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पहाड़ में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा व्यवस्था बेहाल

चंदराम राजगुरु टिहरी चुनावी समर चल रहा है और हर बार की तरह इस बार भी राजनेता ज

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 03:00 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 03:00 AM (IST)
पहाड़ में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा व्यवस्था बेहाल
पहाड़ में स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा व्यवस्था बेहाल

चंदराम राजगुरु, टिहरी:

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चुनावी समर चल रहा है और हर बार की तरह इस बार भी राजनेता जनता से कई बड़े वायदे करेंगे। लेकिन पहाड़ के विकास की परिकल्पना धरातल पर कब उतरेगी कहना मुश्किल होगा। कई प्रकार की समस्या से जूझ रहे पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही। मसलन सुदूरवर्ती इलाकों में स्वास्थ्य सेवा बेहाल है और शिक्षा व्यवस्था का दायरा सिमट रहा है। बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रही ग्रामीण जनता की परेशानी कब दूर होगी ये सवाल हर किसी के जेहन में है।

हर बार चुनाव होते हैं और नई सरकार बनती है। लेकिन पहाड़ के लोगों की समस्या जस की तस है। बात हो रही है टिहरी संसदीय क्षेत्र के बाहुल्य जनजाति क्षेत्र जौनसार-बावर की। विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले जौनसार बावर के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा का बुरा हाल है और शिक्षा व्यवस्था का दायरा सिमट रहा है। पहाड़ के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो कहने को चकराता व कालसी ब्लॉक क्षेत्र में 32 इंटर कॉलेज, 38 हाईस्कूल और सैकड़ों की संख्या में प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूल खोले गए हैं। शिक्षकों की कमी के चलते चकराता ब्लॉक क्षेत्र में 21 जूनियर हाई स्कूल और 14 प्राइमरी स्कूल पिछले कई वर्षो से बंद पड़े हैं। जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। सरकार ने करोड़ों का बजट खपाने के बाद दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए विद्यालय भवन तो बना दिए पर स्कूलों के संचालन को शिक्षकों की तैनाती नहीं की। कुछ ऐसा ही हाल कालसी ब्लाक क्षेत्र का भी है। प्राइमरी स्कूल से लेकर इंटर कॉलेज तक शिक्षकों की भारी कमी से हजारों ग्रामीण छात्र-छात्राओं का भविष्य चौपट हो रहा है। कहने को त्यूणी, चकराता, साहिया व कालसी में चार बड़े राजकीय अस्पताल खोले गए हैं। इसके अलावा यहां दर्जनों की संख्या में राजकीय एलोपैथिक, स्वास्थ्य उपकेंद्र और एएनएम सेंटर खोले गए हैं। लेकिन संसाधनों की कमी के चलते समय पर मरीजों को समुचित उपचार नहीं मिलने से लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। खासकर आपातकालीन समय में लोगों को इलाज के लिए सौ से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर विकासनगर व देहरादून के चक्कर काटने पड़ते हैं। अमूमन ऐसा ही हाल पर्वतीय क्षेत्र के अन्य ग्रामीण इलाकों का भी है। डॉक्टर, फार्मेसिस्ट और अन्य पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से पहाड़ की जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवा का लाभ मिलना आज भी सपने जैसा है। हमेशा की तरह चुनाव के वक्त वोट के लिए पहाड़ का दौरा करने वाले सभी दलों के नेता जनता से कई वायदे करते हैं पर उसके बाद जनता की पीड़ा जानने- सुनने की फुर्सत किसी को नहीं है। बरहाल पहाड़ के विकास को कोई ठोस कार्ययोजना अब तक धरातल पर नहीं उतरी।


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