निजी चिकित्सकों को स्वास्थ्य विभाग ने दिखाया आईना
क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के विरोध में अस्पताल, नर्सिग होम व क्लीनिक संचालक हड़ताल पर रहे।
जागरण संवाददाता, देहरादून: क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के विरोध में अस्पताल, नर्सिग होम व क्लीनिक बंद कर निजी चिकित्सकों ने शुक्रवार से बेमियादी हड़ताल शुरू कर दी है। जिसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ रहा है। न केवल दून बल्कि पहाड़ के दूरस्थ क्षेत्रों से आए कई लोगों को भी उपचार के लिए यहां-वहां भटकना पड़ा। राहत की बात यह रही कि श्री महंत इंदिरेश, मैक्स, कैलाश समेत अन्य कई बड़े अस्पताल हड़ताल में शामिल नहीं हुए। जिस पर मरीजों ने इलाज के लिए इन अस्पतालों का रुख किया। वहीं, निजी चिकित्सकों की हड़ताल का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में किसी भी प्रकार की अड़चन न हो, इसके लिए एहतियाती कदम उठाए हैं। सरकारी स्तर से की गई तैयारी पर स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ. टीसी पंत ने बताया कि मरीजों को किसी भी प्रकार की दिक्कत नहीं होने दी जाएगी। सरकारी अस्पतालों में मरीजों के उपचार के लिए समुचित व्यवस्थाएं की गई हैं। अस्पतालों को दिया है पर्याप्त समय
स्वास्थ्य महानिदेशालय ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर अपना रुख साफ कर दिया है। डीजी हेल्थ के अनुसार इसे लागू करने के लिए निजी अस्पतालों को आठ वर्षो का पर्याप्त समय दिया जा चुका है। लेकिन वर्ष 2011 से अभी तक राज्य में निजी अस्पतालों द्वारा एक्ट का पालन नहीं किया गया है। इस संदर्भ में उच्च न्यायालय द्वारा भी आदेश किए गए हैं और एक्ट अनुपालन न होने से न्यायालय की अवमानना हो रही है। पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के अलावा अन्य 10 राज्यों में क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट पूर्णत: लागू है। हिप्र में छह हजार से अधिक अस्पताल एक्ट से आच्छादित है। इमरजेंसी में देना ही होगा उपचार
डीजी हेल्थ ने निजी अस्पतालों द्वारा अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना में सूचीबद्ध न होने के निर्णय को चिकित्सा सेवा की मूल भावना के विपरीत बताया है। कहा कि राज्य की जनता को जहां एक ओर सरकार द्वारा निश्शुल्क चिकित्सा उपचार दिए जाने का निर्णय लिया गया है, वहीं दूसरी ओर निजी चिकित्सालय मेडिकल एैथिक्स के विपरीत मरीजों को इमरजेंसी में भी उपचार देने से मना कर रहे है। उन्होंने कहा कि अटल आयुष्मान योजना के अन्तर्गत कोई भी निजी अस्पताल इमरजेंसी में मरीज को उपचार केलिए मना नहीं कर सकता है, क्योंकि इस प्रकार के उपचार का भुगतान सरकार द्वारा किया जाना है। उच्चम न्यायालय का भी आदेश है कि आपातकाल में मरीज का उपचार करने के लिए कोई भी अस्पताल मना नहीं कर सकता है। पीसीपीएनडीटी एक्ट का भी उल्लंघन
स्वास्थ्य महानिदेशक के अनुसार क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को लागू नहीं किए जाने के कारण पीसीपीएनडीटी एक्ट का भी उल्लंघन हो रहा है। एक्ट का अनुपालन नहीं होने के कारण राज्य में बाल लिंगानुपात की दर विगत वर्षो में निरंतर गिरती जा रही है। उनका कहना है कि निजी अस्पतालों ने क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत आवास नीति में छूट का उल्लेख कर रहे है, जो गलत है। क्योंकि अस्पतालों का आईपीएचएस मानकों के अनुसार होना एक्ट में पहले से ही निर्धारित है। कहा कि निजी अस्पताल संचालकों द्वारा एक्ट के विरोध में हड़ताल करने की कोई भी जानकारी पूर्व में नहीं दी गई है। कोट
क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया है और संविधान के आर्टिकल-252 के अनुसार राज्य सरकार एक्ट में किसी प्रकार का परिवर्तन अथवा संशोधन नहीं कर सकती है। अभी केवल डायगोस्टिक लैब के मानक ही निर्धारित किए गए है। अन्य मानक नोटिफाइड नहीं हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की विशेष आवश्यकता को देखते हुए राज्य सरकार मानकों में संशोधन अथवा परिवर्तन के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव कर सकती है।
