सरकार रोजगार के लिए युवाओं का मार्गदर्शन करें तो हालात को बदलते देर नहीं लगेगी
पलायन आयोग के अनुमान के अनुसार कोरोना संक्रमण के बीच करीब दो लाख से ज्यादा लोग अपने गांव लौटे और इनमें से करीब तीस फीसद यहीं रुक सकते हैं। निसंदेह खाली हो रहे गांवों के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं हैं।
देहरादून, जेएनएन। पलायन की विभीषिका से जूझ रहे पहाड़ों में अब नई उम्मीद जगने लगी है। कोरोना की चुनौतियों के बीच बड़ी संख्या में विभिन्न राज्यों से लोग अपने गांवों को लौटे हैं। इनमें से कई ने स्वरोजगार को अपना अन्य को राह दिखाकर मिसाल भी प्रस्तुत की है। पलायन आयोग के अनुमान के अनुसार कोरोना संक्रमण के बीच करीब दो लाख से ज्यादा लोग अपने गांव लौटे और इनमें से करीब तीस फीसद यहीं रुक सकते हैं।
निसंदेह खाली हो रहे गांवों के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं हैं। इतना ही नहीं पिछले दिनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पौड़ी जिले में स्थित अपने गांव घीड़ी गए तो वहां उन्होंने ग्रामीणों से बातचीत में अपने पैतृक मकान को बनाने की इच्छा व्यक्त की। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत भी कुछ ऐसी ही मंशा जाहिर कर चुके हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सदस्य अनिल बलूनी भी इस दिशा में लगातार कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में एक भूखंड खरीदकर संदेश दिया है कि माननीय भी पहाड़ के विकास को लेकर गंभीर हैं। इसी तरह विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल भी कुछ ऐसा ही कदम उठाने पर विचार कर रहे हैं।
जाहिर है यदि प्रदेश की बड़ी शख्सियत पहाड़ों में बसने की दिशा में पहल करेंगी तो यह अन्य को भी प्रेरणा मिलेगी। प्रदेश में पलायन के आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो पता चलता है कि 1700 से ज्यादा गांव पूरी तरह से खाली हो चुके हैं। ऐसे गांवों की संख्या भी कम नहीं है, जहां एक या दो लोग ही रह गए हैं। इनमें भी ज्यादातर बुजुर्ग हैं या महिलाएं यानी ऐसे लोग जो गांव छोड़कर जाने में असमर्थ हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती पौड़ी जिले में उभरी है। यह एक ऐसा जिला है जहां पलायन का प्रभाव सर्वाधिक है। जिले में 186 गांव पूरी तरह से मानवविहीन हो चुके हैं।
पलायन आयोग के अनुसार राज्य बनने के बाद से करीब साढ़े तीन लाख लोग पलायन कर चुके हैं। पलायन के जो प्रमुख कारण सामने आए हैं उनमें प्रमुख तौर पर बिजली-पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव के साथ ही रोजगार की तलाश है। नौकरी के लिए एक बार घर से निकले लोग दोबारा गांव नहीं लौटे। जाहिर है कोरोना काल में आए बदलाव से गांव भले ही गुलजार नजर आ रहे हों, लेकिन चुनौती यह है कि इतनी बड़ी संख्या में लौटे प्रवासियों को रोजगार कैसे मुहैया कराया जाए। हालांकि इसे अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए। सरकार रोजगार के लिए युवाओं का मार्गदर्शन करे तो हालात को बदलते देर नहीं लगेगी।