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पहाड़ के हर रायता का अलग ही मजा, स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी

पहाड़ में रायता खाने की परंपरा पीढ़ि‍यों से चली आ रही है। यह रायता स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी होता है। लौह तत्व इसमें काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Sat, 29 Feb 2020 08:13 PM (IST)
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पहाड़ के हर रायता का अलग ही मजा, स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी
देहरादून, जेएनएन। पहाड़ में मारसा, चौलाई या रामदाना के हरे साग (पत्तों) का रायता खाने की परंपरा पीढ़ि‍यों से चली आ रही है। अपनी पुस्तक 'उत्तराखंड में खानपान की संस्कृति' में विजय जड़धारी लिखते हैं कि यह रायता स्वादिष्ट होने के साथ ही पौष्टिक भी होता है। लौह तत्व इसमें काफी अधिक मात्रा में पाया जाता है। उस पर यह पहाड़ का बेहद सस्ता एवं आसान भोजन है। कारण, मारसा खेतों में अपने आप उग जाता है और इसका रायता बनाने के लिए अतिरिक्त साधन भी नहीं जुटाने पड़ते। इसके अलावा बथुवा, पहाड़ी आलू और साकिना की कलियों के रायते का भी अपना अलग ही मजा है।

बेहद आसान है मारसा का रायता बनाना

मारसा का रायता बनाने के लिए उसकी हरी-मुलायम पत्तियों और अग्रभाग को अच्छी तरह साफ कर लें। फिर इन्हें इन्हें पतीले में ढक्कन रखकर उबालें और उबलने पर चिमटे से ढक्कन हटा लें। जब साग ठंडा हो जाए तो इसे दोनों हाथों से निचोड़कर पानी को निथार लें। अब इस साग को सिल-बट्टे में पीस लें या फिर हाथ से ही अच्छी तरह मसलकर और करछी से घोंटकर महीने बना लें। इस घुटे हुए साग को ताजा दही के साथ अच्छी तरह मिलाएं और इसमें स्वादानुसार नमक, मिर्च व मसाले डाल लें। तैयार है मारसा का जायकेदार हरा रायता। आप इसमें हींग व जीरे का तड़का भी लगा सकते हैं। फिर देखिए झंगोरा, चावल या रोटी के साथ खाने में मजा आ आएगा। आप चाहें तो उबले हुए मारसा को छौंककर सूखे साग के रूप में भी इसका लुत्फ ले सकते हैं।

खून बढ़ाने वाला बथुवा का रायता

बथुवा का रायता बनाने की विधि भी मारसा का रायता बनाने जैसी ही है। बथुवा भी पहाड़ में बहुतायत में मिल जाता है। अब तो शहरों में भी इसकी खूब बिक्री होती है। पहाड़ में जंगली बथुवा के अलावा हिमालयी बथुवा का भी रायता बनाया जाता है। इसकी पत्तियां बहुत बड़ी होती हैं और यह ज्यादा स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होता है। इसमें भी लौह तत्व की बहुतायत है।

जख्या के तड़के वाला आलू का रायता

पहाड़ी तोमड़ी, खोपटी या सामान्य आलू के रायते का भी अपना अलग ही जायका है। इसके लिए सबसे पहले आलू को साफ कर कम पानी में उबाल लें। फिर छिलके निकालकर इनका चूरा बना लें। लेकिन, ध्यान रहे कि यह चूरा मसीटा न बने। फिर ताजा दही में आलू के चूरे को अच्छी तरह मिलाएं। साथ ही स्वादानुसार लहसुन, मुर्या (मोरा) व धनिये का हरा नमक भी इसमें मिला लें। चाहें तो राई या जख्या के तड़के साथ इसे छौंक भी सकते हैं। तैयार है आलू का जायकेदार रायता। आप भात, झंगोरा या रोटी के साथ इसका जायका ले सकते हैं, मजा आ जाएगा। हां, अगर पहाड़ी आलू की पारंपरिक किस्म उपलब्ध न हो तो किसी भी आलू से रायता बनाया जा सकता है।

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साकिना की कलियों का रायता

साकिना (सकिन या सकीना) की कलियों को फूल आने से पहले या अर्द्धफूल सहित उबाल लें। इसके बाद कलियों की छोटी-छोटी डंडियों को अलग कर इन्हें सिलबट्टे या मिक्सी में महीन पीस लें। फिर इस मसीटे को दही के साथ मिलाकर इसमें जरूरत के हिसाब से नमक, मिर्च व अन्य मसाले मिला लें। तैयार है साकिना का स्वादिष्ट रायता। गढ़वाल में इसे 'कथेली' कहते हैं। यह पेट संबंधी बीमारियों की रामबाण औषधि है। पहाड़ में तो महिलाएं साकिना की कलियों को धूप में सुखाकर सुरक्षित रख लेती हैं। इन सूखी कलियों का रायता भी बहुत स्वादिष्ट एवं औषधीय गुणों वाला होता है।

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