शहीद विभूति का पार्थिव शरीर देख हर आंख से निकले आंसू
शहीद मेजर विभूति ढौंढियाल का पार्थिव शरीर देख हर किसी की आंखों में आंसू थे। अपने पोते को देख दादी एक शब्द भी नहीं बोल पार्इं पर उनकी आंखों ने सब बयां कर दिया।
देहरादून, जेएनएन। पुलवामा में आतंकी मुठभेड़ में शहीद दून के मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल का पार्थिव शरीर सोमवार रात उनके नेशविला रोड स्थित आवास लाया गया। सेना के जवानों के कंधे पर तिरंगे से लिपटे ताबूत में घर पहुंचे बेटे को देखकर परिजन बिलख पड़े। सुबह जहां सन्नाटा पसरा था, वहां एकाएक कोहराम मच गया। घर के बाहर मौजूद हजारों लोग भी अपने आंसू नहीं रोक पाए। शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। वहीं शहीद पति का शव देख पत्नी सिर्फ इतना ही कह पार्इ कि मुझे झोड़कर क्यों चले गए।
शहीद के पार्थिव शरीर को विशेष विमान से जॉलीग्रांट एयरपोर्ट लाया गया। यहां से पार्थिव शरीर सैन्य अस्पताल और फिर उनके नेशविला रोड स्थित आवास लाया गया। शहीद के पार्थिव शरीर के लिए सुबह से लोग इंतजार कर रहे थे। जैसे ही पता चला कि पार्थिव शरीर उनके आवास पर पहुंचने वाला है, हजारों की संख्या में लोग अपने घरों, सड़क किनारे के साथ ही शहीद के घर के आसपास जमा हो गए।
जैसे ही सेना की जिप्सी में पार्थिव शरीर नेशविला रोड से उनके घर डंगवाल मार्ग की तरफ मुड़ा वहां पहले से खड़े सैकड़ों लोग तिरंगा लिए पाकिस्तान मुर्दाबाद, हिंदुस्तान जिंदाबाद और मेजर तेरा यह वरदान, याद रखेगा हिंदुस्तान के नारों के साथ जिप्सी के साथ शहीद के घर तक पहुंचे। तिरंगे में लिपटा शव जैसे ही घर पहुंचा तो परिजन बिलख उठे। शहीद की मां सरोज रो-रोकर बेसुध हो गई। वहां मौजूद लोगों ने बमुश्किल उन्हें संभाला। वहीं बहन वैष्णवी व पत्नी निकिता के आंसू भी थम नहीं रहे थे।
परिजनों का करुण विलाप सुनकर वहां मौजूद लोगों की भी आंखें भर आईं। इस हृदय विदारक दृश्य को देख हर आंख नम थी। इस दौरान कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, पूर्व सांसद तरुण विजय, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल, विधायक गणेश जोशी, महापौर सुनील उनियाल गामा, खजान दास, पूर्व काबीना मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी, पूर्व विधायक राजकुमार, कांग्रेस महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा समेत कई लोग परिवार को सांत्वना देने पहुंचे।
हजारों लोगों ने शहीद को दी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
सबसे पहले सेना के जवानों ने शहीद को श्रद्धांजलि दी और उसके बाद परिवार के सदस्यों ने एक-एक कर अपने लाडले को श्रद्धांजलि दी। इस दौरान उनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। बाद में वहां मौजूद हजारों लोगों ने एक-एक कर शहीद को श्रद्धासुमन अर्पित किए।
निशब्द दादी, एकटक देखती रही पोते को
घर के बढ़े-बुजुर्ग गमजदा थे। उन्हें पता था कि आज उनका लाडला उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर इस दुनिया से चला गया, लेकिन इन सबसे के बीच शहीद की दादी निशब्द अपने लाडले पोते को एकटक देख रही थी। उन्हें जैसे ही पार्थिव शरीर के दर्शन करने लाया गया तो पहले तो वह एकटक अपने लाडले पोते को देखती रहीं। बाद में उसे छूकर उनकी आंखों से आंसू टपकने लगे, लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाई।
मुझे छोड़कर क्यों चले गए...
शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल का पार्थिव शरीर जैसे ही तिरंगे में लिपटा आवास पर पहुंचा तो, पत्नी निकिता उससे लिपट गई। आंखों में आंसू लिए पत्नी बार-बार कहती रही आखिर उसे छोड़कर क्यों चले गए। उनके इस विलाप से आसपास लोगों के आंखों से भी आंसू बहने लगे। रिश्तेदार और आसपास लोग इस दौरान उन्हें लगातार ढांढस बंधाते रहे।
हम जियेंगे और मरेंगे ए वतन तेरे लिए...
'हम जियेंगे और मरेंगे ए वतन तेरे लिए', यह पंक्तियां शहीद मेजर विभूति शंकर ढौंडियाल पर अक्षरश: चरितार्थ होती हैं। मेजर विभूति की आंखों में फौजी बनने का ख्वाब बचपन में ही घर कर गया था। इस ख्वाब को पंख तब लगे, जब ओटीए (ऑफीसर्स ट्रेनिंग एकेडमी) के माध्यम से उन्होंने सेना में पदार्पण किया। हालांकि, यहां तक पहुंचने के पहले वह कई बार असफल हुए।
बचपन में राष्ट्रीय मिलिट्री एकेडमी (आरआइएमसी) में प्रवेश न मिल पाने के बाद भी उनका प्रयास जारी रहा। इसके बाद एनडीए में भी उन्हें स्थान नहीं मिल पाया। फिर भी सेना में जाने का उनका जुनून कम नहीं हुआ और आखिरकार वर्ष 2011 में ओटीए से पासआउट होकर वह सेना का अभिन्न अंग बन गए। इसी ख्वाब के साथ वह पूरी जिंदादिली के साथ जिये और हंसते-हंसते शहीद भी हो गए।
शहीद मेजर विभूति के पड़ोसी और बचपन के दोस्त मयंक खडूड़ी बताते हैं कि विभूति को हमेशा नेतृत्व करने का शौक था। वह कहते थे, सेना में देश की रक्षा के लिए नेतृत्व करने का अपना अलग ही अहसास होता है। जब भी वह छुट्टी पर दून आते, आतंकियों के खिलाफ अपने ऑपरेशन के किस्से रोमांच के साथ सुनाया करते। वर्तमान में 55-राष्ट्रीय राइफल्स का हिस्सा रहते हुए शहीद हुए मेजर विभूति की नजरों में डर नाम की कोई चीज नहीं थी।
वह अपनी बेहद कड़ी सेवा को आनंद के साथ पूरा करते थे और उनकी पूरी दुनिया देश की रक्षा पर ही केंद्रित रहती। कहते थे कि इस राह में कदम-कदम पर डर का साया साथ रहता है और मौत कब अपने आगोश में खींच ले कुछ नहीं पता। मगर, विभूति को इस काम में बेहद रोमांच महसूस होता था। वह अक्सर कहते कि देश की खातिर खतरे मोल लेने से बढ़कर कोई काम भी तो नहीं है।
मामा और बहनोई करते रहे प्रेरित
मेजर विभूति के मामा और बहनोई भी सेना में हैं और इन दोनों से उन्हें काफी प्रेरणा मिली। यह भी एक बड़ा कारण है कि विफलताओं के बाद भी उन्हें देश सेवा की राह पर आगे बढ़ने में सफलता हासिल हो ही गई।
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