उत्तराखंड में सस्ती फीस में फिर हो सकेगी एमबीबीएस की पढ़ाई, जानिए वजह
प्रदेश में सस्ती फीस में एमबीबीएस की पढ़ाई फिर हो सकेगी। इसके तहत इस बार कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के छात्र-छात्राओं का एमबीबीएस डिग्री लेने का सपना पूरा होगा। इस योजना को सरकार को दो कारणों से बंद करना पड़ा था।
रविंद्र बड़थ्वाल, देहरादून: प्रदेश में सस्ती फीस में एमबीबीएस की पढ़ाई फिर हो सकेगी। कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के छात्र-छात्राओं का एमबीबीएस डिग्री लेने का सपना पूरा होगा। इस योजना को सरकार को दो कारणों से बंद करना पड़ा था। एक तो प्रदेश में चिकित्सकों के 2700 से ज्यादा स्वीकृत पदों को कोरोना काल में विभिन्न तरीकों से भरा गया। रिक्त पदों का कोटा खत्म हो गया तो सरकार ने सिर्फ श्रीनगर मेडिकल कालेज के लिए ही यह व्यवस्था लागू रखी।
अन्य दो सरकारी मेडिकल कालेजों में सस्ती फीस में एमबीबीएस डिग्री लेने की व्यवस्था खत्म की गई। दूसरा कारण यह रहा कि राज्य सरकार से मिली सुविधा ले चुके नए प्रशिक्षित डाक्टरों ने बाद में बांड की शर्तों को ही आंखें दिखानी शुरू कर दीं। अनुबंध के बावजूद एमबीबीएस डिग्री लेने वाले डाक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देने को तैयार नहीं हैं। इस रवैये ने एमबीबीएस की सस्ती पढ़ाई पर ग्रहण लगा दिया।
मंत्रीजी को भरोसे में लेना गवारा नहीं
विभागीय मंत्री अरविंद पांडेय को भनक नहीं और शिक्षा विभाग में नया प्रकोष्ठ खड़ा हो गया। प्रकोष्ठ में इक्का-दुक्का नहीं बल्कि 13 कार्मिकों की तैनाती की गई है। वैसे सरकार इस सत्र को तबादला शून्य घोषित कर चुकी है। प्रकोष्ठ में चहेतों को एडजस्ट करने का यह फार्मूला मंत्रीजी को रास नहीं आया। चुनावी साल है। ऐसे मामले आएंगे तो सवाल तैरेंगे ही। जवाब देना भारी पड़ेगा। प्रकोष्ठ के गठन का आदेश जारी होते ही इसे तुरंत रद करने को कहा गया। मंत्रीजी का तर्क है कि नई शिक्षा नीति लागू करने को इस प्रकोष्ठ का औचित्य नहीं है।
एससीईआरटी पहले से यह कार्य कर रहा है। टास्क फोर्स भी है। दरअसल बीते दिनों मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नई शिक्षा नीति को लेकर गठित स्टीयरिंग कमेटी की बैठक में प्रकोष्ठ के गठन का सुझाव आया था। सुझाव पर अमल हुआ, लेकिन विभाग मंत्रीजी को भरोसे में लेना भूल गया।
उलझन सुलझने में लग गया लंबा वक्त
पिछली कांग्रेस सरकार के वक्त की एक उलझन बामुश्किल भाजपा सरकार ने सुलझा ली। केंद्रपोषित योजना राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के अंतर्गत राज्य स्तरीय उच्च शिक्षा परिषद का गठन की व्यवस्था है। संयुक्त उत्तरप्रदेश के जमाने से लागू इससे संबंधित अधिनियम में परिषद का अध्यक्ष शिक्षाविद को बनाने का प्रविधान रहा है। पिछली कांग्रेस सरकार ने अधिनियम में संशोधन के बगैर महज शासनादेश के माध्यम से परिषद का अध्यक्ष उच्च शिक्षा मंत्री को बना दिया। इस भूल को भाजपा की वर्तमान सरकार ने सुधारने की पहल की। मार्च, 2020 में गैरसैंण में हुए विधानसभा सत्र में संबंधित विधेयक को पास कर राजभवन भेजा गया। राजभवन में डेढ़ साल से ज्यादा समय से यह विधेयक लंबित रहा। शासन ने विधेयक को राजभवन की मंजूरी दिलाने को खूब हाथ-पांव मारे। बैठकों का दौर चला, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। नए राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह के आने के बाद विधेयक को मंजूरी मिली।
पदोन्नति में छूट को भिड़ा रहे जुगत
बात भले ही राजकीय इंटर कालेजों में प्रधानाचार्यों के पद भरने की हो रही है, लेकिन उम्मीद शिक्षाधिकारी लगाए बैठे हैं। सरकार ने कर्मचारी संगठनों की बड़ी मांग पूरी कर पदोन्नति में छूट देने के लिए नियमावली को दोबारा लागू कर दिया है। पदोन्नति के लिए निर्धारित सेवा अवधि पूरी करने की शर्त में इस नियमावली के माध्यम से बार-बार लाभ लेने की शिकायतें मिलने के बाद सरकार को सख्ती बरतनी पड़ी थी। मुख्य सचिव समिति की संस्तुति के आधार पर 2017 में इस नियमावली पर रोक लगा दी गई।
कर्मचारी संगठन लगतार इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। अब एक साल के लिए नियमावली को हरी झंडी दिखाई गई है तो इंटर कालेजों में प्रधानाचार्यों के पद भरने का रास्ता साफ हो गया है। अब पता चला है कि शिक्षाधिकारी भी इस छूट का लाभ उठाने को हाथ-पांव मार रहे हैं। सरकार में पैरोकारी शुरू हो गई है।
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