- डॉ. टीसी पंत, स्वास्थ्य महानिदेशक मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व स्वास्थ्य सचिव नितेश झा की मौजूदगी में हुई वार्ता में एक्ट में संशोधन पर सहमति बनी थी। अब सरकार समझौते के बावजूद पीछे हट रही है। इसी रवैये के कारण हड़ताल का फैसला लिया गया। 17 फरवरी को काशीपुर में बैठक होगी। जिसके बाद आगे की रणनीति तय की जाएगी।
- डॉ. डीडी चौधरी, प्रांतीय सचिव आइएमए ये हैं एक्ट की कुछ बातें
- अस्पताल आने वाले हर मरीज का इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड और मेडिकल हेल्थ रिकॉर्ड अस्पताल प्रशासन के पास सुरक्षित होना चाहिए।
- इस एक्ट के तहत मेटरनिटी होम्स, डिस्पेंसरी क्लिनिक्स, नर्सिग होम्स, एलोपैथी, होम्योपैथी और आयुर्वेदिक से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं पर समान रूप से लागू होता है।
- हर अस्पताल, क्लीनिक का रजिस्ट्रेशन भी जरूरी है। जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि वह लोगों को न्यूनतम सुविधाएं और सेवाएं दे रहे हैं।
- इस एक्ट के तहत स्वास्थ्य सुविधा देने वाले संस्थानों का ये कर्तव्य है कि किसी रोगी के इमरजेंसी में पहुंचने पर उसको तुरंत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाएं।
- प्रत्येक अस्पताल अपनी सेवाओं की कीमत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ही ले सकेंगे। स्वास्थ्य सुविधाओं के एवज में ली जा रही कीमत को अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में चस्पा करना होगा।
- इस एक्ट से जुड़े प्रावधानों का उल्लंघन करने पर अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द से लेकर, उन पर जुर्माने का प्रावधान है। आयुष्मान के 16 फीसद मरीज ही प्रभावित
अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी युगल किशोर पंत का कहना है कि निजी चिकित्सकों की हड़ताल के कारण योजना के अंतर्गत उपचार का लाभ प्राप्त करने वाले मरीजों को किसी भी तरह की परेशानी नहीं हो रही है। कहा कि हड़ताल के कारण सिर्फ 16 प्रतिशत मरीज प्रभावित हुए हैं। 14 फरवरी तक योजना के तहत 110 सूचीबद्ध अस्पतालों में 6828 मरीजों को उपचार का लाभ मिला है। जिनमें 60 निजी चिकित्सालयों में 5136 मरीजों का इलाज हुआ है। इन चिकित्सालयों में से 55 अस्पताल ही हड़ताल में शामिल हैं। जहां पर 1097 मरीजों को ही उपचार दिया गया है। राष्ट्रीय शोक से अलग थलग हड़ताल पर अडिग
- डॉक्टरों ने पुलवामा की घटना के बाद भी पीछे नहीं खींचे कदम
देहरादून: पूरा देश आतंकी हमले से स्तब्ध है। गमगीन और शोकाकुल चेहरों से देश में राष्ट्रीय शोक की लहर दौड़ रही है। ऐसे में जिन चिकित्सकों को धरती का भगवान कहा जाता है, उनका इस शोक से अलग-थलग होकर अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर रहने का निर्णय उनकी भूमिका को सवालों में खड़े करता है। जहां एक ओर राज्य सरकार ने अपने बजट सत्र तक को स्थगित कर दिया। राज्य कर्मचारियों ने भी अपने आंदोलन को श्रद्धांजलि का रूप दे दिया और तमाम संगठनों ने भी अपने कार्यक्रम स्थगित कर दिए, उसी समाज का अभिन्न हिस्सा माने जाने वाले चिकित्सकों से ऐसी उम्मीद किसी को भी नहीं थी। निजी चिकित्सकों की यह हड़ताल राष्ट्रीय आपदा के हालात से जूझ रहे देश की भावना से पूरी तरह जुदा नजर आ रही थी। अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करना जायज है, मगर यह देखना भी जरूरी होता है कि देश को इस समय एकजुटता की जरूरत है। एक मंच पर खड़े होकर एक स्वर में आतंक के खिलाफ आवाज उठाने की जरूरत है। बेहतर होता कि निजी चिकित्सकों की यह हड़ताल भी देश की भावना के अनुरूप अपना रूप बदल लेती।