Joshimath Sinking: भू धंसाव पर बोले प्रकृति प्रेमी गोविंदाचार्य- जोशीमठ अंगड़ाई है, अब भी संभल जाइए
राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि हिमालय हम सबकी साझी चिंता का विषय है। जोशीमठ भूधंसाव पर उन्होंने कहा कि यह तो एक अंगड़ाई भर है जिसका अर्थ है संभल जाइये। प्रकृति केंद्रित विकास की बात उन्होंने कही।
देहरादून, जागरण संवाददाता: राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संरक्षक केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि हिमालय हम सबकी साझी चिंता का विषय है। जोशीमठ भूधंसाव पर उन्होंने कहा कि यह तो एक अंगड़ाई भर है, जिसका अर्थ है संभल जाइये। प्रकृति केंद्रित विकास की बात उन्होंने कही।
राजपुर रोड स्थित विश्व संवाद केंद्र में पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि प्रकृति के साथ जो अन्याय हुआ है, वह आगे न हो, इसके लिए पुख्ता व्यवस्था बनाने की जरूरत है। प्रकृति से छेड़छाड़ के चलते ही हिमालय में हलचल है, जोशीमठ उसी का परिणाम है।
एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार जोशीमठ को लेकर खुद को जिम्मेदार माने या न माने, जनता तो मानती ही है कि सरकार को इस पर बहुत कुछ करना था। बहरहाल, यह सभी समझ गए हैं कि इस विषय पर गहराई से सोचने की आवश्यकता है। यह समझना होगा कि पर्यावरण से छेड़छाड़ उचित नहीं है। उत्तराखंड में नदियों के पर्यावरणीय प्रवाह को लेकर भी उन्होंने चिंता व्यक्त की।
नदियों के पर्यावरणीय प्रवाह का आकलन आवश्यक
गोविंदाचार्य ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की ही तरह नदियों के लिए अलग प्राधिकरण बनाने पर जोर दिया। नरौरा से कानपुर तक गंगा संवाद यात्रा का उल्लेख उन्होंने किया। कहा कि आज नदियों का जीवन संकट में पड़ गया है, जिसे बचाना जरूरी है। अपनी यात्रा के अनुभव के आधार पर उन्होंने नदियों का न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित न होने, अवैज्ञानिक खनन और औद्योगिक अपशिष्ट व सीवर को लेकर बरती जा रही ढिलाई पर चिंता व्यक्त की।
उन्होंने कहा कि नदियों को लेकर देश की जनता में भावनात्मक लगाव है। व्रत, उपवास, त्योहार, स्नान की परंपरा कायम है। पर नदियों की अविरलता व निर्मलता की भी जानकारी बढ़े, उसके लिए समाज व सरकार को साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि नदियों के पर्यावरणीय प्रवाह का आकलन आवश्यक है। हर मौसम में पर्यावरणीय प्रवाह की व्यवस्था हो यानी मौसम के अनुसार नदियों में पर्याप्त जल प्रवाह बना रहे। एक सवाल के जवाब में कहा कि गंगा बेसिन प्राधिकरण के कार्यों का भी आडिट होना चाहिए। यह स्पष्ट होना चाहिए कि वह क्या कार्य कर रहा है। बल्कि इसे पब्लिक डोमेन पर डाला जाना चाहिए।
ये मांग रही प्रमुख
- गंगा एक्ट बने और इसके आधार पर अधिकार संपन्न एक प्राधिकरण बनाया जाए।
- मंदाकिनी, भागीरथी और अलकनंदा से जुड़े क्षेत्र को इको-सेंसिटिव जोन के रूप में चिह्नित किया जाए।
- गंगा, यमुना व नर्मदा आदि का पर्यावरणीय प्रवाह सुनिश्चित किया जाए।