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देहरादून में उद्यमिता विकास के लिए लैंड बैंक है बड़ी चुनौती

क्षेत्रीय निदेशक के मुताबिक जीएसटी में राज्य का हिस्सा 45 फीसद घटने और कुल राजस्व में 167 फीसद की बढ़ोतरी ने भविष्य की चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Wed, 08 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 06:00 AM (IST)
देहरादून में उद्यमिता विकास के लिए लैंड बैंक है बड़ी चुनौती

उत्तराखंड बनने के बाद दून ने उद्यमिता के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाई। यहां वर्तमान में 130 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल पर उद्योग स्थापित हैं। उद्योग सेक्टर को सेंट्रल एक्साइज और आयकर में मिली छूट ने कई औद्योगिक घरानों को आकर्षित करने का काम किया। हालांकि, जीएसटी (माल और सेवा कर) में छूट समाप्त होने के बाद औद्योगिक घरानों को बनाए रखना नई चुनौती बन गया है। यह कहना है कि पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के क्षेत्रीय निदेशक अनिल तनेजा का।

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क्षेत्रीय निदेशक अनिल तनेजा के मुताबिक जीएसटी में राज्य का हिस्सा 45 फीसद घटने और कुल राजस्व में 167 फीसद की बढ़ोतरी ने भविष्य की बढ़ती चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है। इसी बात से चिंचित वित्त मंत्री प्रकाश पंत ऐसी नीति लाने की बात कर रहे हैं, जिसमें राज्य के भीतर खपत बढ़ाने के लिए औद्योगिक इकाइयों को स्टेट जीएसटी में आइटीसी काटने के बाद 50 फीसद तक छूट देने की तैयारी की जा रही है।

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यदि ऐसा होता है तो यह राहतभरा कदम होगा, मगर चिंता फिर अपनी जगह आकर ठहर जाती है। क्योंकि, दून में नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए सबसे बड़ा रोड़ा है लैंड बैंक। इसकी पूर्ति न सिर्फ हर हाल में किया जाना जरूरी है, बल्कि कम से कम 100 एकड़ के लैंड बैंक का इंतजाम करने से बात बन पाएगी। इसके अलावा जो भूमि उपलब्ध भी है, उसका समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा।

ईज ऑफ डूइंग में गिर रही रैंकिंग
तनेजा कहते हैं कि शुरुआत में ईज ऑफ डूइंग (कारोबार करने में सुगमता) में प्रदेश की रैंकिंग देश में दूसरे-तीसरे स्थान पर थी, जबकि आज हम टॉप टेन से बाहर हो गए हैं। दरअसल, जब भी अर्थव्यवस्था की बात आती है तो सभी कुछ संभालना अकेले उद्यमियों के बूते की बात नहीं। इसके लिए उद्योग निदेशालय से लेकर सिडकुल तक को साथ मिलकर काम करना होगा। जो मसले शासन स्तर पर देखे जाते हैं, उनमें त्वरित निर्णय होने चाहिए।

इंडस्ट्री को दून में लैंड बैंक की तस्वीर
सेलाकुई- 50 एकड़
आइटी पार्क- 72.35 एकड़
पटेलनगर क्षेत्र- 10 एकड़

कार्य संस्कृति में सुधार की जरूरत
इस बिंदु की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान पर अमल करना होगा। उनका स्पष्ट कहना है कि उद्योगपतियों का देश के विकास में अहम योगदान है और उनका हर हाल में सम्मान किया जाना जरूरी है। इसी बात का आकलन उत्तराखंड में किया जाए तो अभी ऐसी कार्य संस्कृति का अभाव है।

यह काफी हद तक राज्य की गवर्नेंस पर निर्भर करता है। दूसरी तरफ उद्योग की स्थापना के लिए राज्य सरकार के वादों से इतर बैंकों से सहयोग भी नहीं मिल पा रहा। पहले तो बैंक कहते हैं कि वह सहर्ष ऋण देने को तैयार हैं। जब उद्यमी ऋण के लिए आवेदन करते हैं तो उन्हें औपचारिकताओं में फंसा दिया जाता है।



बिजली में सुधार की जरूरत
बेशक बिजली की मांग और आपूर्ति में अधिक अंतर न हो, लेकिन ऊर्जा निगम की व्यवस्थाएं पुख्ता न होने के चलते उद्योगों को पॉवर कट झेलना पड़ता है। पिछलों दिनों जब दून में भारी बारिश आई तो औद्योगिक क्षेत्र सेलाकुई को भारी बिजली कटौती झेलनी पड़ी।

इसकी वजह यह रही कि ऊर्जा निगम के 33 केवी के 70 से अधिक बिजली के खंभे पानी में बह गए थे। खंभों के बहने की वजह भी बेहद चौंकाने वाली है। वह यह कि इन्हें नदी में गाड़ा गया था।इस बात से भी समझा जा सकता है कि इंडस्ट्री सेक्टर को सुचारू पॉवर सप्लाई के लिए हमारे अधिकारी कितना संजीदा हैं, जबकि बिजली की आपूर्ति सीधे तौर पर इंडस्ट्री सेक्टर की क्षमता को प्रभावित करती है।

उदाहरण के लिए बात करते हैं ऑक्सीजन आदि गैस बनाने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनी लिंडे की। सेलाकुई में इसकी इकाई है और इस इकाई को कंपनी ने सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली सूची में रखा है। वह इसलिए कि ऊर्जा व्यवस्था की बदहाल स्थिति का खामियाजा इसे उठाना पड़ रहा है। दूसरी तरफ ओवर ऑल व्यवस्थाओं में भी औद्योगिक क्षेत्रों की तस्वीर पूरी तरह बदलने की जरूरत है। समय-समय पर उद्योग मित्र की बैठकों में यह मसले उठाए जाते हैं, लेकिन सुधार की दिशा में इक्का-दुक्का कदम ही उठाए जाते हैं।

आसमान छू रहे हैं दाम
किसी भी शहर में काम करने के लिए आवासीय इंतजाम और भोजन आदि की व्यवस्था बहुत मायने रखती है, जबकि, इस क्षेत्र में दाम की बात करें तो दून की तुलना दिल्ली जैसे महानगर से की जाती है। एक आम कामगार के लिए यहां की आवासीय सुविधा बेहद महंगी है। एक सिंगल बीएचके का खर्च वहन करना भी उसके लिए भारी पड़ जाता है और अपने घर का सपना तो उसके लिए उम्रभर का ख्वाब बन जाता है। भोजन आदि के दैनिक खर्च भी राजधानी दून में उतने सुलभ नहीं रहे। लिहाजा, इन पहलुओं पर भी ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

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