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सुरक्षा: देहरादून की शांत वादियों में सुकून की सांस

व्हाइट कॉलर क्राइम और साइबर अपराध लोगों के साथ पुलिस के लिए भी सिरदर्द बना है। बीते साल देश भर में चर्चा का विषय बने एटीएम क्लोनिंग इसकी एक बानगी है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sat, 07 Jul 2018 12:00 AM (IST)Updated: Sat, 07 Jul 2018 12:00 AM (IST)
सुरक्षा: देहरादून की शांत वादियों में सुकून की सांस

शांति के बीच सुरक्षा का एहसास। यही वजह है कि सेवानिवृत्ति के बाद लोग सुकून की तलाश में दून पहुंचते हैं और फिर यहीं के होकर रह जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि यहां बसने का एक बड़ा कारण सुरक्षा का भाव है। सुरक्षा के इसी भाव के कारण शहर में तेजी से आवासीय कॉलोनियां विकसित हुईं तो उद्यमियों को भी यह घाटी रास आ रही है।

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अब दून में तीसरी आंख की निगरानी में कॉलोनियां

देहरादून की पुलिस ने किसी भी तरह की वारदात से निपटने के लिए हर मुमकिन कदम उठा रही है, साथ ही सुरक्षा के लिए लोगों को जागरूक भी कर रही है। दून में करीब 60 कॉलोनियां हैं। पुलिस और रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने मिलकर इनमें से करीब 16 कालोनियों में 80 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, जो हर आने-जाने वालों पर नजर बनाए रखते हैं। अन्य में भी इसके लिए बातचीत की जा रही है। इतना ही नहीं कई एसोसिएशनों ने कॉलोनी में निजी गार्ड भी तैनात किए हैं।

महिलाओं के लिए सुरक्षित दून

दून में हजारों महिलाएं सरकारी, गैर सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों में कार्य करती हैं। इसके अलावा स्कूल-कॉलेज जाने वाली छात्राओं की संख्या भी हजारों में है। सुरक्षा के लिहाज से दून महिलाओं के लिए एक सुरक्षित शहर है। पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो बीते वर्षों के मुकाबले महिलाओं के विरुद्ध अपराध में 15 फीसद की कमी दर्ज की गई है। वहीं 58 फीसदी महिला अपराधों का तय समय के भीतर खुलासा कर दिया गया।

भूमि विवाद पर एसआइटी का शिकंजा

दून में लोगों ने अपने सपनों का घर बनाने का सपना बुनना शुरू किया था। लोगों के इस सपने को भूमाफियाओं की नजर लगी, इसका लाभ उठाना शुरू कर दिया। यही कारण था कि 2016 तक औसतन हर रोज जमीन धोखाधड़ी के चार से पांच मामले सामने आते थे। इस पर अंकुश लगाने के लिए डीआइजी गढ़वाल के नेतृत्व में विशेष जांच दल (एसआइटी) का गठन किया गया। एसआइटी ने बीते साल 45 से अधिक जालसाजों को न सिर्फ सलाखों के पीछे पहुंचाया।

व्‍हाइट कॉलर और साइबर अपराध बना है मुसीबत

व्हाइट कॉलर क्राइम और साइबर अपराध लोगों के साथ पुलिस के लिए भी सिरदर्द बना है। बीते साल देश भर में चर्चा का विषय बने एटीएम क्लोनिंग इसकी एक बानगी है। लोगों को असुरक्षा के इस भंवर से निकालने के लिए पुलिस ने अपनी कार्यशैली को हाईटेक किया और पुलिसिंग के दायरे को बढ़ाकर बैंकों व एटीएम की निगरानी शुरू की। बीते साल दिसंबर में पुलिस ने एक सर्वे भी किया, जिसमें दून के 282 बैंकों में 61 पर कैमरे नहीं मिले। यहां 94 गार्ड नहीं थे। पुलिस ने बैंक अफसरों के साथ बैठक की और सुरक्षा के इंतजाम पूरा कराने की दिशा में कदम बढ़ाया।

नशे से मुकाबले को मिले हाथ

एक सर्वे के मुताबिक शिक्षा हब के रूप में विख्यात दून में चालीस फीसदी युवा नशे की गिरफ्त में हैं। यहां के स्कूल-कॉलेजों के प्रबंधन से लेकर आम नागरिकों ने पुलिस के साथ हाथ मिलाया। नतीजा 1198 तस्करों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया। इस दिशा में और प्रभावी ढंग से कार्रवाई के लिए डीजीपी अनिल के रतूड़ी ने अंतरराष्ट्रीय नशा एवं मादक पदार्थ निषेध दिवस के मौके पर राज्य में एंटी ड्रग टास्क फोर्स गठित करने का एलान किया है।

देहरादून में पुलिस के लिए यह है चुनौती

नशा तस्करी: पश्चिमी उत्तर प्रदेश से नशा लाने वाले ड्रग डीलरों पर शिकंजा कसना।

यातायात: जाम के लिए परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जिम्मेदार विभागों के बीच आपसी सामंजस्य नहीं है। इस समस्या को खत्म करने की दिशा में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।

बैंक-एटीएम: शहर के अधिकांश एटीएम पर गार्ड तैनात कराने की चुनौती अभी बनी हुई, जो अपराधियों को अपने मंसूबे में कामयाब होने का मौका दे रही है।

भूमि धोखाधड़ी: अभी सरकारी भूमि पर अतिक्रमण और राजस्व दस्तावेजों में हेरफेर कर की जा रही धोखाधड़ी पर अंकुश लगाने की चुनौती बनी हुई है।


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