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देहरादून में इकोनॉमी के साथ इकोलॉजी को जोड़ने की हो रही है कोशिश

ग्रीन इकोनॉमी की बात जिस दिन सरकार समझने लगेगी तो दून और उत्तराखंड समेत वन बाहुल्य राज्यों की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी

By Krishan KumarEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 06:00 AM (IST)
देहरादून में इकोनॉमी के साथ इकोलॉजी को जोड़ने की हो रही है कोशिश

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की जब भी बात होती है तो उसमें पर्यावरणीय सेवाओं का अभिन्न योगदान होता है। यह बात और है कि जीडीपी की तरह सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) का अलग से आकलन नहीं किया जाता। हालांकि, देश में पहली बार इसकी वकालत देहरादून से शुरू की गई है और राज्य सरकार ने इसे सहर्ष स्वीकार भी किया। इस दिशा में अब कार्रवाई भी जारी है। यदि राज्य गठन के 18 साल की अवधि में ऐसा हो पाया है तो यह सिर्फ पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी की ही देन है।

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डॉ. जोशी के ही प्रयासों का परिणाम है कि नौ सितंबर 2014 से प्रदेश सरकार ने हर वर्ष हिमालय दिवस मनाने का भी निर्णय लिया। उनका साफ कहना है कि सकल घरेलू उत्पाद के साथ सकल पर्यावरण उत्पाद का भी देश के विकास में समानांतर उल्लेख होना आवश्यक है।

समूहों को सालाना 64 लाख की आय
पद्मश्री डॉ. अनिल प्रकाश जोशी इकोनॉमी के साथ इकोलॉजी को जोड़ने की मुहिम को देहरादून स्थित शुक्लापुर में 'हैस्कोग्राम' से आगे बढ़ा रहे हैं। ग्रीन इकोनॉमी को संबल देने के लिए डॉ. जोशी ने हैस्को संस्था की स्थापना की और हैस्कोग्राम में घराट (पनचक्की) की विलुप्त हो चुकी संस्कृति को पुनर्जीवित किया।

दून समेत प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में घराट संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए वह घराट संगठन की भी स्थापना कर चुके हैं। उनका यह प्रयास यहीं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम किया और स्थानीय उत्पादों को बाजार से जोड़ते हुए कई समूह भी बनाए। इससे स्थानीय लोगों को स्वरोजगार के नए अवसर मिले और आज ऐसे समूह सालाना 64 लाख रुपये की आय प्राप्त कर रहे हैं।

वॉइज ग्रुप का हिस्सा बनी पांच हजार महिलाएं
सिर्फ पारंपरिक खेतीबाड़ी तक सीमित महिलाओं के आर्थिक उत्थान की दिशा में भी हैस्को के संस्थापक ने 'वॉइज ग्रुप' का गठन किया। आज करीब पांच हजार महिलाएं वॉइज ग्रुप का हिस्सा हैं। ये महिलाएं कलस्टर के रूप में काम कर रही हैं और पारंपरिक फल-सब्जियों को प्रसंस्कृत कर तमाम उत्पादों से अच्छा खासा मुनाफा कमा रही हैं।

'लोकल नीड मीट लोकली' का नारा
डॉ. जोशी का मानना है कि स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाकर ही अधिक से अधिक लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सकता है। इसके लिए उन्होंने 'लोकल नीड मीट लोकली' का स्लोगन भी दिया। हैस्को के प्रयासों से आज करीब 10 हजार गांवों के पांच लाख लोग इस प्रयास से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

6.96 लाख करोड़ की सेवाओं के बदले कुछ तो मिले
हैस्को के संस्थापक का कहना है कि वनों की नेमत भले ही हमें प्रकृति ने दी, मगर आज इस बात की जरूरत बढ़ गई है कि इन सेवाओं का वाजिब मूल्यांकन किया जा सके। दून समेत समूचे उत्तराखंड में वन ही हमारी प्रमुख संपदा हैं। देश और विश्व के लिए बेहतर पर्यावरण देने के प्रयास का ही नतीजा है कि यहां विकास की संभावनाएं भी सीमित हैं।

वे कहते हैं कि इस बात का गंभीरता से आकलन किया जाए कि उत्तराखंड समेत हिमालयी क्षेत्रों के वनों से हमें 6.96 लाख करोड़ की सेवाएं मिल रही हैं तो ऐसे राज्यों को इन्सेंटिव मिलने की राह आसान हो जाएगी। इन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सेवाओं का मोल मिलने लगे तो यहां के युवाओं के लिए रोजगार के नए साधन विकसित करने की राह और आसान हो जाएगी।

ग्रीन इकोनॉमी से बदलेगी तस्वीर
डॉ. जोशी के प्रयास के अनुरूप ग्रीन इकोनॉमी की बात जिस दिन सरकार समझने लगेगी तो दून और उत्तराखंड समेत वन बाहुल्य राज्यों की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। हैस्को के संस्थापक के अनुसार पर्यावरणीय सेवाओं के मूल्य का आकलन करने पर पता चलता है कि हम जंगलों की बदौलत 24 घंटे 'फ्री-फोकट' जिस स्वच्छ हवा में सांस लेते हैं, उसकी कीमत लगभग छह हजार करोड़ रुपये बैठती है। जंगल न होते तो हमारे खेत-खलियानों से हर साल एक लाख 49 हजार करोड़ रुपये अधिक की मिट्टी व्यर्थ ही बह जाती।

जंगल वातावारण सुधार से लेकर, हमारे पशुओं के चारे, ईंधन, फूलों के निषेचन (परागण) समेत विभिन्न 13 तरह की सात लाख करोड़ रुपये के करीब की सेवाओं का लाभ हमें दे रहे हैं। वनों से हमें अनगिनत सौगात मिलती है, लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते जंगलों के 'सेवाभाव' की पूरी जानकारी सामने नहीं आ पाती। करीब तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक की सेवाओं का प्रत्यक्ष लाभ वनों से मिल रहा है, जबकि अप्रत्यक्ष लाभ उससे भी अधिक लगभग चार लाख करोड़ रुपये का है।

जंगलों की सेवा की आर्थिक स्थिति
सेवा मूल्य (करोड़ रुपये में)

प्रत्यक्ष लाभ
चारा 1,0091.20
अकाष्ठ वन उपज 81,000
प्रकाष्ठ 78,335
बांस 24,298.25
ईंधन 20,562.50

अप्रत्यक्ष लाभ
मृदा अपरदन 1.49,360.18
भूस्खलन रोकना 69,991.58
जलवायु सुधार 61,960.50
जल धारण, जलापूर्ति 54,649.02
परागण 30,771.32
पुनर्निर्माण मूल्य 18, 050.21
खाद्य एवं सुरक्षा 5,969.42
कार्बन पृथक्करण 960
कुल 6,96,823.18

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