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केदारनाथ त्रासदी: छह साल बाद भी जलप्रलय से नहीं लिया सबक

केदारनाथ त्रासदी को छह साल बाद भी इसका सबक नहीं लिया गया। यात्रियों की भीड़ को रेगुलेट करने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है।

By Edited By: Published: Sat, 15 Jun 2019 06:51 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jun 2019 08:55 PM (IST)
केदारनाथ त्रासदी: छह साल बाद भी जलप्रलय से नहीं लिया सबक
केदारनाथ त्रासदी: छह साल बाद भी जलप्रलय से नहीं लिया सबक

देहरादून, केदार दत्त। केदारनाथ त्रासदी को छह साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इससे सबक लेने के मामले में सिस्टम की सुस्ती आज भी साफ झलक रही है। यात्रियों की भीड़ को रेगुलेट करने की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हो पाई है। साथ ही फोटो मीट्रिक पंजीकरण की व्यवस्था भी हिचकौले खा रही है। ऋषिकेश से रोटेशन में जा रहे यात्रियों का तो पंजीकरण हो रहा है, मगर इससे कहीं ज्यादा यात्री बगैर पंजीकरण के सीधे केदारनाथ पहुंच रहे हैं। आपदा के बाद इससे उबरने को बेहतर व्यवस्था, सुरक्षा, वाहनों की नियंत्रित संख्या जैसे तमाम बिंदुओं को लेकर कदम उठाने की बात हुई थी, लेकिन व्यवहार में इसकी परिणति नहीं हो पाई।

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15 जून 2013 में हुई जलप्रलय से केदारघाटी अब करीब-करीब उबर चुकी है। केदारपुरी नए कलवेर में निखरी है। केंद्र एवं राज्य सरकारों ने भी केदारनाथ की जबर्दस्त ब्रांडिंग की। साथ ही देश-दुनिया को संदेश दिया कि चारधाम यात्रा के लिए उत्तराखंड पूरी तरह सुरक्षित है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु केदारनाथ समेत चारधाम में उमड़ रहे हैं। इस सीजन में औसतन 25 हजार यात्री रोजाना बाबा केदार के दर्शनों को आ रहे हैं।

केदारनाथ में यात्रियों की बढ़ी संख्या तीर्थाटन और स्थानीय आर्थिकी के लिहाज से निश्चित रूप से अच्छा संकेत है। बावजूद इसके गंभीर सवाल यह है कि 2013 की आपदा से क्या वास्तव में हम सबक ले पाए। जरा याद कीजिए, केदारनाथ त्रासदी के बाद सरकार ने दावा किया गया कि केदारनाथ में यात्रियों की संख्या नियंत्रित की जाएगी। यात्रियों के ठहरने के इंतजाम के हिसाब से ही यात्री वहां भेजे जाएंगे। इससे यात्रियों को भी दिक्कत नहीं होगी और वे आसानी से दर्शन भी कर सकेंगे। साथ ही किसी आपात स्थिति से निबटने के मद्देनजर तुरंत प्रभावी कदम भी उठाए जा सकेंगे।

धीरे-धीरे केदारनाथ में व्यवस्थाएं जरूर जुटी हैं, मगर यात्रियों की संख्या नियंत्रित करने की दिशा में कोई पहल होती नहीं दिख रही। वर्तमान में वहां सात हजार यात्रियों के ठहरने के इंतजाम हैं, मगर रोजाना पहुंच रहे हैं औसतन 25 हजार यात्री। ऐसे में व्यवस्था को लेकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। तब यह बात भी हुई थी कि केदारनाथ जाने वाले प्रत्येक यात्री का फोटोमीट्रिक पंजीकरण होगा। इससे प्रशासन के पास यात्रियों का पूरा ब्योरा उपलब्ध रहेगा, लेकिन यह व्यवस्था भी दम तोड़ चुकी है।

केवल ऋषिकेश से रोटेशन पर जाने वाले यात्रियों का ही पंजीकरण हो रहा है। जबकि, इससे कहीं अधिक यात्री तो सीधे निजी वाहनों अथवा हेली सेवाओं से केदारनाथ पहुंच रहे हैं। इसके अलावा अन्य कई दावे भी किए गए थे, मगर आपदा से उबरने के बाद इस दिशा में चुप्पी साध ली गई। यही चिंता का विषय है। बात समझने की है कि केदारनाथ समेत चारधाम आने वाले यात्री हमारे मेहमान हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा, बेहतर व्यवस्था, यात्रियों व वाहनों की नियंत्रित संख्या जैसे बिंदुओं पर गंभीर होना सरकार का दायित्व है।

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