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न उम्मीद छोड़ी...न सपने टूटने दिए, मेहनत के दम पर हासिल किया मुकाम, पढ़ें भारत मां के बेटों के संघर्ष की कहानी

IMA POP 2022 चीफ आफ आर्मी स्टाफ गोल्ड मेडल और सर्विस ट्रेनिंग व विज्ञान में कमांडेंट सिल्वर मेडल प्राप्त करने वाले लखनऊ के प्रबीन कुमार सिंह बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुख रखते हैं। उन्‍होंने न उम्मीद छोड़ी और न सपने को टूटने दिया।

By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraPublished: Sat, 03 Dec 2022 11:04 AM (IST)Updated: Sat, 03 Dec 2022 11:04 AM (IST)
न उम्मीद छोड़ी...न सपने टूटने दिए, मेहनत के दम पर हासिल किया मुकाम, पढ़ें भारत मां के बेटों के संघर्ष की कहानी
IMA POP 2022 : आर्मी कैडेट कालेज एसीसी के दीक्षा समारोह के दौरान मौजूद कैडेट। जागरण

जागरण संवाददाता, देहरादून : IMA POP 2022 : जब कदम बढ़ाओ, तभी मंजिल हासिल। एसीसी से पास आउट कैडेट भी इसी पंक्ति पर विश्वास करते हैं। उन्हें मंजिल तक पहुंचने में कुछ वक्त जरूर लगा, मगर लक्ष्य से कभी डिगे नहीं।

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तब समय अनुकूल नहीं था और घर का भार एकाएक कंधों पर आ पड़ा। मगर, न उम्मीद छोड़ी और न सपने को टूटने दिया। मन में रह-रहकर उठती उम्मीद की हिलोरों की बदौलत सफलता की दहलीज तक पहुंच गए।

असफलता में खोज ली सफलता की राह

चीफ आफ आर्मी स्टाफ गोल्ड मेडल और सर्विस ट्रेनिंग व विज्ञान में कमांडेंट सिल्वर मेडल प्राप्त करने वाले लखनऊ के प्रबीन कुमार सिंह बेहद सामान्य परिवार से ताल्लुख रखते हैं। उनके पिता योगेंद्र रेलवे सुरक्षा बल में हेड कांस्टेबल हैं। जबकि, मां नीलम गृहिणी हैं।

सीमित संसाधनों में भी उन्होंने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी। प्रबीन ने पांच बार एनडीए की परीक्षा दी और लिखित परीक्षा में सफल भी हुए, मगर एसएसबी में बाहर हो गए। मन में फौजी वर्दी की ललक थी तो वर्ष 2015 में एयरफोर्स में भर्ती हो गए। अब अफसर बनने की चाह अपनी लगन के बूते पूरी कर ली है।

पिता जेसीओ, बेटा बनेगा अफसर

रजत पदक (चीफ आफ आर्मी स्टाफ) प्राप्त करने वाले कानपुर निवासी आलोक सिंह सैन्य परिवार से हैं। उनके पिता कल्याण सिंह फौज से बतौर आनरेरी कैप्टन सेवानिवृत्त हुए हैं। मां रामबती गृहिणी हैं। आलोक की प्रारंभिक शिक्षा केवि रुड़की और केवि कानपुर कैंट से हुई।

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उन्होंने सपनों को उड़ान देने के लिए जिंदगी की तमाम चुनौतियों को मात दी। वर्ष 2014 में सेना में भर्ती जरूर हुए, लेकिन ख्वाहिश अफसर बनने की थी। मन में संकल्प लिया और कदम मंजिल की ओर बढ़ा दिए। अपने दृढ़ संकल्प के बूते उन्होंने वह मुकाम पा लिया है, जिसका न केवल उन्हें बल्कि परिवार को भी इंतजार था।

मनीष ने कायम रखी सैन्य परंपरा

सेना में सिपाही हो या फिर अधिकारी, उत्तराखंड का दबदबा कायम है। एसीसी विंग के दीक्षा समारोह में भी इसकी झलक साफ दिखी। पिथौरागढ़ के बिण निवासी मनीष गिरी को कांस्य पदक (चीफ आफ आर्मी स्टाफ) मिला है। उनके पिता माधव गिरी फौज से सेवानिवृत्त हैं। मां ललिता देवी गृहिणी हैं।

मनीष ने भी पिता की तरह फौज में करियर चुना। केवि पिथौरागढ़ से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वर्ष 2015 में वह वायुसेना में भर्ती हो गए, मगर मन में ललक अफसर बनने की थी। दृढ़ संकल्पित होकर प्रयास किया और एसीसी के माध्यम से अपनी मंजिल के करीब हैं।


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