Sanskaarshala: इंटरनेट मीडिया पर अनावश्यक दिखावे से बचने की है आवश्यकता, आइए थोड़ा समझदार बने
यह आकांक्षा अगर सीमा में हो तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है लेकिन जब यही स्वभाव हमारी कमजोरी बन जाती है तो हम किसी भी हद तक जाकर अपनी सुंदरता ऐश्वर्य धन-संपदा वैभव आदि का दिखावा करने से नहीं चूकते।
देहरादून: दूसरे की नजरों में अपने लिए तारीफ के भाव देखना मानव का स्वभाव है और शायद संपूर्ण जीव जगत में मानव को ही यह विशेष अनुकंपा हासिल है। अपनी इसी भूख को शांत करने के लिए इंसान नित नये प्रयोग करता रहता है। इसी प्रयोग का एक उदाहरण है 'इंटरनेट मीडिया, इंटरनेट की आभासी दुनिया'। हम सब व्यक्तियों की नजरों में अपने लिए सम्मान और तारीफ की आकांक्षा करते हैं। यह आकांक्षा अगर सीमा में हो तो हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है, लेकिन जब यही स्वभाव हमारी कमजोरी बन जाती है तो हम किसी भी हद तक जाकर अपनी सुंदरता, ऐश्वर्य, धन-संपदा, वैभव आदि का दिखावा करने से नहीं चूकते। इंटरनेट मीडिया ने तो आग में घी का काम किया है।
पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चे का संबंध चाहरदीवारी के अंदर नितांत निजी होता है, जहां वे एक-दूसरे को पूर्ण करते हुए जीवन को सफल बनाने का प्रयत्न करते हैं। जब पति या पत्नी एक दूसरे को शुभकामना देने के लिए इंटरनेट मीडिया का आसरा लेने लगें तो समझ लेना चाहिए कि हम एक ऐसी बीमारी की जद में हैं जिससे हम ही नहीं आने वाली कई पीढ़ियां भी इसका शिकार होने वाली हैं। इंटरनेट मीडिया पर संबंधों का दिखावा, महंगे गहने, कपड़े, गाड़ी, बंगला या विदेश यात्रा के वीडियो डालकर आमजन को यह दिखाना कि हम सबसे अलग हैं बड़ा हास्यास्पद है।
भारत जैसे गरीब देश में जहां करोड़ों लोग एक वक्त का खाना खाते हैं, वहां पर इस प्रकार का दिखावा मानसिक विकलांगता से अधिक कुछ भी नहीं है। व्यक्ति को एक अच्छा जीवन जीने का पूर्ण अधिकार है और उसके लिए वह मेहनत भी करता है। अगर उसे अपने जीवन में धन संपदा और ऐश्वर्य का आशीर्वाद मिला है तो कहीं ना कहीं उसकी मेहनत या पूर्वजों का आशीर्वाद उस पर बना हुआ है, लेकिन यही सुख सुविधा जब बीमारी बनकर दिखावे का रूप ले लेती है, तब एक खतरा बन कर सामने आता है।
निजी बातों को इंटरनेट मीडिया पर साझा करना अनचाही समस्याओं को न्योता देना होता है। ऐसे कई उदाहरण है। शादी या पार्टी के लिए तैयार होते हुए पति-पत्नी और बच्चे घर से निकलते हुए इंटरनेट मीडिया पर स्टेटस डालते हुए। जब तक वापस आते हैं तो घर से सारा सामान गायब पाते हैं। घर से बाहर जा रहे हैं चार दिन में लौट आएंगे, वापस आने पर ना घर का पता और ना घर में रखी हुई कीमती चीजें, सब गायब। इसी प्रकार अपनी रोज के स्टेटस को मेंटेन करना कि हम कब कहां हैं, आपको अवांछित तत्वों से खतरे में डालता है।
बड़ों की देखा-देखी छोटी बच्चियां भी अपना स्टेटस डाल कर घर से निकलती हैं और अपने आप को एक अनजाने खतरे में डालकर विनाश को न्योता देती हैं। उसी प्रकार व्यक्तिगत चीजें साझा करते-करते हम आभासी दुनिया में जीने लगते हैं। यही झूठ हमेशा अच्छा लगने लगता है। न तो सुंदरता सच्ची है और न ही तथ्य जो हम डालते हैं, लेकिन हमें पढ़ने और देखने वाला समाज का एक हिस्सा ऐसा भी है जो हमें अक्सर फालो करने लगता है।
हमारे लाइफस्टाइल से प्रभावित होकर वह उसके अंदर एक असंतोष की भावना पैदा होने रखते हैं जो गृह क्लेश को जन्म देता है और कई बच्चों में हीन भावना बढ़ने लगती है। कई बच्चे रोज की अनियंत्रित जरूरतों को पूरा करने के लिए गलत संगत में पड़ जाते हैं। अब आप समझ सकते हैं कि आपकी व्यक्तिगत हरकतें समाज के लिए कितनी घातक हैं। आइए थोड़ा समझदार बने और समाज में एक अच्छा उदाहरण पेश करें।
विभा नौडियाल, शिक्षक, केंद्रीय विद्यालय संगठन
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