देहरादून: ‘हॉलिस्टिक हीलिंग’ से कैंसर रोगियों की दूर होगी मानसिक पीड़ा
डॉ. प्रभाकर कहती हैं कि हॉलिस्टिक मेडिसिन का प्रचलन समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ रहा है।
मशहूर मनोविश्लेषक नॉर्मन विन्सेन्ट का मानना है कि मस्तिष्क को सकारात्मक दिशा देकर आप मन की शांति, बेहतर सेहत और कभी न खत्म होने वाली ऊर्जा हासिल कर सकते हैं। इसी सोच को लेकर महिला स्वास्थ्य और कैंसर जागरूकता को लेकर डॉ. सुमिता प्रभाकर काम कर रही हैं। वह कहती हैं कि इलाज के दौरान मरीज के मानसिक और अन्य दूसरे पहलुओं पर भी विचार करना जरूरी होता है।
सिर्फ शरीर का इलाज करने से शरीर से पीड़ा दूर होती है। मानसिक पीड़ा दूर करने के लिए हॉलिस्टिक हीलिंग एक कारगर उपाय है। इसके जरिये असाध्य बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है ।
एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत
वह कहती हैं कि स्वास्थ्य का मतलब मात्र रोग से मुक्ति नहीं, बल्कि इसमें कई अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी शामिल हैं। स्वस्थ रहने को मानसिक और भावनात्मक पक्ष भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है, जितना कि शारीरिक पक्ष। कहा जाता है कि शरीर के भीतर प्राणशक्ति में जब तक समुचित संतुलन व समायोजन बना रहता है, तब तक हमारा शरीर स्वस्थ रहता है और इस संतुलन में गड़बड़ी होने पर हमारे शरीर में बीमारियां घर कर जाती हैं।
ऐसे में हॉलिस्टिक मेडिसिन एक अच्छा विकल्प साबित हुआ है। वह कहती हैं कि अभी इस क्षेत्र में टुकड़ों-टुकड़ों में काम हो रहा है। मेरा मानना है कि यदि आयुर्वेद से ही सब-कुछ ठीक होता, तो एलोपैथिक चिकित्सा की जरूरत क्यों पड़ती या एलोपैथिक से ही हर बीमारी का निदान होता तो अन्य चिकित्सा की पद्धतियों की जरूरत क्यों पड़ती। ऐसे में सभी चिकित्सा पद्धतियों का एक साथ समावेश कर इसे जनोपयोगी बनाना समय की मांग है। भारत के पास चिकित्सा, भोजन और आध्यात्मिक परंपरा का समृद्ध कोष है। जरूरत, समस्त चिकित्सा पद्धतियों को साथ लेकर समग्र दृष्टिकोण अपनाने की है।
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लाभकारी है हॉलिस्टिक चिकित्सा
डॉ. प्रभाकर कहती हैं कि हॉलिस्टिक मेडिसिन का प्रचलन समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ रहा है। मौजूदा समय में यह एक संपूर्ण चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित हुई है। शहर में आज कई लोग इस पहलू पर काम कर रहे हैं। हाल ही में इस विषय पर कई सेमिनार भी हुए हैं। वह बताती हैं कि हॉलिस्टिक चिकित्सा वैकल्पिक, प्राकृतिक, प्राचीन व आधुनिक चिकित्सा पद्धति का मिश्रण है। इसके तहत मरीज के अंदर रोगों से लडऩे वाले तत्वों को सक्रिय किया जाता है।
इस चिकित्सा में एक्यूपंक्चर, रेकी, यूनानी, आयुर्वेद, सिद्धा, योग, ध्यान, प्राणायाम, रिलेक्सेशन, विजुअलाइजेशन, पंचकर्म, काउंसिलिंग, रिफ्लेक्सोलॉजी, पिरामिडोलॉजी, संगीत, सम्मोहन, समुचित आहार-विहार, प्राकृतिक चिकित्सा आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इससे मानव शरीर में एक खास शक्ति (प्राण) का सतत प्रवाह एवं निर्माण होता रहता है शहर में ऐसे कई केंद्र स्थापित हुए हैं, जो अब हॉलिस्टिक हेल्थ पर काम कर रहे हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि यह केंद्र अब भी खर्चीले और सामान्य व्यक्ति के सामर्थ्यप से बाहर हैं। यानी हॉलिस्टिक चिकित्सा अत्यंत लाभकारी पर महंगी भी है। इस पहलू पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
