसके लिए प्रयास नहीं किए। सरकार ने एक्ट बनाया। इसमें कड़े मानक बनाए गए। सत्र से पहले फीस सार्वजनिक करने से लेकर तीन साल तक फीस बढ़ोतरी न करने तक का प्रविधान किया गया। स्कूलों ने इस पर आपत्ति जताई तो सरकार बैकफुट पर आ गई। फिर इसमें बदलाव की बात हुई, जो अभी तक नहीं हो पाया है। नतीजतन, अभिभावक आज भी स्कूलों की मनमानी से जूझने को बाध्य हैं।

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उच्च शिक्षा चयन बोर्ड

प्रदेश के डिग्री कॉलेजों में पूरे शिक्षक होंगे तो विद्यार्थियों को अध्ययन के लिए दूसरे जिलों अथवा बाहरी राज्यों में नहीं जाना पड़ेगा। इस उद्देश्य के साथ सरकार ने वर्ष 2012 में उच्च शिक्षा चयन बोर्ड बनाने का निर्णय लिया। कारण यह कि लोक सेवा आयोग से भर्ती में अधिक समय लगता है। आठ साल में तकरीबन पांच बार इस पर अलग-अलग निर्णय लिए जा चुके हैं। मौजूदा सरकार भी इसके पक्ष में है। बावजूद इसके बोर्ड धरातल पर नहीं उतर पा रहा है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) में देश में दूसरे नंबर पर है। यहां 150 से अधिक सरकारी व निजी कॉलेज व एक केंद्रीय विश्वविद्यालय भी है। ऐसे में प्रदेश में उच्च शिक्षा की महत्ता को समझा जा सकता है। बस कमी है तो केवल शिक्षकों की। बावजूद इसके अभी तक शिक्षकों की कमी दूर नहीं हो पाई है।

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