Move to Jagran APP

Mirza Ghalib: मसूरी की वाइन के दीवाने थे मिर्जा गालिब, पहली बार मुगल दरबार में चखा था वाइन का स्वाद

Mirza Ghalib उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब का भले ही पहाड़ों की रानी मसूरी से सीधा वास्ता न रहा हो लेकिन मसूरी में बनी बीयर व वाइन के वो दीवाने थे। तब अंग्रेज मुगलों को भी मसूरी से शराब की आपूर्ति करते थे। गालिब ने इसे तभी चखा था।

By Sumit KumarEdited By: Published: Sun, 27 Dec 2020 07:30 AM (IST)Updated: Sun, 27 Dec 2020 07:30 AM (IST)
Mirza Ghalib: मसूरी की वाइन के दीवाने थे मिर्जा गालिब, पहली बार मुगल दरबार में चखा था वाइन का स्वाद
उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब मसूरी में बनी बीयर व वाइन के वो दीवाने थे।

सूरत सिंह रावत, मसूरी: Mirza Ghalib उर्दू के मशहूर शायर मिर्जा गालिब का भले ही पहाड़ों की रानी मसूरी से सीधा वास्ता न रहा हो, लेकिन मसूरी में बनी बीयर व वाइन के वो दीवाने थे। तब अंग्रेज मुगलों को भी मसूरी से शराब की आपूर्ति करते थे। गालिब ने भी इसे तभी चखा था। फिर तो इसका सुरूर उनके दिलो-दिमाग पर इस कदर छा गया था कि वह अक्सर कहा करते, 'मसूरी की हवा मे ही नहीं, पानी में भी नशा है। ' 

loksabha election banner

गालिब और शराब का रिश्ता उनकी नज्म 'गालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी, पीता हूं रोज-ए-अब्र ओ शब-ए-माहताब में' में साफ झलकता है। गालिब लिखते भी हैं कि उनकी शायरी में मसूरी की 'ओल्ड टॉम ' व्हिस्की की लचक भी शामिल है। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि जब भी गालिब के पास पैसे होते, वह मसूरी में बनी बीयर व वाइन के लिए दिल्ली के चांदनी चौक स्थित बल्लीमारान इलाके से घोड़े पर सवार होकर मेरठ छावनी पहुंच जाते थे। मसूरी में ओल्ड ब्रेवरी व क्राउन ब्रेवरी कारखानों के खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। ओल्ड बे्रवरी कारखाने को स्थानीय लोग तब बीयरखाना नाम से जानते थे और इसमें समीपवर्ती जौनपुर क्षेत्र के कई लोग नौकरी किया करते थे। क्राउन ब्रेबरी के बार्लोगंज रोड स्थित एक परिसर तो आज भी मौजूद है।

हिंदुस्तान की पहली बीयर फैक्टरी 'ओल्ड ब्रेवरी '

वर्ष 1829 में मेरठ से मसूरी आए अंग्रेज व्यापारी हेनरी बोहले ने वैवरली-हाथीपांव के बीच (वर्तमान बांसी एस्टेट) में वर्ष 1830 में 'ओल्ड ब्रेवरी' नाम से यहां बीयर की फैक्टरी लगाई थी। जिसे मसूरी ही नहीं, पूरे हिंदुस्तान की पहली बीयर फैक्टरी होने का श्रेय जाता है। उस दौर में मसूरी का पानी बीयर निर्माण के लिए बहुत उत्तम माना जाता था।

यह भी पढ़ें- Haridwar Kumbh Mela 2021: ग्रह चाल के कारण 11 वर्ष में हो रहा हरिद्वार कुंभ, एक सदी के अंतराल में पहली बार बना ऐसा संयोग

अंग्रेजों की ओर इसका बाकायदा इंग्लैंड से परीक्षण भी करवाया गया। हालांकि, आधे जर्मन व आधे स्काटिश हेनरी बोहले द्वारा स्थापित यह बीयर फैक्टरी स्थापना के एक साल बाद ही विवादों में घिरने लगी थी। इतिहासकार जयप्रकाश उत्तराखंडी बताते हैं कि 19 अप्रैल 1831 को हेनरी बोहले पर लंढौर डिपो के फौजियों को जाली परमिट से बीयर बेचने के आरोप लगे थे। नतीजा, लंढौर छावनी प्रमुख कैप्टन यंग और हेनरी बोहले के बीच काफी विवाद हुआ। इसके चलते 24 अप्रैल 1831 को हेनरी बोहले ने बीयर फैक्ट्री बंद कर दी। 

तब उत्तर भारत में नहीं थी इससे बेहतर बीयर

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी में बनी बीयर मेरठ, दिल्ली, अंबाला, जबलपुर, लुधियाना, देहरादून, मसूरी, रुड़की आदि आर्मी कैंटोनमेंट में सप्लाई होती थी। उस दौर में इससे बेहतर बीयर और कहीं नहीं मिलती थी।

यह भी पढ़ें- जौनसार-बावर में शुरू हुई माघ मरोज की तैयारी, एक माह तक चलेगा पर्व


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.