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'बापू ने अपने हाथों से रखी थी मेरे निर्माण की आधारशिला और आजादी की नींव'

बाल वनिता आश्रम की नींव बापू ने खुद अपने हाथों से रखी थी। इसके साथ ही बापू ने यहां पर युवाओं से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का आह्वान किया था।

By Raksha PanthariEdited By: Published: Sun, 30 Sep 2018 02:13 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2018 09:10 AM (IST)
'बापू ने अपने हाथों से रखी थी मेरे निर्माण की आधारशिला और आजादी की नींव'
'बापू ने अपने हाथों से रखी थी मेरे निर्माण की आधारशिला और आजादी की नींव'

देहरादून, [गौरव ममगाईं]: मैं हूं 'बाल वनिता आश्रम', जिसका शिलान्यास बापू ने 89 साल पहले खुद अपने हाथों से किया था। आज मैं उन गौरवशाली पलों का साक्षी हूं। मेरे मुख्य द्वार पर लगी बापू की जनसभा की तस्वीर उन तमाम पलों को आज भी तरो-ताजा कर देती है। 

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यह कहानी शुरू होती है 16 अक्टूबर 1929 को, आजादी की चिंगारी पूरे देश में भड़क चुकी थी और द्रोणनगरी भी इससे अछूता नहीं था। यही वह दिन था जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी देहरादून पहुंचे थे और उन्होंने मेरे निर्माण की नींव रखी थी। मेरे परिसर में स्थित शिलापट में दर्ज मोहनदास करमचंद गांधी का नाम मुझे उनके साथ जोड़ता है। मुझे याद है, उस दिन बड़ा जनसमूह उमड़ा था और बापू ने उन्हें संबोधित कर जोश भर दिया था। 

इसी जनसभा की फोटो आश्रम के मुख्य द्वार पर लगाई गई है। 89 साल पहले तीन बच्चों के साथ शुरू हुआ सफर आज 52 बच्चों तक पहुंच गया है। इनमें 33 लड़कियां और 19 लड़के शामिल हैं।

आधारशिला के साथ रखी आजादी की नींव

आश्रम के सचिव एवं संचालक ओमप्रकाश नांगिया बताते हैं कि बापू ने आश्रम के परिसर में जनसभा को संबोधित किया था। इसमें उन्होंने युवाओं से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का आह्वान किया था। उनके भाषण से सभा में मौजूद युवाओं में गजब का जोश भर गया था। इसी के साथ स्वाधीनता की लड़ाई में दून के मतवाले भी जुड़ गए थे और उन्होंने अंग्रेजों से दो-दो हाथ किया था। 

बच्चे जानते हैं बापू की जीवनी

ओमप्रकाश ने बताया कि आश्रम में रह रहे बच्चों में शिक्षा के साथ संस्कार के बीज भी बोए जाते हैं। इन्हें गांधीवाद का पाठ भी पढ़ाया जाता है। सत्य, अहिंसा और परोपकार समेत अन्य गुणों को जीवन में आत्मसात करने को प्रेरित किया जाता है। हर एक बच्चा बापू की जीवनी से भली-भांति परिचित है। 

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