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जानें- हर की पैड़ी को ब्रह्मकुंड नाम मिलने के पीछे की मान्यता, कुंभ में यहां स्नान करना सबसे पुण्यदायी

Haridwar Kumbh Mela 2021 गंगाद्वार हरिद्वार में हर की पैड़ी या हरि की पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड को सबसे पावन स्थान माना गया है। कहते हैं कि देवी गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के बाद इसी स्थल पर ब्रह्माजी ने इस उनका स्वागत किया था।

By Raksha PanthriEdited By: Published: Fri, 19 Mar 2021 01:01 PM (IST)Updated: Fri, 19 Mar 2021 03:29 PM (IST)
जानें- हर की पैड़ी को ब्रह्मकुंड नाम मिलने के पीछे की मान्यता, कुंभ में यहां स्नान करना सबसे पुण्यदायी
जानें- हर की पैड़ी को ब्रह्मकुंड नाम मिलने के पीछे की मान्यता।

जागरण संवाददाता, देहरादून। Haridwar Kumbh Mela 2021 गंगाद्वार हरिद्वार में 'हर की पैड़ी' या 'हरि की पैड़ी' स्थित ब्रह्मकुंड को सबसे पावन स्थान माना गया है। कहते हैं कि देवी गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के बाद इसी स्थल पर ब्रह्माजी ने इस उनका स्वागत किया था। यह भी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत कलश के लिए देव-दानवों के बीच हुई छीना-झपटी में पृथ्वी में जिन चार स्थानों पर अमृत छलका, उनमें से एक हर की पैड़ी भी था। इसलिए यहां पर हर श्रद्धालु जीवन में एक बार अवश्य स्नान करना चाहता है। खासकर बारह साल के अंतराल में लगने वाले कुंभ मेले के दौरान यहां स्नान करना सबसे पुण्यदायी माना गया है।

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हर की पैड़ी या ब्रह्मकुंड धर्मनगरी का मुख्य घाट है। यहीं से गंगा पहाड़ को छोड़ मैदानी क्षेत्र का रुख करती है। इस घाट का निर्माण अपने भाई ब्रिथारी (भर्तृहरि) की याद में राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। भर्तृहरि ने यहीं गंगा के तट पर तपस्या करके अमर पद पाया था। भर्तृहरि की स्मृति में राजा विक्रमादित्य ने पहले पहल यह कुंड और फिर पैड़ी (सीढ़ी) बनवाईं। भर्तृहरि के नाम से ही इन पैड़ी का नाम 'हरि की पैड़ी' पड़ा।

कालांतर में 'हरि की पैड़ी' का अपभ्रंश हर की पैड़ी हो गया। यह भी मान्यता है कि सतयुग में राजा श्वेत ने हर की पैड़ी पर ही भगवान ब्रह्मा की पूजा की थी। इससे प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनसे मनोवांछित वर मांगने को कहा। तब राजा ने ब्रह्माजी से यह वरदान मांगा कि इस स्थान को उन्हीं के नाम से प्रसिद्धि मिले। कहते हैं कि तभी से हर की पैड़ी को ब्रह्मकुंड नाम से भी जाना जाता है। 

कहते हैं कि वैदिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और श्रीहरि के पदचिह्न भी यहां एक पत्थर (पैड़ी) पर अंकित हैं। इन्हीं पदचिह्न की वजह से इस स्थान को हरि की पैड़ी नाम से पुकारा जाता है। भोर की बेला और सांध्य बेला में यहीं पर भव्य गंगा आरती का आयोजन होता है।

अखाड़ों के शाही स्नान ब्रह्मकुंड के खास आकर्षण

मान्यता है कि हर की पैड़ी में एक बार डुबकी लगाने से जीव के संपूर्ण पाप धुल जाते हैं। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां मुंडन, उपनयन जैसे संस्कार पूर्ण कराने के लिए पहुंचते हैं। प्रत्येक 12 वर्ष के अंतराल में कुंभ मेले के दौरान शैव, वैष्णव व उदासीन पंथ के अखाड़े शाही स्नान के लिए यहां पहुंचते हैं। इस दिव्य नजारे का साक्षी बनने के लिए भी यहां देश-विदेश से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है।

तीनों देवों का वास

स्वामी दिव्येश्वरानंद कहते हैं कि हर की पैड़ी में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देवों का वास माना गया है। इसीलिए 'हर की पैड़ी' को 'हरि की पैड़ी' या 'ब्रह्मकुंड' भी कहा जाता है। हर का पर्याय शिव और हरि का पर्याय विष्णु होता है, जबकि ब्रह्म स्वयं ब्रह्म देव हुए। यही वजह है कि देश-विदेश से श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने यहां खिंचे चले आते हैं।

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