न्यूज बुलेटिनः सुबह नौ बजे तक की उत्तराखंड की पांच बड़ी खबरे
न्यूज बुलेटिनः सुबह नौ बजे तक की उत्तराखंड की पांच बड़ी खबरे। डंडे के बल पर गुलदार के जबडे से मां को खींच लाया अर्जुन। फलक पर चमक रहे उत्तराखंड के तारे, किए बड़े कारनामें।
डंडे के बल पर गुलदार के जबडे से मां को खींच लाया अर्जुन
जेएनएन, टिहरी। मां को बचाने के लिए डंडे के बल पर गुलदार से भिड़ने वाले बडियार मालगांव निवासी अर्जुन सिंह पूरे टिहरी सहित पूरे क्षेत्र में वीरता का प्रतीक है। इस बाल दिवस दैनिक जागरण अर्जुन की बहादुरी को सलाम करता है। इस दिलेरी के चलते राजकीय इंटर कॉलेज मथकुड़ीसैंण में कक्षा 12 में पढ़ रहे 17 वर्षीय अर्जुन का चयन राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए किया गया।
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2.पिता के सपनों को आकार दे रहा त्यूणी का लाल रोहन
चंदराम राजगुरु, देहरादून। गायिकी के शौकीन जौनसार के लाखामंडल निवासी प्रतिभावान बाल कलाकार रोहन खेलने-कूदने की आयु में अपने सपनों की उड़ान भर रहा है। संगीत के क्षेत्र में बड़ा मुकाम पाने की हसरत पाले ये बाल कलाकार हाथ में माइक लेकर अपनी आवाज का जादू बिखेर रहा है।
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3.बारह साल की उम्र में 'व्यास' बन गए आयुष
जेएनएन, उत्तरकाशी। उम्र 12 साल, नाम आयुष कृष्ण नयन निवासी कंडाऊ नौगांव, लेकिन खास बात यह कि आयुष कृष्ण नयन को श्रीमद भागवत के 18 अध्याय याद हैं तथा वेदों की अच्छी जानकारी है। अभी तक आयुष कृष्ण नयन ने अभी तक दस से अधिक स्थानों श्रीमद भागवत कथा का वाचन कर दिया है।
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4.फलक पर चमक रहे उत्तराखंड के तारे, किए बड़े कारनामें
जेएनएन, देहरादून। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन पर बाल दिवस यूं तो हम वर्ष 1956 से मनाते आ रहे हैं, मगर इस दिवस की प्रासंगिकता आज के दौर में अधिक नजर आती है। चाचा नेहरू बच्चों में जो भविष्य तलाश करते थे, आज उसकी न सिर्फ अपार संभावनाएं हैं, बल्कि हमारे जूनियर आशा से कहीं आगे बढ़कर प्रतिभा का जलवा बिखेर रहे हों। बात चाहे शिक्षा की हो या खेल की या फिर गीत-संगीत-कला और साहस की, आज हमारे ये धरती के तारे सफलता के असमान पर अपनी चमक खूब बिखेर रहे हैं।
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5.बाल दिवस: दून में बसता था चाचा नेहरू का मन
जेएनएन, देहरादून। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का दून से गहरा रिश्ता रहा है। वर्ष 1906 में वह मसूरी आए और दून व मसूरी के अतुलनीय सौंदर्य के मुरीद हो गए। उन्होंने देश की आजादी की खातिर दून की जेल में चार बार कैद रहे थे। पुरानी जेल की कोठरी में वर्ष 1932 से 1941 के बीच वह 878 दिन कैद रहे। प्रिंस चौक के पास पुरानी जेल परिसर में बना नेहरू वार्ड आज भी चाचा के संघर्षों की याद दिलाता है। इसी दौरान उन्होंने भारत एक खोज के कई अंश भी लिखे।