वैकल्पिक चिकित्सा की ओर बढ़ा बड़ा तबका
डॉ. सुमिता कहती हैं कि वर्तमान समय में हमारे जीवन में भौतिकता का समावेश होता गया है। इस कारण हमारी दिनचर्या, सोच, व्यवहार सभी प्रभावित हुए और ऊर्जा शक्ति में असंतुलन उत्पन्न हुआ, जिस वजह से भारी तनाव, व्यग्रता आदि जीवन का अंग बनते चले गए। परिणामस्वरूप तमाम रोगों की उत्पत्ति हुई। ऐसे में असंतुलित जीवनशैली को संतुलित में बदलना बेहद जरूरी है। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
हॉलिस्टिक हीलिंग हकीकत में जीवनशैली को ही बदलने का तरीका है। मसलन, जब आप प्रसन्नचित्त रहते हैं तो शरीर मे सेरोटोनिन का स्तर कम रहता है, जिससे सारी अन्त:स्रावी ग्रंथियां प्रभावित रहती हैं और अच्छे परिणाम आते हैं। हॉलिस्टिक हेल्थ के पीछे भी मंशा यही है कि व्यक्ति का न केवल तन बल्कि मन भी स्वस्थ रहे। नकारात्मक ऊर्जा घेरे रहेगी तो किसी भी व्यक्ति को स्वस्थ होने में समय लग जाएगा।
हॉलिस्टिक चिकित्सा नियमित रूप से लेते रहने पर दर्द धीरे-धीरे कम होता है और कुछ समय बाद दर्द इतना कम या नगण्य हो जाता है कि मरीज को सामान्य जीवन में कोई दिक्कत नहीं होती है। बस यही वजह है कि एक बड़ा तबका वैकल्पिक चिकित्सा की ओर न केवल बढ़ रहा है, बल्कि उसके विस्तार के लिए एक नवीन धरातल भी तैयार कर रहा है।
स्वास्थ्य प्रणालियों में दर्द निवारक देखभाल शामिल हो
डॉ. प्रभाकर स्वास्थ्य प्रणालियों में दर्द निवारक देखभाल को शामिल करने पर जोर देती हैं। उन्होंने बताया कि देश के दक्षिणी राज्य केरल व कर्नाटक में दर्द निवारक देखभाल नीति लागू है। इसका उद्देश्य, गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं झेल रहे मरीजों और उनके परिवार के सदस्यों की जिंदगी की गुणवत्ता में सुधार करना होता है। साथ ही मनोवैज्ञानिक, सामाजिक या आध्यात्मिक मुद्दों जैसे कि डिप्रेशन और सामाजिक अलगाव को कम करना है। दर्द सबसे आम लक्षण है। यह शरीर और दिमाग को प्रभावित करता है। जब तक हम दर्द का इलाज नहीं करते, हम भावनात्मक तनाव या पीड़ा को पूरी तरह से दूर नहीं कर सकते हैं।
महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल के लिए सजग
डॉ. सुमिता प्रभाकर पिछले 17 साल से महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल के लिए काम कर रही हैं। वह उत्तराखंड की प्रमुख स्त्री रोग विशेषज्ञों में से एक हैं। उन्होंने भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार एवं कैंसर रोकथाम के लिए सिंगापुर में अपनी आकर्षक नौकरी छोड़ी और भारत में रहकर कार्य करना प्रारंभ किया। डॉ. सुमिता प्रभाकर कैन प्रोटेक्ट फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष हैं और स्तन व गर्भाशय कैंसर की रोकथाम के लिए निश्शुल्क स्क्रीनिंग कैंप व जागरुकता शिविर आयोजित कर रही हैं।