ऊर्जा निगम प्रबंधन की अजीब है कार्यप्रणाली, जांच रिपोर्ट पर निगम प्रबंधन ने मारी कुंडली
शासन के निर्देश पर जिस घोटाले की जांच कर रिपोर्ट तैयार की गई थी उस पर ऊर्जा निगम प्रबंधन ने कुंडली मारकर बैठ गया।
देहरादून, जेएनएन। ऊर्जा निगम प्रबंधन की कार्यप्रणाली भी अजीब है। शासन के निर्देश पर जिस घोटाले की जांच कर रिपोर्ट तैयार की गई थी, उस पर निगम प्रबंधन ने कुंडली मारकर बैठ गया। करोड़ों रुपये के इस घोटाले में आठ अधिकारियों और कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया था। शासन के बार-बार निर्देश के बावजूद निगम प्रबंधन परीक्षण के नाम पर इस रिपोर्ट को चार माह से दबाए बैठा है और अब इसकी जांच नए सिरे से कराने की बात कही जा रही है।
मामला काशीपुर डिविजन में बिजली लाइन की शिफ्टिंग से जुड़ा हुआ है। शिफ्टिंग के नाम पर अनियमितताओं की जांच की शिकायत यूपीसीएल के अधिकारियों से की गई थी। लेकिन, इस पर यूपीसीएल के अधिकारियों ने चुप्पी साध ली थी। मामला प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचा, तो हरकत में आए शासन ने ऊर्जा निगम को मामले की जांच के आदेश दिए।
जांच ऊर्जा निगम के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता काशीपुर राजकुमार को सौंपी गई। जांच में उन्होंने पाया कि बिल्डरों के साथ मिलकर दोषी अधिकारियों ने यूपीसीएल को करोड़ों रुपये की चपत लगाकर अकूत संपत्ति अर्जित की है, जिसमें उन्होंने अवर अभियंता राजेश सिंह बिष्ट, टीजी-द्वितीय दीपक कर्नाटक, अधिशासी अभियंता के पद पर रहे विवेक कांडपाल, विजय कुमार सकारिया, अधिशासी अभियंता तरुण कुमार, उपखंड अधिकारी सुनील कुमार, तकनीकी सहायक चंद्रमोहन पाठक व विद्युत सेल्फ हेल्प गु्रप कर्मी रंजीत को दोषी करार दिया था। उन्होंने दोषियों से वसूली के साथ ही उनके निलंबन तक की संस्तुति जांच रिपोर्ट में की है। जांच रिपोर्ट उन्होंने दिसंबर में यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक को सौंप दी थी।
इसके बाद परीक्षण के नाम पर यूपीसीएल इस जांच रिपोर्ट को दबाए बैठा रहा। जबकि सचिव ऊर्जा राधिका झा ने कई बार प्रबंध निदेशक को जांच रिपोर्ट जल्द शासन को सौंपने के निर्देश दिए। जांच रिपोर्ट सौंपे लगभग चार महीने बाद अब ऊर्जा निगम ने जांच अधिकारी और जांच रिपोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। लिहाजा निगम प्रबंधन ने घोटाले की दोबारा जांच के लिए कमेटी गठित कर दी है। कमेटी को जल्द ही जांच रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं।
दोषियों को बचाने की तो नहीं हो रही कोशिश
बीसीके मिश्रा ( प्रबंध निदेशक ऊर्जा निगम) का कहना है कि जिस जांच के लिए ऊर्जा निगम ने स्वयं ही जांच अधिकारी नियुक्त किया था, उस जांच रिपोर्ट पर ही निगम प्रबंधन के खुद असंतुष्ट होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। जांच में आठ अधिकारियों और कर्मचारियों को दोषी ठहराया गया था। बताया जा रहा है कि इनमें से कु छ अधिकारियों की अच्छी सेटिंग-गेटिंग है। इसके साथ ही जांच रिपोर्ट के नाम पर जांच रिपोर्ट को परीक्षण के नाम पर लगभग चार महीने दबाए रखा गया। ऐसे में कहा जा रहा है कि निगम प्रबंधन दोषियों की बचाने की कोशिश जुगत में लगा है। जो जांच रिपोर्ट सौंपी गई है, उसमें कई खामियां हैं। रिपोर्ट का परीक्षण कर दोबारा से कमेटी गठित कर दी गई है। कमेटी को जल्द जांच रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।
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